अब प्रारंभिक अवस्था में ही दिव्यांग बच्चों की पहचान करेंगी सेविकाएं, दिशा निर्देश जारी Muzaffarpur News
आइसीडीएस के सहायक निदेशक ने दिए निर्देश। प्रत्येक माह चिह्नित बच्चों की देनी होगी जानकारी। चिह्नित बच्चों को बेहतर उपचार देना हो सकेगा संभव।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। अब दिव्यांग बच्चों की प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान की जाएगी। अब स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ समेकित बाल विकास परियोजना (आइसीडीएस) भी दिव्यांग बच्चों की प्रारंभिक अवस्था में पहचान में मदद करेगी। आइसीडीएस के सहायक निदेशक ने सभी जिलों के आइसीडीएस जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों को पत्र लिखकर दिशा निर्देश दिया है। आंगनबाड़ी सेविकाओं को दिव्यांग बच्चों की पहचान का जिम्मा सौंपा जाएगा।
जिला प्रारंभिक पहचान केंद्र को देनी होगी सूचना
जिले में दिव्यांग बच्चों का ब्योरा रखना जिला प्रारंभिक पहचान केंद्र(डीआइएसी) की जिम्मेदारी होती है। आंगनबाड़ी सेविकाएं दिव्यांग बच्चों की प्रारंभिक अवस्था में पहचान कर जिला प्रारंभिक पहचान केंद्र को जानकारी देगी। पत्र में कहा गया है कि बाल विकास पदाधिकारी की यह जिम्मेदारी होगी कि चिह्नित दिव्यांग बच्चों का ब्योरा डीआइएसी को समय से उपलब्ध कराए।
समय से उपचार में होगी आसानी
दिव्यांग बच्चों की समय से पहचान होना जरुरी होता है। इससे चिह्नित बच्चों को बेहतर उपचार प्राप्त होने की संभावनाएं अधिक होती है। साथ ही दिव्यांग आम बच्चों की तरह एक सामान्य जीवन जी सके। इसे ध्यान में रखते हुए बच्चों की प्रारंभिक अवस्था में ही दिव्यांग होने का पता लगाने पर जोर दिया जा रहा है। इसमें आंगनबाड़ी सेविकाओं की भूमिका अहम होगी। आंगनबाड़ी सेविकाएं अपने पोषक क्षेत्र में घरों का दौरा भी करती हैं। साथ ही अन्नप्राशन एवं गोदभराई जैसे अन्य गतिविधियों का भी आयोजन आंगनबाड़ी केंद्रों पर होता है। जिसमें माताओं के साथ शिशु भी शामिल होते हैं। इसलिए आंगनबाड़ी सेविकाओं को लक्षण के आधार पर दिव्यांग बच्चों की पहचान करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
इन जटिलताओं की होगी पहचान
दृष्टि दिव्यांगता, बहरापन, मूकबधिर, शारीरिक अपंगता, मानसिक अपंगता