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अब बिहार के बाहर विशाखापत्तनम में भी लहलहाएगी मुजफ्फरपुर की शाही लीची

लीची बैंक में 52 हजार पौधे तैयार।100 रुपये में बिकता एक पौधा देश के विभिन्न हिस्सों से मांग। अगस्त से अक्टूबर तक पौधे तैयार किए जाते हैं। यदि पूरे बिहार की बात हो तो 32 से 34 हजार हेक्टेयर में लीची की पैदावार होती है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 17 Oct 2022 10:25 AM (IST)Updated: Mon, 17 Oct 2022 10:25 AM (IST)
अब बिहार के बाहर विशाखापत्तनम में भी लहलहाएगी मुजफ्फरपुर की शाही लीची
देश से बाहर जब लीची जाएगी तो किसानों की स्थिति मजबूत होगी। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, जासं। लीची के क्षेत्र का विस्तार देश के दूसरे हिस्से में भी हो रहा है। अब विशाखापत्तनम की जमीन पर शाही लीची लहलहाएगी। इसके लिए वहां के किसान सतीश ने संपर्क किया है। किसानों को समय पर पौधा मिल जाए इसके लिए लीची बैंक यानी पौधशाला बनी हुई है। अभी यहां 52 हजार 700 पौधे तैयार हैं। बता दें कि प्रदेश में 32 से 34 हजार हेक्टेयर में लीची की पैदावार होती है। इसमें मुजफ्फरपुर में 10 से 12 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है।

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निर्यात नेटवर्क मजबूत करने पर बल

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा.एसडी पांडेय ने बताया कि लीची को जिओ टैग मिला। लक्ष्य है कि पूरे देश में इसका प्रसार, किसानों को प्रशिक्षण व निर्यात नेटवर्क मजबूत करना। देश से बाहर जब लीची जाएगी तो किसानों की स्थिति मजबूत होगी। इसके लिए कृषि विभाग, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड व अन्य संस्थाओं से संपर्क किया जा रहा है। जहां से किसान की मांग आ रही वहां पौधे भेजे जा रहे है।

2013 से लगाई जा रही पौधशाला

2013 से लीची बैंक यानी पौधशाला लगाई जा रही है। विभाग की ओर से 10 लाख की राशि रिवल्विंग फंड के तहत दिया गया है। उससे पौधाशाला का संचालन चल रहा है। निदेशक ने कहा कि इसका उदेश्य मुनाफा कमाना नहीं, लीची का प्रसार है। बताया कि एक पौधा 100 रुपये में बिकता है। इसको तैयार करने में 80 से 90 रुपए खर्च होते है। डा. पांडेय ने बताया कि अगस्त से अक्टूबर तक पौधे तैयार किए जाते हैं। फरवरी से इनकी बिक्री होती है। जुलाई व अगस्त सबसे महत्वपूर्ण सीजन रहता है।

इन जगहों से आए पौधों के आर्डर

लीची अनुसंधान केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार इस साल विशाखपत्तनम से एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए मांग आई है। इससे पहले जम्मू सरकार की ओर से तीन हजार पौधे, उत्तर प्रदेश के सीतापुर, लखीमपुर, मुजफ्फरनगर व कुशीनगर से चार हजार पौधों के लिए किसानों ने आर्डर दिए हैं। आइसीआर से जुड़ी एनिमल साइंस इंस्टीट्यूट बरेली ने अपने परिसर के लिए तीन हजार पौधों की मांग की। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. एसडी पांडेय ने कहा कि लीची का दायरा बढाने के लिए हर स्तर पर पहल चल रही है। किसानों को पौधा उपलब्ध कराने के साथ मुफ्त सलाह दी जा रही है। किसान यहां से संपर्क कर सकते हैं।

दायरा बढ़ाने की पहल

  • - किसानों को नियमित प्रशिक्षण दिया गया है। प्रतिमाह एक सौ से डेढ़ सौ किसानों के मोबाइल पर काल आते हैं। सबको जागरूक किया जा रहा है। यह प्रशिक्षण आत्मा, कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से दिया जाता है।
  • - राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र की विकसित लीची की तीन प्रजातियां गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा और गंडकी संपदा को देश के हर स्थान पर भेजा जा रहा है।

किस साल कितने निकले पौधे बाहर गए 

साल-----पौधों की संख्या

  • 2013-14---39,800
  • 2014--15---45,650
  • 2015--16---35,500
  • 2016--17---33,500
  • 2017--18--32,000
  • 2018--19--28,700
  • 2019--20--27,000
  • 2020----2021---40,000
  • 2021-----2022--52,700

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