कविता वही, 51 साल में बदल गए कवि, डीएवी प्रबंधन पर चलेगा मुकदमा
कविता एक ही लेकिन 51 साल बाद शीर्षक बदल गया और कवि बदल गए। डीएवी की आठवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में शामिल कविता में ऐसा ही हुआ है।
मुजफ्फरपुर। कविता एक ही, लेकिन 51 साल बाद शीर्षक बदल गया और कवि बदल गए। डीएवी की आठवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में शामिल कविता में ऐसा ही हुआ है। इसको लेकर नई दिल्ली के पहाड़गंज स्थित डीएवी मुख्य प्रबंध समिति की अध्यक्ष पूनम सूरी, निदेशक डॉ.निशा पेशीन व कवि ललित किशोर लोहमी के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलेगा। मुशहरी थाना के छपरा मेघ निवासी सेवानिवृत्त बैंक कर्मी विमल कुमार शर्मा के परिवाद की जांच के बाद अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी (एसडीजेएम, पूर्वी) एसके राय के कोर्ट ने संज्ञान लिया है। तीनों आरोपितों को 22 नवंबर को कोर्ट में हाजिर होने के लिए सम्मन जारी करने का आदेश दिया गया है।
यह है मामला :
मूल रूप से मुशहरी थाना के छपरा मेघ व वर्तमान में रोहुआ अपूछ गांव निवासी विमल कुमार शर्मा ने इस साल 26 जून को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सीजेएम के कोर्ट में परिवाद दाखिल किया था। इसमें उक्त तीनों को आरोपित किया था। परिवाद पत्र में कहा था कि उनका पोता डीएवी मालीघाट में आठवीं का छात्र है। उसकी हिन्दी के पाठ्यपुस्तक के पाठ संख्या-18 में 'दुख में हार न मानो' शीर्षक नाम से कविता पढ़ाई जाती है। इसके कवि के रूप में ललित किशोर लोहमी का नाम है। 51 साल पहले यह कविता उन्होंने 'अन्वेषण' शीर्षक से पढ़ी थी। उसके कवि रामनरेश त्रिपाठी थे। दावा किया कि यही असली कवि थे। आरोप लगाया कि गलत कवि को पढ़ाकर छात्रों को भ्रमित किया जा रहा है। यह कॉपीराइट का उल्लंघन है।
वकालतन नोटिस पर डीएवी प्रबंधन ने मांगा था 11 हजार हर्जाना : कोर्ट में परिवाद दाखिल करने से पहले शर्मा ने इस संबंध में डीएवी के मुख्य प्रबंध समिति की अध्यक्ष पूनम सूरी को इस साल 29 अप्रैल को वकालतन नोटिस भेजा था। इसका जबाव देते हुए डीएवी प्रबंधन ने उनसे 11 हजार रुपये हर्जाना की मांग की थी।
मूल किताब ढूढ़ने में यूपी तक की खाक छानी : कोर्ट में मूल किताब पेश करने को लेकर शर्मा व उनके अधिवक्ता दिलीप कुमार को यूपी तक की खाक छाननी पड़ी। आखिर लखनऊ के पुरानी पुस्तकों की दुकान इंडियन बुक डिपो में 1927 में प्रकाशित इस किताब की प्रति उन्हें मिली।
भादवि की तीन धाराओं में चलेगा मुकदमा : परिवादी के अधिवक्ता कुमार ने बताया कि एसडीजेएम पूर्वी के कोर्ट ने भारतीय दंड विधान संहिता (भादवि) की तीन धाराओं में तीनों के विरुद्ध संज्ञान लिया है। धारा और सजा :
भादवि की धारा 465 : किसी दस्तावेज या अभिलेख की कूटरचना करना। दोष सिद्ध होने पर दो साल का कारावास व जुर्माने की सजा हो सकती है।
भादवि की धारा- 469 : पक्षकार की ख्याति को अपहानि के लिए कूटरचना करना। दोष सिद्ध होने पर तीन साल का कारावास व जुर्माना की सजा हो सकती है।
भादवि की धारा- 471 : दस्तावेज या अभिलेख को कूटरचित कर कपट पूर्वक या बेईमानी से असली रूप में उपयोग करना। यह संज्ञेय अपराध है। दोष सिद्ध होने पर सात साल का कारावास व जुर्माना की सजा हो सकती है।