केले के रेशे से बनाया ऑर्गेनिक मास्क, महिलाओं को ट्रेनिंग दे रोजगार से भी जोड़ रहीं
समस्तीपुर की फैशन डिजाइनर पूजा सिंह ने केले के रेशे से मास्क तैयार कर धमाल मचा दिया है। कई खूबियों वाला यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक सुरक्षा कवच है ।
समस्तीपुर, [प्रकाश कुमार]। कोरोना काल के मुश्किल दौर में भी अपने जुझारूपन और काबिलियत से कई लोगों ने खास पहचान बनाई है। इन्हीं में एक हैं समस्तीपुर की मोहिउद्दीनगर निवासी फैशन डिजाइनर पूजा सिंह जो केले के तने से निकले रेशे से मास्क तैयार कर रहीं हैंं। यह मास्क पूरी तरह से ऑर्गेनिक सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है।
ईको फ्रेंडली है यह मास्क
यह मास्क बायोडिग्रेडेबल, ईको फ्रेंडली, एंटी बैक्टीरियल, एंटीमाइक्रोबॉयल, वेदरप्रूफ ऑर्गेनिक होने के साथ-साथ पूरी तरह से देसी है। हाल ही में इन्होंने अपना संयंत्र देहरादून में भी स्थापित किया है।
काफी कम संसाधनों से बन जाता मास्क
पूजा विभिन्न प्रकार की हस्तशिल्प बनाने के लिए चॢचत हैं। वे केले के तने के रेशे पर अलग-अलग तरह से प्रयोग करती रहती हैं। कोरोना बंदी में जब सभी मास्क को लेकर परेशान थे तो पूजा ने रेशे से कपड़े की विशेष तकनीक से मास्क बनाया। इसको बनाने के लिए हैंडलूम कपड़े और सिलाई मशीन की जरूरत होती है। इसमें पहले लेयर में कॉटन का स्तर और दूसरे में रेशे का कपड़ा लगाया गया है। केले के तने को पहले प्रोसेस कर उससे रेशा निकाला जाता है। उसे फिर हैंडलूम से कपड़ा का रूप दिया जाता। उनके मुताबिक रेशे से बना यह मास्क पूरी तरह से मजबूत है। यानी कपड़े की तरह इसे धोया जा सकता।
अमेजन पर भी बिकेगा मास्क
केले के रेशे के बने ये मास्क जल्द ही दुनिया की प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन पर उपलब्ध होंगे। इसे सोशल मीडिया के माध्यम से बेचने की प्रक्रिया चल रही है। स्थानीय लोग भी इसकी खरीदारी कर सकेंगे। पूजा बताती हैं कि उन्हेंं मुख्यमंत्री हाउस से भी कॉल आया है। इसपर उनकी ओर से बनाए गए मास्क का नमूना भी भेजा गया है।
इस मास्क से सांस फूलने की कम होती है समस्या
फीजिशियन डॉ. आरके सिंह कहते हैं कि केले के तने के जूस में एंटीबैक्टीरियल तत्व मौजूद रहते हैं। इस तरह के मास्क लगाने से सांस फूलने जैसी समस्या कम होती है। इंफेक्शन से बचाव होता है।
महिलाओं को बना रहींं आत्मनिर्भर
मोहिउद्दीनगर की पूजा ने पांच साल पहले केले के तने के रेशे से साड़ी, कुर्ता व चादर के अलावा घरेलू उपयोग की अन्य वस्तुएं बनाने का काम शुरू किया था। बेंगलुरू से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद पूजा ने वर्ष 2010 में तमिलनाडु जाकर यह कार्य सीखा। वहां से आने के बाद इसकी शुरुआत की थी। रेशा निकालने वाली मशीन तमिलनाडु से मंगाई थी। गांव की महिलाओं को भी इसकरा प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना रही हैं। इसमें दो हजार से अधिक को जोड़कर प्रशिक्षित कर चुकी हैं। इससे उनकी आॢथक स्थिति भी सुधरी है। लॉकडाउन की वजह से अन्य प्रदेशों से लौटी महिलाओं में अभी फिलहाल पांच महिला को भी अपनी टीम में शामिल किया है। जिला परिषद अध्यक्ष प्रेमलता ने बताया कि महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं। इस तरह का कार्य काफी सराहनीय है।