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Raghuvansh Prasad Singh: इमरजेंसी के दौरान पर्चा छापने के लिए बेच दी थी शादी में मिली अंगूठी

छात्र व जेपी आंदोलन में उनके सहयोगी रहे सामाजिक चिंतक डॉ.ब्रजेश कुमार शर्मा ने कहा कि रघुवंश बाबू बहुत ही स्वाभिमानी थे। उन्होंने कहा-विवाह की अंगूठी बेच आपातकाल में पर्चा छपवाया।

By Murari KumarEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 11:44 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 11:44 AM (IST)
Raghuvansh Prasad Singh: इमरजेंसी के दौरान पर्चा छापने के लिए बेच दी थी शादी में मिली अंगूठी
Raghuvansh Prasad Singh: इमरजेंसी के दौरान पर्चा छापने के लिए बेच दी थी शादी में मिली अंगूठी

मुजफ्फरपुर, [अमरेन्द्र तिवारी]। Raghuvansh Prasad Singh  समाजवादी आंदोलन से राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत करने के बाद रघुवंश बाबू धीरे-धीरे राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हुए। रघुवंश बाबू ने 1969 में श्रीराधाकृष्ण गोयनका कॉलेज सीतामढ़ी में 1969 में गणित के प्रोफेसर के रूप योगदान दिया। छात्र व जेपी आंदोलन में उनके सहयोगी रहे सामाजिक चिंतक डॉ.ब्रजेश कुमार शर्मा ने कहा कि रघुवंश बाबू ने  इमरजेंसी के दौरान पर्चा छापने के लिए कागज की जरूरत पड़ी। किससे सहयोग लिया जाए, यह सूझ नहीं रहा था। रघुवंश बाबू बहुत ही स्वाभिमानी थे। उन्होंने शादी में मिली अंगूठी को निकाल कर दिया। अंगूठी बेचने पर पांच सौ रुपये मिले। उसके बाद कागज खरीदकर प्रिंटिंग प्रेस को दिया गया। आंदोलन की गति तेज हुई। वह सीतामढ़ी के अलग-अलग गांवों में छुपकर आंदोलन को गति देते रहे।

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मनुषमारा का पानी पीकर बुझाई थी प्यास 

डॉ.ब्रजेश बताते हैं कि बात 1975 की है। शीतलपटटी में सीतामढ़ी के पूर्व सांसद महंत श्यामसुंदर दास के यहां रघुवंश बाबू ठहरे थे। वहीं मठ से आंदोलन का संचालन हो रहा था। महंतजी का सहयोग मिलता था। एकरात अचानक कोलकाता पुलिस के आने की सूचना मिली। पुलिस गांव में किसी को खोजने पहुंची थी। रघुवंश बाबू तेज बुखार से पीडि़त थे। लेकिन नाव से वहां से निकले तथा एक बागीचा में पहुंचे। रात में बागीचा में ही मचान पर सोए। प्यास लगी तो मनुषमारा नदी के पानी से प्यास बुझाई। सुबह जब पुलिस चली गई तब फिर नाव से गांव पहुंचे। दवा दी गई तो उनकी तबीयत ठीक हुई। 

जनकपुर में बनती थी रणनीति

मधुबनी बेनीपटटी के विधायक रहे डॉ.बैद्यनाथ झा जनकपुर में प्रैक्टिस करते थे। आपातकाल में वहीं पर रणनीति बनती थी। उसमें जननायक कर्पूरी ठाकुर भी शामिल हुए। साइकिल से वहां जाने के क्रम में एक बार उनका झोला गिर गया। इस बीच मड़ई गांव के एक आदमी को झोला मिला। खादी का झोला देख वह समझ गया कि प्रोफेसर साहब का ही है। झोला को उसने सीतामढ़ी स्थित उनके आवास पर पहुंचा दिया। रघुवंश बाबू इसकी चर्चा बराबर करते रहे। जब भी नेपाल का संदर्भ आता, वह कहते थे कि नेपाल के लोग ईमानदार होते हैं। उनका झोला सही सलामत पहुंचा दिया था। नेपाल के स्तंभकार चंद्रकिशोर झा कहते हैं-उनके पढ़ाए हुए कई छात्र नेपाल में अच्छे-अच्छे पद पर हैं। उनकी याददाश्त इतनी अच्छी थी कि एक बार जिसको देख लेते उसके फिर मिलने पर फौरन पहचान लेते थे। 


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