Bihar News : मुझे लीबिया से निकाल लीजिए... पटना लौटना है, मानवाधिकार आयोग से प्रोफेसर की गुहार
Bihar News : पटना के राजेंद्रनगर निवासी प्रोफेसर डा. संजीव धारी सिन्हा 2014 से लीबिया में फंसे हुए हैं और वतन वापसी का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने मान ...और पढ़ें

पटना के राजेंद्रनगर निवासी प्रोफेसर डा. संजीव धारी सिन्हा।
संजीव कुमार, मुजफ्फरपुर। पटना के राजेंद्रनगर निवासी प्रोफेसर डा. संजीव धारी सिन्हा लीबिया में फंस गए हैं। वह वर्ष 2014 से वतन वापसी का प्रयास कर रहे हैं, मगर नहीं आ पा रहे। अब उन्होंने इसके लिए मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई है। डा. सिन्हा लीबिया के यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग में प्रोफेसर हैं।
बताया गया कि लीबिया के त्रिपोली यूनिवर्सिटी में सेवा देते रहने के बावजूद 2014-15 और 2015-16 में कागजी कार्रवाई पूरी नहीं की गई। वीजा की दुश्वारियों के कारण 2017 में त्रिपोली यूनिवर्सिटी ने उन्हें 39 की बजाय सिर्फ 21 माह का ही वेतन दिया।
वहीं अलमेरगिब यूनिवर्सिटी में भी सेवा के दौरान उन्हे वैध वीजा नहीं दिया। बिना वीजा सेवा गैरकानूनी है। उस दौरान अर्जित राशि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के दायरे में और पूरी सैलरी हवाला के दायरे में होगी।
इसे देख प्रो. सिन्हा ने मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता एसके झा से फोन पर बात कर मदद की गुहार लगाई। इसके बाद मानवाधिकार अधिवक्ता ने राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष याचिका दायर की है।
अधिवक्ता ने बताया कि मामले में सरकार गंभीर नहीं हैं। इससे उनकी वतन वापसी संभव नहीं हो पा रही है। यह मानवाधिकार का उल्लंघन हैं। लीबिया के उपशिक्षा मंत्री ने पहल भी की तथा अलमेरगिब विश्वविद्यालय ने सैलरी उनके एकाउंट में भेजने पर सहमति दी, लेकिन भारतीय दूतावास की सुस्ती से मामला सलट नहीं रहा।
सिर्फ वैध तरीके से पूरी अवधि के वीजा मिलने पर ही उनकी वतन वापसी संभव हैं। प्रोफेसर ने भारत और बिहार सरकार से गुहार लगाई कि किसी तरह उन्हें लीगल एग्जिट वीजा व उनके वहां सहायक प्रोफेसर होने का कागज दिला दें। वे पैसा बाद में लीबिया से ले लेंगे, लेकिन लीगल एग्जिट वीजा मिल जाए तो घर लौट जायेंगे।
प्रो. सिन्हा लीबिया की राजधानी त्रिपोली से 80 किलोमीटर दूर खुम्स में हैं। वह अलमरगिब यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विषय के सहायक प्रोफेसर रहे हैं। उनका भारतीय मुद्रा के हिसाब से करीब डेढ़ करोड़ रुपया बकाया हैं। उन्हें बकाया वेतन दिया जा रहा ना लीगल वीजा।
बता दें कि प्रोफेसर 2009 में लीबिया गए थे। 2017 तक त्रिपोली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर थे। उनके पास न तो लीगल वीजा हैं और न ही आई कार्ड हैं।
मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता ने कहा कि प्रोफेसर की सुरक्षित व सकुशल वतन वापसी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार हर हाल में सुनिश्चित होनी चाहिए।

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