इस कॉलेज से अच्छा गांव का प्राइमरी स्कूल, यहां ढंग का भवन भी नहीं Muzaffarpur News
स्नातक पार्ट वन में दाखिले के बाद अपनी किस्मत को कोसेंगे विद्यार्थी। पांच शिक्षकों के भरोसे ही पूरा कॉलेज। मोतीपुर के जीवछ कॉलेज का हाल देख आता रोना।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। कॉलेजों में बदहाल शिक्षा व्यवस्था की अगर बानगी देखनी है तो एक बार मोतीपुर के जीवछ कॉलेज चले जाएं। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय का यह इकलौता कॉलेज है जो सरकारी (अंगीभूत) है मगर, सिर्फ डिग्री बांटने भर के लिए। फॉर्म भरने और परीक्षा देने भर के लिए ही छात्रों का यहां से वास्ता है। यहां की व्यवस्था देख रोना आएगा। टूटे-फूटे क्लास रूम, बरामदे का छप्पर उड़ चुका है। टेबल-कुर्सियां टूटी हुई हैं। क्लास रूम में फर्श ही नहीं। ब्लैकबोर्ड लिखने-पढऩे लायक नहीं। लाइब्रेरी सात साल से नहीं खुल पाई है।
स्नातक पार्ट वन में नामांकन के लिए आवेदन लिए जा रहे हैं। बड़ा सवाल है नामांकन के बाद कॉलेज आने वाले छात्र-छात्राएं इस हाल में पढ़ाई कैसे कर पाएंगे। गांव का कॉलेज होने के चलते लड़कों के बनिस्बत लड़कियों की तादाद अधिक है। कई विषयों के शिक्षक नहीं हैं। समय पर क्लास शुरू नहीं होती। जो हैं भी उन्हें पढ़ाई से अधिक अपनी हाजिरी की चिंता रहती है।
कॉलेज की छात्राएं शौचालय की समुचित व्यवस्था के अभाव में पढ़ाई छोड़ चुकी हैं। पहले किसी प्राचार्य ने इसपर ध्यान नहीं दिया। अब नए प्राचार्य डॉ. संजीव कुमार मिश्रा आए हैं। सामने नैक की तैयारी है और यह देख स्वाभाविक है उनकी चिंता बढ़ गई होगी। पूछने पर उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन को वस्तुस्थिति से अवगत कराया चुका है। छात्रों के अनुसार इस कॉलेज से अच्छा तो गांव का प्राइमरी स्कूगल है।
18 शिक्षकों में महज पांच के भरोसे कॉलेज
यहां शिक्षकों के प्राचार्य समेत 19 पद स्वीकृत हैं। जिनमें पांच हैं मगर दो शिक्षक कुछ ही माह में रिटायर होने वाले हैं। नन टीचिंग में 11 में से एक फिलहाल हैं। टीचर व नन टीचिंग स्टाफ के साथ संसाधनों की कमी दूर करने के लिए कॉलेज प्रबंधन ने विश्वविद्यालय से लिखा पढ़ी में कसर नहीं छोड़ी मगर...!
सोचिए, कैसे होती होगी पढ़ाई
1630 छात्र-छात्राओं के पढऩे की यहां क्षमता है। 2018-21 सेशन की अगर बात करें तो आर्ट्स में लड़के 267 हैं जबकि लड़कियां 316 नामांकित हैं। वहीं साइंस में महज पांच लड़कियां व 18 लड़के नामांकित हैं। भौतिकी, गणित, जूलॉजी, राजनीति विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, उर्दू के शिक्षक नहीं हैं। शिक्षक नहीं, मगर छात्रों की संख्या काफी है? सोच सकते हैं ये कैसे पढ़ पाते होंगे? कॉलेज में पढ़ाई का हाल तो समझ ही चुके मगर, रिजल्ट जरूर अच्छा होता है।
सात साल से नहीं खुली लाइब्रेरी
कॉलेज में लाइब्रेरी की स्थिति की बात करें तो वह सात वर्षों से खुली नहीं है। लाइब्रेरी की पुस्तकों को दीमक चाट गया है। जो बची हैं वो आउटडेटेड हो चुकी हैं। लिहाजा, वो छात्रों के लिए अब बेमतलब हैं। शौचालय और पेयजल की व्यवस्था तो पूछिए ही मत। पेयजल के नाम पर एक अदद चापाकल है जो हाल में लगा है। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नल का जल का लाभ भी अगर मयस्सर होता तो शायद कुछ बात बनती।
1969 में स्थापित हुआ
मोतीपुर में हाइवे किनारे अवस्थित यह कॉलेज 1969 में स्थापित हुआ। जमींदार जीवछ प्रसाद सिंह ने इस कॉलेज की नींव रखी। 14,163 वर्गमीटर एरिया में कैंपस फैला है जिसमें 6207 वर्ग मीटर एरिया में पक्का निर्माण हुआ है। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर कुछ भी नहीं। तेरह कक्षाएं हैं। जिनमें अधिकतर बंद पड़े हैं। यह कॉलेज मध्य विद्यालय की तरह दिखाई पड़ता है।
काश! आंसू बहाने की जगह कोई कुछ कर पाता
कॉलेज छात्रसंघ की अध्यक्ष प्रियंका कुमारी, प्रतिनिधि प्रकाश कुमार, अमरजीत कुमार, रवि कुमार आदि लगातार इस समस्या की ओर कॉलेज प्रबंधन का अध्यान आकृष्ट कराते रहे हैं। पूर्व प्राचार्य वाइपी श्रीवास्तव ने भी कई मर्तबा लिखा। मगर, कोई फायदा नहीं हुआ। पूर्ववर्ती कुलपति डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने कॉलेज का हाल देखकर अफसोस तो जताया मगर, पलटकर फिर नहीं देखे। मौजूदा प्रभारी कुलपति प्रो. राजेश सिंह तक यह बात पहुंची तो उन्होंने कॉलेज आने की इच्छा जाहिर की मगर, उनके आने का शुभ मुहूर्त नहीं निकल पा रहा।
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