समीर हत्याकांड : सुशील व श्यामनंदन की स्वीकारोक्ति पर टिकी पुलिस जांच
जमीन के सौदे में धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार सुशील छापडिय़ा के स्वीकारोक्ति बयान में पूर्व मेयर हत्याकांड के पर्दाफाश का था दावा !
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। पूर्व मेयर समीर कुमार हत्याकांड को लेकर सुशील छापडिय़ा व श्यामनंदन मिश्रा के स्वीकारोक्ति बयान पर ही पुलिस जांच टिकी है। इसी को आधार बना कर पुलिस जांच चल रही। इसमें एक बयान सार्वजनिक हो गया है तो दूसरा सीलबंद है। इस मामले में श्यामनंदन मिश्रा फिलहाल न्यायिक हिरासत में जेल में बंद है।
सकरा के श्यामनंदन मिश्रा के पुलिस के समक्ष स्वीकारोक्ति बयान फिलहाल सीलबंद है। सीलबंद लिफाफा पुलिस ने कोर्ट में सौंपा है। इससे पहले एक अन्य मामले में गिरफ्तार पड़ाव पोखर निवासी सुशील छापडिय़ा ने भी पुलिस के समक्ष स्वीकारोक्ति बयान दर्ज कराया था। इसमें उसने पूर्व मेयर की हत्या की साजिश रचने व हत्या करने वाले के नामों की जानकारी पुलिस को दी थी। उसने ही श्यामनंदन पर साजिश के तहत हत्या कराने का आरोप लगाया था। उसी के बयान पर आरोपित बनाया गया था।
एक का बयान खुला तो दूसरा सीलबंद लिफाफा
पूर्व मेयर हत्याकांड में अब तक दो स्वीकारोक्ति बयान को लेकर पुलिस ने दो तरह की कार्रवाई की है। सुशील छापडिय़ा के बयान को जहां खुले रूप में कोर्ट में पेश किया, वहीं श्यामनंदन के बयान को बंद लिफाफा में। सुशील का बयान तो कोर्ट में पेश किए जाने के कुछ देर बाद ही वायरल हो गया।
सीलबंद लिफाफे से बढ़ी बेचैनी
माना जा रहा कि श्यामनंदन का बयान काफी विस्फोटक है। इससे कई बड़े लोगों की गर्दन फंस सकती। इसलिए पुलिस ने इसे सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में पेश किया है। अब कोर्ट की अनुमति से ही खोला जाएगा।
दाखिल किया जाएगा विरोध पत्र
श्यामनंदन के अधिवक्ता शरद सिन्हा ने बताया कि सोमवार को कोर्ट में विरोध पत्र दाखिल किया जाएगा। कोर्ट को इसकी जानकारी दी जाएगी कि पुलिस ने सादे कागज पर श्यामनंदन का हस्ताक्षर करा कर उस पर मनगढं़त बातें लिख कर उसकी स्वीकारोक्ति बयान का शक्ल दिया है। कोर्ट से इस स्वीकारोक्ति बयान को रद करने की प्रार्थना की जाएगी। इस विरोध पत्र की सुनवाई के दौरान कोर्ट में उसकी स्वीकारोक्ति बयान वाला सीलबंद लिफाफा खुलने की संभावना जताई जा रही है। इससे पहले सुशील छापडिय़ा की ओर से उसकी स्वीकारोक्ति बयान को लेकर कोर्ट में विरोध पत्र दाखिल किया जा चुका है। इसमें कहा गया है कि सुलहनामा के नाम पर उससे सादा कागज पर पुलिस ने हस्ताक्षर करा लिया था।
स्वीकारोक्ति बयान का कानूनी महत्व नहीं
फौजदारी मामले के अधिवक्ता प्रियरंजन अनु कहते हैं कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम में पुलिस के समक्ष या उसकी कस्टडी में दिए गए स्वीकारोक्ति बयान का कोई कानूनी महत्व नहीं है। सिर्फ स्वीकारोक्ति बयान के आधार पर आरोपित को कोर्ट में दोषी ठहराकर सजा नहीं दी जा सकती। यह स्वीकारोक्ति बयान तब प्रभावी होगा, जब इसके समर्थन में जांच एजेंसी को कोई ठोस साक्ष्य मिलता है। इस साक्ष्य के आधार पर ही कोर्ट उसे दोषी ठहराकर सजा दे सकता है।