शहर में बिछी राजनीति की बिसात, महापौर-उपमहापौर के लिए मोहरे की तलाश
पार्षद नहीं अब जनता नगर निगम की सरकार के मुखिया व उप मुखिया के भाग्य का फैसला करेगी यह निर्णय जबसे हुआ है शहर की राजनीति गरमा गई है।
मुजफ्फरपुर : पार्षद नहीं, अब जनता नगर निगम की सरकार के मुखिया व उप मुखिया के भाग्य का फैसला करेगी, यह निर्णय जबसे हुआ है शहर की राजनीति गरमा गई है। कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच शहर में राजनीति की बिसात बिछ गई है। शहर की राजनीति के दो बड़े खिलाड़ी न सिर्फ सक्रिय हो गए हैं बल्कि महापौर एवं उपमहापौर पद के लिए अपने मोहरे की तलाश में लग गए हैं। उनकी सक्रियता का कारण है, दोनों का भविष्य नगर निगम की राजनीति से जुड़ा है। बिना निगम पर कब्जा किए उनकी राजनीति की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती। यदि दोनों पद का चुनाव वर्तमान आरक्षण के आधार पर हो या उसमें किसी प्रकार का बदलाव हो, दोनों परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अपनी तैयार में लग गए हैं ताकि खेल शुरू होने पर एक दूसरे के मोहरे को मात दे सके। इसको लेकर अभी से अपनी चाल चलने लगे हैं।
इसके लिए दोनों तरफ से मोहरे की तलाश चल रही है। ऐसे मोहरे, जो उनके राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित रख सके। इसपर फैसला के लिए बंद कमरे में बैठक होने वाली है जिसमें भाग लेने के लिए शहर के दिग्गजों के साथ-साथ भावी उम्मीदवारों को भी आमंत्रित किया जा रहा है। भावी उम्मीदवार भी अपने को भारी उम्मीदवार बनाने के लिए दोनों में से एक बड़े खिलाड़ी का साथ चाहते हैं। इसलिए उन्होंने भी अपने दावे को मजबूत बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ बैठक में भाग लेने की तैयारी शुरू की है।
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वार्डो से हटी बड़े खिलाड़ियों की नजर
पहले वार्ड पार्षद नगर निगम की राजनीति के बड़े मोहरे थे। जिनके पास जितने अधिक पार्षद होते, वहीं निगम की राजनीति किंगमेकर बनता था। राजनीति के बड़े खिलाड़ियों की नजर पार्षद उम्मीदवारों पर होती थी। लेकिन अब महापौर एवं उपमहापौर सबसे बड़े मोहरे हैं। महापौर एवं उपमहापौर के चुनाव करने के अधिकार से वंचित होने के बाद पार्षदों का भाव समाप्त हो गया है। राजनीति के बड़े खिलाड़ी भी उनकी ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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कई पार्षद नहीं लड़ सकते हैं चुनाव
महापौर एवं उपमहापौर के प्रत्यक्ष चुनाव की घोषणा के साथ ही शहर की राजनीति में भी बड़ा बदलाव होने वाला है। अपनी महत्ता घटते देख कई पार्षद आने वाले चुनाव से किनारा कर सकते हैं। अब तक पार्षद पद के उम्मीदवारों को जीत हासिल करने के लिए जो खर्च करने पड़ते थे इसकी भरपाई अब नहीं होने वाली। महापौर एवं उपमहापौर अविश्वास प्रस्ताव के भय से पार्षदों को विशेष महत्व देते थे लेकिन अब वह नहीं रह पाएगा। इससे देखते हुए कई पार्षद इस दुविधा में है कि चुनाव लड़े या नहीं लड़े। इसका मंथन कर रहे है। उम्मीद है कि कई पार्षद मैदान छोड़ दें।