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मुजफ्फरपुर में दिख रहा कोरोना का राजनीतिक वेरिएंट, आपके शहर में भी ऐसा कुछ है क्या?

शहर की राजनीति के दो किंग मेकर फिर से आमने-सामने हो गए हैं। शहर को सैनिटाइज करने के दौरान कोरोना का यह राजनीतिक वेरिएंट पैदा हुआ है। सबसे पहले इसका हमला शहर के एक वार्ड के जनप्रतिनिधि पर हुआ।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 13 May 2021 08:07 AM (IST)Updated: Thu, 13 May 2021 09:12 AM (IST)
मुजफ्फरपुर में दिख रहा कोरोना का राजनीतिक वेरिएंट, आपके शहर में भी ऐसा कुछ है क्या?
कोरोना का यह राजनीतिक वेरिएंट तेजी से फैला और अब पूरे शहर की राजनीति इसका शिकार हो गई है।

मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। कोरोना के राजनीतिक वैरिएंट का शहर की सियासत पर हमला हुआ है। इसने शहर की सियासत को गर्म कर दिया है। ऐसा असर इसने दिखाया है कि शहर की राजनीति के दो किंग मेकर फिर से आमने-सामने हो गए हैं। शहर को सैनिटाइज करने के दौरान कोरोना का यह राजनीतिक वेरिएंट पैदा हुआ है। सबसे पहले इसका हमला शहर के एक वार्ड के जनप्रतिनिधि पर हुआ। कारण, शहर को सैनिटाइज करने निकले दो जनप्रतिनिधियों ने उनके इलाके में घुसकर कोरोना वायरस को मारने का प्रयास किया। इससे बाद कोरोना के राजनीतिक वेरिएंट के शिकार जनप्रतिनिधि ने इलाके में घुसे दोनों जनप्रतिनिधियों को खूब खरी-खोटी सुनाई। कोरोना का यह राजनीतिक वेरिएंट तेजी से फैला और अब पूरे शहर की राजनीति इसका शिकार हो गई है। जो भी स्प्रे मशीन लेकर इसे मारने के लिए निकलता है वह इसका शिकार हो जाता है। शहर की राजनीति के ङ्क्षकग मेकरों ने यह गलती की तो वे आमने-सामने हो गए। ज्यादा घातक कौन, कोरोना या अस्पताल 

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शहर में इन दिनों एक सवाल हर जुबान पर है। ज्यादा खतरनाक कौन है कोरोना या अस्पताल? अस्पताल से अभिप्राय है सरकारी एवं निजी दोनों। अस्पतालों की हालत यह है कि जो लोग वहां जान बचाने जा रहे हैं वहां से उल्टे पांव भाग रहे हैं। सरकारी अस्पताल भगवान भरोसे हैं। वहां भर्ती मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है। सारी सुविधाएं वहां हैैं, लेकिन कहने के लिए। निजी अस्पतालों में इलाज के लिए जेब में ताकत होनी चाहिए। वहां जाने के बाद बच भी गए तो कर्ज चुकाने में दम निकल जाएगा। इसलिए लोगों को जितना भय अब कोरोना से नहीं उससे ज्यादा अस्पतालों से लग रहा है। वे अब अस्पताल जाने की जगह घर पर ही इलाज कराने में विश्वास कर रहे हैं। घर पर जान बचने की उनको ज्यादा उम्मीद है। अस्पताल का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं।

बैैंड न बाराती, बचत वाली शादी

कोरोना के बढ़ते संक्रमण से सबकुछ बंद है, लेकिन शादी-ब्याह जारी हैं। शादी-ब्याह को स्थगित करने को कोई तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री की अपील भी काम नहीं आ रही है। जिस घर में शादी-ब्याह है वे कोरोना संकट को अवसर के रूप में देख रहे हैैं। कारण, शादी में न बैंड बजाना है और न ही बारात को भोज-भात कराना है। सबकुछ सस्ते में निपट जाना है। वर हो या वधू पक्ष दोनों किफायती शादी से खुश हंै। बचत वाली शादी से भले ही वर और वधू पक्ष वाले खुश हैं, लेकिन बैंड से लेकर भोजन बनाने वाले तक सभी निराश हंै। उनकी रोजी-रोटी चली गई है। भोज-भात में कोरोना के डर से नहीं जाने वाले भी खुश हैैं। उनको भी बचत हो रही है। बचत वाली शादी उनको रास नहीं आ रही जिनकी जेब मोटी है।

जान जाए पर जीभ का स्वाद न जाए

कौन कहता है कि कोरोना का भय लोगों को सता रहा है। विश्वास नहीं होता तो शहर की सब्जी मंडियों में जाकर देख लीजिए। सब्जी खरीदने वालों की भीड़ दिख जाएगी। यहां न मास्क दिखाई देगा और न ही शारीरिक दूरी का पालन। जी हां, जान जाए तो जाए, लेकिन जीभ का स्वाद न जाए। उनको रोकने की हर कोशिश विफल साबित हो रही है। वर्दी वाले करें तो क्या करें। डंडा चलाने पर उनको कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। सख्ती दिखाते हैं तो जनता नाराज होती है और नहीं रोकते हैं तो शीर्ष अधिकारी नाराज होते हैं। जीभ के स्वाद वालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनको सब्जी के साथ हवाखोरी का भी जो मजा मिलता है। उनके लिए कोरोना मायने नहीं रखता। उनको कौन समझाए। उनको तो कोरोना के डर से ज्यादा भोजन में ताजी सब्जी चाहिए।


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