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प्यास लगने पर कुआं खोदने में लगा जिला प्रशासन, 10 फीट नीचे खिसका भू-जलस्तर

पानी की समस्या से जूझ रहे लोगों को दिए जा रहे सिर्फ आश्वासन। करीब 5000 से अधिक चापाकल खराब। जलस्तर नीचे जाने से सूख गए 2000 चापाकल। गहराने लगा जलसंकट।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 31 May 2019 08:57 AM (IST)Updated: Fri, 31 May 2019 08:57 AM (IST)
प्यास लगने पर कुआं खोदने में लगा जिला प्रशासन, 10 फीट नीचे खिसका भू-जलस्तर
प्यास लगने पर कुआं खोदने में लगा जिला प्रशासन, 10 फीट नीचे खिसका भू-जलस्तर

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। जिले के सात प्रखंडों में पानी के लिए हाहाकार मचा है। प्यास लगने पर जिला प्रशासन कुआं खोदने में लगा हुआ है। सकरा, मुरौल व बंदरा प्रखंड की 20 से अधिक पंचायतों में जलसंकट की स्थिति काफी गंभीर है। 49 वार्डों वाले नगर निगम के 24 इलाकों में भी यही हाल है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक भू-जलस्तर तेजी से पाताल की ओर भाग रहा है। कम से कम 10 फीट नीचे भू-जलस्तर आ गया है। गांव-घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाने के लिए जिम्मेवार लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) भी मानता है कि इस महीने बारिश नहीं हुई तो हालात और खराब हो सकते हैं।

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   बावजूद प्यास बुझाने के लिए कारगर इंतजाम होता नहीं दिख पा रहा। प्यास लगने पर कुआं खोदने वाली स्थिति है। जलसंकट दूर करने का सिर्फ आश्वासन ही हर स्तर पर मिल रहा है। सकरा, मुरौल व बंदरा प्रखंडों में टैंकरों से पानी पहुंचाए जा रहे। पांच अन्य इलाकों में भी लोगों के साथ माल-मवेशी भी टैंकरों के पानी पर निर्भर हैं। कहने को पीएचईडी के अधिकारी घूम-घूमकर जायजा ले रहे हैं। इन प्रखंडों के साथ बोचहां, मुशहरी, कांटी, कुढऩी, कटरा, पारू व मड़वन में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है।

   अमूमन हर पंचायत में वाटर लेबल डाउनफॉल देखा जा रहा है। 18 घोर जलसंकट वाली पंचायतों के चिह्नित इलाकों में विभाग टैंकरों से पानी पहुंचाकर अपनी जवाबदेही की इतिश्री समझ रहा है। जिलेभर में करीब 5000 से अधिक चापाकल खराब पड़े हैं और तकरीबन 2000 चापाकल जलस्तर नीचे जाने से सूख गए हैं। मुरौल में चार, सकरा में सात, मुशहरी में दो, बंदरा में दो तथा कांटी की एक पंचायत में टैंकर से पानी की सप्लाई की जा रही है।

प्रशासनिक उदासीनता भारी

पानी के लिए मचे हाहाकार के बीच प्रशासनिक उदासीनता भारी पड़ रही है। जिले को महज तीन जलदूत उपलब्ध हैं। वो भी शोभा की वस्तु ही है। इनका उपयोग नहीं हो रहा। जलदूत उस मशीन का नाम है जो नदी, नाले व तालाब के पानी को मिनटों में साफ कर पीने योग्य बना देते हैं। पेयजल स्रोतों की गुणवत्ता और उसकी मॉनीटरिंग के लिए गठित समिति भी असरदार नहीं दिख रही है। नगर निगम क्षेत्र में जलसंकट वाले इलाकों में मिनी पंप व टंकी लगाने की बात अभी सोची ही जा रही।

अगले तीन माह में चापाकल लगाने को करोड़ों की स्वीकृति

राज्य योजना मद से भीषण गर्मी के मद्देनजर जलसंकट वाले क्षेत्रों में नए चापाकल लगाने के लिए करोड़ों रुपये की स्वीकृति प्रदान की गई है। राज्यभर में 2192 चापाकल लगाए जाने हैं। इसके लिए चौदह करोड़ पचास लाख तीन हजार दो सौ रुपये की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस राशि से जिले की समस्या भी दूर करने की बात कही जा रही है। हालांकि, अगले तीन माह में ही यह योजना धरातल पर उतर पाएगी। इस हिसाब से प्यास बुझाने के लिए तब तक इंतजार करना पड़ेगा।

जिले की 18 पंचायतों में गहराया जलसंकट

अधीक्षण अभियंता सुधेश्वर प्रसाद यादव ने कहा कि जिले की 18 पंचायतों में गहरा जलसंकट है। जलस्तर तेजी से नीचे जाने से यह हाल है। जलापूर्ति के तमाम वैकल्पिक इंतजाम किए जा रहे हैं। साधारण चापाकलों की जगह स्पेशल चापाकल लग रहे हैं।

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