एलएस कॉलेज के प्रांगण में 'रश्मिरथी' का मंचन, देखकर भाव विभोर हुए लोग Muzaffarpur News
दिनकर की कालजयी काव्य कृति रश्मिरथी की 151वीं नाट्य प्रस्तुति। लिम्का गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज मुजीब खांन के निर्देशन में आयोजन।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी रचना 'रश्मिरथीÓ की नाट्य प्रस्तुति से साहित्यप्रेमी रोमांचित व गदगद हो उठे। एलएस कॉलेज के प्रांगण में नाट्य प्रस्तुति का मंचन हुआ। लिम्का गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नामित मुंबई के प्रख्यात रंगकर्मी मुजीब खान के निर्देशन में उनकी 24 सदस्यीय सांस्कृतिक टीम ने अपनी अद्भुत प्रस्तुतियों से सबको भावविभोर कर दिया। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसका उदघाटन किया।
मौके पर नगर विकास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह, कुलपति डॉ. आरके मंडल, प्राचार्य प्रो. ओमप्रकाशराय समेत कई गण्यमान्य मौजूद थे। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि 'रश्मिरथीÓ का मंचन गांव-गांव में होना चाहिए। सांस्कृतिक चेतना के रूप में राष्ट्रकवि का संदेश सबके बीच जाना चाहिए। उन्होंने यह बात भी कही कि बिहार से बाहर महाराष्ट्र, राजस्थान, उड़ीसा में इसका खूब मंचन हो रहा है मगर बिहार में उनकी जन्मधरती पर ही कम ध्यान है। मराठी कलाकार जो ङ्क्षहदी नहीं जानते हैं वे नाटक का मंचन कर रहे हैं, इससे सीख लेने की जरूरत है।
इस नाट्य प्रस्तुत का साक्षी बनकर सब गदगद
67 साल पहले दिनकर ने महाकाव्य 'रश्मिरथीÓ की यहीं रचना की थी। तब वे लंगट सिंह महाविद्यालय में शिक्षक (1950 से 1952 तक) रहे थे। 1952 में प्रकाशित हुई 'रश्मिरथीÓ, जिसका अर्थ 'सूर्य की सारथीÓ है। इसके बाद उनकी रचना 'उर्वशीÓ 1961 ई. में आई। कहते हैं उर्वशी भी उन्होंने यहीं लिखी थी। जिसके लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। 'रश्मिरथीÓ दिनकर की कालजयी काव्य कृति है। इसमें सामाजिक न्याय की भावना को नई भाषा-नई अभिव्यक्ति दी गई है।
इसमें दलित, वंचित एवं उपेक्षित समाज के लिए एक संदेश है कि प्रतिभा किसी जाति विशेष की मोहताज नहीं होती है। 'रश्मिरथीÓ काव्य महाभारत पर आधारित है, जिसमें कर्ण का जीवन चरित्र एवं संवाद है। इस नाट्य प्रस्तुत का साक्षी बनकर साहित्य प्रेमियों ने समरस एवं सांस्कृतिक भारत के निर्माण अभियान में अपना योगदान दिया।