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दिल ने समझी सुरों की भाषा…, नरसिंह की हुई राधा

अनूठी शादी का गवाह बना समाज वर-वधू को दिया आशीर्वाद। राजगढ़ी से सटे कैंची कोट माई स्थान परिसर में विवाहोत्सव संपन्न।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 10:36 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 10:36 PM (IST)
दिल ने समझी सुरों की भाषा…, नरसिंह की हुई राधा
दिल ने समझी सुरों की भाषा…, नरसिंह की हुई राधा

पश्चिम चंपारण, जेएनएन। न केवल किस्से वरन प्रेम से जुड़ी सच्ची घटनाओं पर भी सहसा यकीन नहीं होता। बगहा के कैंची कोट माई स्थान में जन्म से दृष्टि दिव्यांग नरसिंह का हाथ थामकर प्रयागराज की राधा ने कुछ ऐसा ही किया है। इस प्रेम विवाह की कहानी फिल्मी लगती है। जिसमें नायक के बदले नायिका ने प्रेम और त्याग की नई परिभाषा लिखी। शुक्रवार की संध्या पहर बगहा दो प्रखंड के नौरंगिया गांव में राजगढी से सटे कैंची कोट माई स्थान परिसर में मंडप सजा।

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 लोगों की भारी भीड़ के बीच उत्सवी माहौल में राधा कुमारी ने अग्नि को साक्षी मानकर दृष्टि दिव्यांग नरसिंह के साथ जीने मरने की कसमें खाई। इस विवाहोत्सव में राधा के पालक माता-पिता क्रमश: भोला ठाकुर और पन्ना देवी शामिल हुए। दोनों ने कन्यादान किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से शुरू हुई प्रेम की कहानी अपने अंजाम तक पहुंच गई। जब यूपी के रहने वाले वर-वधू ने महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि पर एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

नरसिंह की आवाज आत्मा को छू गई और फिर...

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के कोरांव गांव निवासी राधा के माता-पिता बचपन में ही गुजर गए। वह भटकते हुए गोरखपुर पहुंची, जहां आठ वर्ष की उम्र में उसकी मुलाकात भोला ठाकुर से हुई। भोला और उनकी पत्नी पन्ना देवी ने राधा का लालन-पालन किया। उसकी पढ़ाई की व्यवस्था की। राधा ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।

 बचपन से ही उसमे संगीत साधना की ललक थी। सो, छोटे कार्यक्रमों में उसे भजन गाने का मौका मिलता। गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान राधा ने पहली बार नरसिंह को देखा। आंखे नहीं थी, लेकिन नरसिंह की आवाज में जादू था। बकौल राधा जब पहली बार नरसिंह को गाते हुए सुना तो आवाज आत्मा को छू गई। फिर सात दिनों तक साथ गाने का मौका मिला।

 फिर तय कर लिया कि जीवन इसी के साथ गुजारना है। माता-पिता को अपने निर्णय से अवगत कराया, तो दृष्टि दिव्यांगता का हवाला देकर उन्होंने साफ इंकार कर दिया। लेकिन मैंने कहा कि उसे मेरे सहारे की जरूरत है। मैं उसी के लिए बनी हूं।

मैंने सपने में नहीं सोचा था कि कोई सहारा बनेगा...

विवाह के बंधन में बंध चुके नरसिंह को अब भी भरोसा नहीं हो रहा कि आज के दौर में भी कोई आंखों वाली लड़की उनका हाथ थामने को तैयार हो गई। बकौल नरसिंह माता-पिता के गुजरने के बाद महाराजगंज जिले के हरिहरपुर निवासी मामा ऋषिकेश सहनी और मामी सोना देवी ने हम दोनों जन्मांधों का लालन-पालन किया। मैं किसी भी कार्यक्रम में जाता तो अपने छोटे भाई परशुराम को साथ लेकर जाता।

 तब मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई हमारा सहारा बनेगा। लेकिन आज महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि त्रिवेणी संगम पर प्रयागराज की राधा ने सामाजिक मिथक को तोड़कर हमे सहारा दिया। हम दोनों भाई कभी उसपर बोझ नहीं बनेंगे।

गांव के लोगों ने पेश की मिसाल, उठाया शादी का खर्च

राधा और नरसिंह के प्रेम विवाह के साक्षी बने नौरंगिया के ग्रामीणों ने मिसाल पेश की। इस शादी का सारा खर्च ग्रामीणों ने जन सहयोग से इकठ्ठा किया। इको विकास समिति के अध्यक्ष चंद्रशेखर कुमार ने बर्तन दिया तो सुरेंद्र मिश्रा , डॉ महेश चौधरी, अरविंद कुशवाहा, छांगुर पासवान, राजेश बिंद, सुरेंद्र बीन, वार्ड सदस्य सुखल चौधरी, बद्री गोड़, लाल मोहन कुमार, पन्नालाल, मोहन कुमार, रवि मद्देशिया आदि ने विवाहोत्सव में शामिल लोगों के नाश्ते और भोजन का प्रबंध किया। जन सहयोग से कैंची माई स्थान परिसर में एक छोटी सी झोपड़ी खड़ी कर दी गई है। जिसमें नरसिंह, पत्नी राधा और भाई परशुराम के साथ रह रहे हैं।


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