ध्वजा बाबू ने चुनाव लडऩे से कर दिया था इन्कार, समाजसेवा के उनके काम के सभी थे कायल
पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने सीतामढ़ी से टिकट देने की घोषणा की थी। महात्मा गांधी को दिए वचन और समाजसेवा के लिए ठुकरा दिया प्रस्ताव।
मुजफ्फरपुर, [दिलीप जायसवाल]। आज हर ओर लोकसभा चुनाव की चर्चा है। टिकट पाने के लिए नेता हर तरह से प्रयास करते रहे। धनबल से लेकर बाहुबल का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं रहे। ऐसे नेताओं के लिए ध्वजा बाबू मिसाल हैं। उन्होंने महात्मा गांधी को दिए वचन और समाजसेवा के लिए कांग्रेस का टिकट ठुकरा दिया था। चुनाव लडऩे से मना कर दिया था। आजादी के बाद 1952 का देश का पहला आम चुनाव। इसे लेकर हर ओर उत्साह था। जनता को आजाद भारत में पहली बार मतदान करने का मौका मिलने वाला था। दो साल पहले ही देश का संविधान लागू हुआ था।
आजादी के जोश से भरी जनता नया भारत गढऩे और अपना जनप्रतिनिधि चुनने के लिए उत्साहित थी। देश में उस समय कांग्रेस के अलावा अन्य कोई मजबूत पार्टी नहीं थी। स्वतंत्रता सेनानी, खादी आंदोलन के जुझारू नेता और महात्मा गांधी के नजदीकी रहे मुजफ्फरपुर जिले के औराई प्रखंड के रामखेतारी गांव निवासी ध्वजा बाबू की देश में अलग पहचान थी। देश व समाजसेवा के उनके काम के सभी कायल थे। ऐसे में कांग्रेस ने उन्हें सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव में उतारने का फैसला किया। उनके नाम की घोषणा कर दी गई।
जानकारी मिलने के अगले ही दिन उन्होंने सहज भाव से चुनाव लडऩे से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा था, वे इसमें बंधे बगैर देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं। ध्वजा बाबू के पौत्र संजीव साहू कहते हैं, इसे लेकर सदाकत आश्रम, पटना में कांग्रेस की बैठक हुई। इसमें गुलजारी लाल नंदा, श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह सहित अन्य शामिल हुए। सभी ने उनसे चुनाव लडऩे का आग्रह किया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। तब उनका यह निर्णय पूरे देश में चर्चा का विषय रहा।
ध्वजा बाबू के इन्कार करने पर लाल बाबू सिंह को टिकट मिला और उन्होंने जीत हासिल की। पहले आम चुनाव में मुजफ्फरपुर जिले में चार लोकसभा क्षेत्र थे। मुजफ्फरपुर, पुपरी, हाजीपुर और सीतामढ़ी। उनके पौत्र कहते हैं, 1957 के आम चुनाव में भी कांग्रेस की तरफ से चुनाव लडऩे का प्रस्ताव मिला। दोबारा उन्होंने इन्कार कर दिया।
गांधीजी का गहरा प्रभाव
ध्वजा बाबू छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। 1914 में अनुशीलन समिति (गरम दल) के लिए काम करने लगे। उनकी गांधीजी से पहली मुलाकात अप्रैल 1917 में तब हुई, जब वे नील की खेती करने वाले किसानों की पीड़ा जानने चंपारण आए थे। इसके बाद वे लगातार गांधीजी के संपर्क में रहे। कांग्रेस की बैठकों और महाधिवेशन में भाग लेते रहे।
समाज के प्रति समर्पित
स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर कहते हैं कि ध्वजा बाबू का व्यक्तित्व समाज के प्रति समर्पित था। स्वयं एक विचारधारा थे। वे भारत खादी समिति के सदस्य थे। वर्ष 1952 के चुनाव में चेहरे की ही पहचान थी। कांग्रेस की तरफ से तय हुआ कि ध्वजा बाबू को टिकट दिया जाए, लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रजनीरंजन साहू का कहना है कि ध्वजा बाबू जैसे लोग अब कहां। उन्हें राजनीति नहीं, समाजसेवा से लगाव था। जबकि आज टिकट के लिए नेता क्या नहीं करते। हर तिकड़म लगाते हैं।
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