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गंडक के डर से चार महीने आंखों ही आंखों में रात क्या दिन भी गुजारने को विवश यहां के लोग

साल के आठ महीने गंडक नारायणी जीवनदायिनी बनकर समृद्धि की कहानी गढ़ती है तो चार महीने विनाश की दास्तान पेश करती है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 03:15 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 03:15 PM (IST)
गंडक के डर से चार महीने आंखों ही आंखों में रात क्या दिन भी गुजारने को विवश यहां के लोग
गंडक के डर से चार महीने आंखों ही आंखों में रात क्या दिन भी गुजारने को विवश यहां के लोग

पूर्वी चंपारण, [अनिल तिवारी] । पूर्वी चंपारण की एक बड़ी आबादी चार माह तक ठीक से सो नहीं पाती है। कारण बाढ़। साल के आठ महीने गंडक नारायणी जीवनदायिनी बनकर समृद्धि की कहानी गढ़ती है तो चार महीने विनाश की दास्तान पेश करती है। ये चार महीने पूरे साल पर भारी पड़ती है। ये चार महीने आंखों में खौफ लिए कटती है। रात को न तो नींद आती है और न दिन को चैन मिलता है। पूर्वी चम्पारण में करीब पचास किलोमीटर से अधिक लंबी गंडक नदी जब अपनी रवानी में आने लगती है तो यहां के लोग सहम जाते हैं।

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हर साल बाढ़ का दंश झेलना पड़ता

गंडक नदी के किनारे बसीं मननपुर की रिंकू देवी बताती हैं कि अमूमन हर साल बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। कहां जाएं, किधर जाएं..., कुछ समझ में नहीं आता। माल-मवेशी व बच्चों को एक साथ कहीं ले जाना मुश्किल है। इसलिए किसी प्रकार ये चार महीने खौफ के साये में रहकर काटने ही पड़ते हैं। बाढ़ गुजर जाने के बाद कभी जमीन उपजाऊं हो जाती है तो कभी रेत बन जाती है। यहीं धूप-छांव झेलते जिंदगी कट जाएगी। ध्रुप प्रसाद, कन्हैया जी, विजेंद्र, लालबाबू कहते हैं-साहब, गंडक की तो अपनी नियति है मगर हाकिम लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है। सालभर सुनते हैं कि बांध मरम्मत चल रहा है, मगर यहां कहां होती है यह पता नहीं चलता। देख लीजिए बांध की हालत सबकुछ समझ में आ जाएगा। डर इसलिए नहीं लगता गंडक में पानी आया है, डर इसलिए लगता है कि यह बांध कहीं भी और कभी टूट सकता है। यह नहीं कहा जा सकता है कि कहां बांध बहुत मजबूत है। चंपारण तटबंध इस कदर जर्जर हो चला है कि इसमें कई जगहों पर रिसाव व टूटने का खतरा बना रहता है।

एक तरफ बाढ़ तो दूसरी तरफ कोरोना

मौजूदा दौर में तो परेशानी और बढ़ गई है। एक तरफ बाढ़ तो दूसरी तरफ कोरोना के जंजाल से बचना मुश्किल हो रहा है। इजरा नवादा के समीप तटबन्ध ओर शरण लिए हरेंद्र राउत बताते हैं अचानक से रात में बाढ़ का पानी उनके घर के अहाते में आ गया। ऐसे में जैसे तैसे कुछ सामान लेकर वे लोग सपरिवार घर से निकल गए। यहां तटबंध को अपना बसेरा बनाया है। ऐसे में कोरोना का खतरा ज्यादा बढ़ गया है। वे लोग चाह कर भी इन हालातों में शारीरिक दूरी जैसे नियमो का पालन नही कर पा रहे हैं। अरेराज-संग्रामपुर स्टेट हाइवे 74 पर कम से कम 4 फीट पानी बह रहा है। बाढ़ की विभीषिका ने लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। अचानक आये बाढ़ के कारण घर मे रखा अधिकांश समान बर्बाद हो गया। जो थोड़ा बहुत राशन व समान बचा था उसको लेकर फिलहाल बांध पर रह रहे हैं।  


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