सनातन समाज के लोग एक साथ बांट सकेंगे 14 पर्वों की खुशियां
चाणक्य विद्यापति सोसायटी की ओर से आयोजित धर्म संसद में 14 पर्वों की एकरूपता पर बनी सहमति। काशी-मिथिला के विद्वानों ने एकरूपता को बताया जरूरी।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। सनातन समाज के पर्व-त्योहारों में एकरूपता होनी चाहिए। इससे देश-विदेश में रहनेवाले सनातन धर्म के लोग एक साथ पर्व-त्योहारों की खुशियां बांट सकेंगे। धर्म संसद संवत् 2075 में आए विद्वानों और धर्मगुरुओं ने सनातन पर्व की एकरूपता पर अपनी सहमति जताई। चाणक्य विद्यापति सोसायटी के स्थापना दिवस पर बाबा गरीबनाथ सत्संग भवन परिसर में आयोजित धर्म संसद में कई और निर्णय हुए। काशी और मिथिला क्षेत्र से जुड़े विद्वानों ने सर्वसम्मति से तय किया कि पहले चरण में 14 पर्व-त्योहार हैं, जिन्हें एक दिन मनाने की जरूरत है। उसके बाद सनातन धर्म के जितने भी पर्व-त्योहार हैं, उनकी एकरूपता के लिए सोसायटी को पहल करनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सोसायटी के अध्यक्ष पंडित विनय पाठक, संचालन कार्यक्रम के संयोजक पं. कमलापति त्रिपाठी ने की। कार्यक्रम का उद्घाटन जगतगुरु उपेंद्र पराशर, महर्षि शिवानंद परहंस, सोमेश्वनाथ मंदिर अरेराज के महंत रविशंकर गिरि, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. रामचंद्र झा, बनारस ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय आदि ने संयुक्त रूप से किया।
धर्म संसद में निर्णायक मंडल के सदस्य
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और विश्वविद्यालय पंचाग के प्रधान संपादक डॉ. रामचंद्र झा, बीएचयू ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवनारायण झा, अन्नपूर्णा पचांग वाराणसी के संपादक श्रीकांत तिवारी, ज्योतिष, कर्मकांड एवं धर्म शास्त्र के मर्मज्ञ पं. विनोद झा के साथ धर्म संसद के संयोजक पं. कमलापति त्रिपाठी प्रमोद और दरभंगा संस्कृत विवि के व्याकरण विभागाध्यक्ष डॉ. शशिनाथ झा शामिल रहे।
इन पर्वों की एकरूपता पर सहमति
धर्म संसद संवत् 2075 में 14 पर्व की एकरूपता पर सहमति बनी
-रामनवमी
-जानकी नवमी
-रक्षाबंधन
-जीवित्पुत्रिका, महालक्ष्मण और जिउत वाहन व्रत
-जन्माष्टमी
-नवरात्रि
-गुरुपूर्णिमा
-दीपावली
-सूर्य पष्ठी यानी छठ
-बसंत पंचमी
-महाशिवरात्रि
-होली
-संक्रांति
-गंगा दशहरा
धर्म संसद का यह निर्णय
-चाणक्य विद्यापति सोसायटी पचांग निर्णय समिति करेगी गठन।
-समिति गठन के लिए सोसायटी के अध्यक्ष पंडित विनय पाठक बने संयोजक।
-समिति के निर्णय से सभी शंकराचार्य को कराया जाएगा अवगत।
राष्ट्र की प्राण हैं भारतीय संस्कृति और परंपराएं
भारतीय संस्कृति और परंपराएं राष्ट्र की प्राण हैं। विविधता में एकता ही हमारा शृंगार है। आज दुनिया में कहीं भी किसी समस्या का समाधान ढूंढा जाता है तो वह हमारी संस्कृति में निहित है। ये बातें मंगलवार को चाणक्य विद्यापति सोसायटी की ओर से बाबा गरीबनाथ मंदिर सभागार में आयोजित धर्म संसद में सामने आईं। वक्ताओं ने कहा कि यह हमारी धार्मिक नहीं, व्यावहारिक समस्या है। इस आयोजन के माध्यम से बड़ा ही साहसिक कदम उठाया गया है। जगद्गुरु उपेंद्र पाराशर ने कहा कि संपूर्ण विश्व को दिशा देने वाला पुुरोहित वर्ग दिशाहीन हो चुका है, यह बड़ा चिंता का विषय है।
विश्वविद्यालय पंचांग के सह संपादक देव नारायण झा ने कहा कि आज जिज्ञासा का बड़ा अभाव हो गया है। शास्त्र का रहस्य इतना गूढ़ है कि बिना गुरु के पास गए, इसे नहीं समझ सकते। अन्नपूर्णा पंचांग के संपादक श्रीकांत तिवारी ने बताया कि साल में कुछ ही पर्व ऐसे हैं, जिसकी तिथि संदिग्ध होती है। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत प्रो. शशिनाथ झा ने कहा कि हर पर्व के लिए अलग-अलग वचन और निर्णय हैं, पर्वों की एकरूपता को लेकर यह शुरुआत है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय ने कहा कि चर्चाएं होती रही हैं और होती रहेंगी।
भारतीय सभ्यता-संस्कृति में यह नहीं कि एक व्हीप जारी कर लोगों को मानने के लिए बाध्य कर दिया जाए। प्रो. शिवाकांत झा ने कहा कि पहले क्षेत्रीय स्तर पर पर्वों में एकरूपता हो, इसका प्रयास होना चाहिए। मौके पर गोपालगंज के महर्षि शिवानंद परमहंस, पतौरा आश्रम मोतिहारी के स्वामी आत्म प्रकाशानंद, राजेंद्र मिश्र, अरेराज के प्रो. दिवाकर उपाध्याय, हरेंद्र किशोर झा, पूर्व कुलपति डॉ. वीरेंद्र पांडेय, महंत राघव दास उर्फ त्यागी बाबा, मोतिहारी के प्रो. डॉ. कर्मात्मा पांडेय, मदन मोहन नाथ तिवारी, दरभंगा के प्रो. दिलीप झा, समस्तीपुर के पं. अमरेश झा, प्रो. मिथिलेश तिवारी, प्रो. सुरेश्वर झा, वाराणसी के धीरज कुमार मिश्र, पूर्व प्राचार्य प्रो. मिथिलेश दीक्षित, दरभंगा के बउआनंद झा, पातेपुर महंत विश्वमोहन दास, महंत रविशंकर गिरि, पूर्व कुलसचिव सुरेश्वर झा, घनश्याम मिश्र, दयानंद झा आदि ने भी विचार रखे।
अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र देकर और पाग पहनाकर किया गया। धर्म संसद की शुरुआत शंखध्वनि के बाद दीप प्रज्वलन और स्वस्ति वाचन से की गई। संचालन कार्यक्रम संयोजक पं. कमलापति त्रिपाठी 'प्रमोद और स्वागत भाषण सोसाइटी संरक्षक पं. शंभूनाथ चौबे ने किया। मंदिर न्यास समिति के पुरेंद्र प्रसाद, डॉ. अनिल धवन, डॉ. संजय पंकज, एपी शुक्ला, सोसाइटी के अभय चौधरी, पं. अजयानंद झा, पं. रामजी झा, पं. प्रवीण झा, पं. इंद्रकांत झा, वार्ड पार्षद विजय झा, समाजसेवी भूषण झा, पं. नवल किशोर मिश्र, स्नेह कुमार झा उर्फ पिंकू झा, महंत संजय ओझा, पप्पू झा, अशोक झा, संकेत मिश्र, महर्षि मुकेश मिश्र आदि मौजूद रहे।