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Bihar Assembly Elections : अब जाति और धन बल आधारित हुई राजनीति, पार्टी और जनता के प्रति कम हो रही निष्ठा

पूर्व विधायकों की मानें तो समाजसेवा के लिए जनप्रतिनिधि बनने या संसाधन की जरूरत नहीं। एक दल से टिकट नहीं मिलने पर दूसरे में जाने की प्रवृत्ति बढऩे से सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 01:14 PM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 01:14 PM (IST)
Bihar Assembly Elections : अब जाति और धन बल आधारित हुई राजनीति, पार्टी और जनता के प्रति कम हो रही निष्ठा
Bihar Assembly Elections : अब जाति और धन बल आधारित हुई राजनीति, पार्टी और जनता के प्रति कम हो रही निष्ठा

मुजफ्फरपुर, [ प्रेम शंकर मिश्र ]। Bihar Assembly Elections : एक दौर था, जब चुनाव में जीत या हार मायने नहीं होते। हारने वाले भी क्षेत्र में जनता के बीच उतना ही समय देते थे, जितना जितनेवाले। दोनों के संबंधों में खटास नहीं आती। काम की आलोचना-समालोचना के बीच उसका हल निकाला जाता। मगर, अब चुनाव के लिए टिकट पाने से लेकर जनप्रतिनिधि बनने और इसके बाद फिर मैदान में उतरने तक के सफर में काफी कुछ बदल गया है। दशकों पहले क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाले जनप्रतिनिधियों का मानना है कि जनता की सेवा के लिए कई प्लेटफॉर्म हैं। समर्पण भाव होना चाहिए, जिसकी कमी खटकती है। उस दौर में टिकट के लिए कार्यकर्ताओं की कर्मठता पहली योग्यता होती थी। अब तो ये शब्द सिर्फ पोस्टरों में नजर आते हैं। यही कारण है, जनप्रतिनिधियों की निष्ठा पार्टी से लेकर जनता तक कम हो रही।

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समाजसेवी, चरित्रवान व कर्मठ लोग बनें उम्मीदवार

लालगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे केदारनाथ प्रसाद कहते हैं, समाज के बीच के लोगों की भागीदारी राजनीति में कम हो गई है। पाॢटयां ऐसे लोग को उम्मीदवार बनाएं जो समाजसेवी, चरित्रवान व कर्मठ हों। पता चलता है कि जिस व्यक्ति का राजनीति या क्षेत्र से दूर-दूर तक संबंध नहीं वे टिकट पा लेते हैं। ये लोग जनप्रतिनिधि या कार्यकर्ता न होकर अभिकर्ता रह जाते हैं। पूर्व मंत्री दिनेश प्रसाद ने कई बार मीनापुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। कहते हैं, पहले की बात अब है ही नहीं। पहले जनता सेवा प्रमुख ध्येय था। अब तो अधिकतर जनप्रतिनिधि अपनी सेवा पर ही ध्यान दे रहे हैं। जनता की सेवा के लिए जरूरी नहीं आप विधायक, मंत्री या सांसद ही बनें। मगर, अब लगता नहीं कि वह दौर फिर लौटेगा।

राजनीति का मतलब बदला

जेपी आंदोलन से जुड़े और दो बार विधायक व मंत्री रहे बसावन प्रसाद भगत मानते हैं कि राजनीति का मतलब बदला है। एक समय में लोग अपनी संपत्ति लगाकर समाज का काम करते थे। हां, जनप्रतिनिधि होने से फंड की परेशानी नहीं होती थी। मगर, अब अधिक फंड के बावजूद समस्याएं रह जाती हैं। क्योंकि, सामूहिकता कम हुई है। चार बार विधायक और मंत्री रहे हिंद केसरी यादव की मानें तो आज का चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। पार्टी को संगठन और कार्यकर्ता से बहुत मतलब नहीं रह गया। जाति और धन बल आधारित राजनीति हावी हो गई है, जो ऐसा नहीं कर रहे, वे पिछड़ जा रहे। पहले ऐसा नहीं था। काम ही था जो टिकट और वोट, दोनों दिलाता था। इसके लिये पार्टी दफ्तर में दौड़ नहीं लगानी पड़ती थी।  


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