अब चीड़ और साइकस प्रजाति के पौधे बढ़ाएंगे वीटीआर की शान, चल रही यह तैयारी
Valmiki Tiger Reserve इस क्षेत्र के लिए दुर्लभ माने जाते हैं चीड़ व साइकस के पेड़। इनकी संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया।
पश्चिम चंपारण [सुनील आनंद]। जैव विविधता को लेकर देश में वीटीआर (वाल्मीकि टाइगर रिजर्व) की अलग पहचान है। पहले से ही औषधीय पौधों की वीटीआर में भरमार है। अब डायनासोर काल के चीड़ और साइकस प्रजाति के पौधे वीटीआर की शान बढ़ाएंगे। दोनों पौधे औषधीय गुणों वाले हैं। वीटीआर के 3866.3 हेक्टेयर भूमि में इस प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे। इस परियोजना पर 32.23 लाख रुपये खर्च होना है। वीटीआर के क्षेत्र निदेशक एचके राय ने बताया कि प्रस्ताव भारत सरकार को भेज दिया गया है। स्वीकृति मिलते ही दोनों दुर्लभ प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे। ये पर्यटकों को भी पसंद आएंगे।
चीड़ के वृक्ष से पुरखों का नाता
अंग्रेजी हुकूमत में चीड़ के पौधे घरों को सजाने में इस्तेमाल किए जाते थे। लेकिन, धीरे- धीरे ये पौधे विलुप्त हो गए। बताया जाता है कि धरती पर जब हिमयुग था। आदमी का नामों-निशान नहीं था। प्रकृति ने उस समय के वातावरण के अनुकूल इस पौधे को बनाया। ठोस व कठोर। जो आंधी-तूफान में भी नहीं टूटे। सैकड़ों वर्ष तक उनके भीतर अंडाणु व बीजाणु सुरक्षित रहते थे। कालांतर में यही कोन वाले अविकसित पुष्प, एंजिओस्पर्म की वनस्पतियों में सुंदर व संपूर्ण रंग-बिरंगे पुष्प बने। जिनमें दल पुंकेश्वर वर्तिका अंडाशय सब मौजूद थे। गूदेदार रसदार फल।
क्योंकि धरती पर तब तक चिड़ियां, तितली, मधुमक्खियां, आदमी सब आ चुके थे। इस पौधे की खासियत यह है कि समय के अनुसार खुद को परिवर्तित भी कर लेता है। जब धरती पर आदमजात नहीं था तो ये प्रकृति के अनुरूप था। अब जब मानव व पशु- पक्षियों की संख्या बढ़ गई तो उसी के अनुसार चीड़ भी हो गया है। जंगलों में आग लगती है, इसके कठोर फल जमीन पर गिर जाते हैं। वे तब तक पड़े रहते हैं, जब तक वह वृक्ष नष्ट नहीं हो जाता। वृक्ष के नष्ट होने के साथ ये बीज उगना शुरू कर देते हैं।
साइकस के पौधे का अद्भुत सौंदर्य
साइकस के पौधे का अद्भुत सौंदर्य होता है। इसे सांगो पाम भी कहा जाता है। इसके पौधे आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल में पाए जाते हैं। इसका बड़ा तना लोगों का ध्यान खींचता है। वर्ष में एक बार इस पर नई पत्तियां आती हैं। यह पौधा फूल की तरह होता है। सजावट में इसका उपयोग होता है। साइकस को सूरज की तेज किरणों से बचाना पड़ता है। ऐसे में जंगल के बड़े-बड़े छायादार पेड़ों के बीच ये आसानी से अपना सौंदर्य बिखेर सकता है। अच्छी देखभाल करके एक खूबसूरत साइकस फूल को तैयार किया जा सकता है। इसमें साल में एक या दो बार बीज निकलता है। जिसका आकर फूल की तरह दिखाई देता है। साइकस का पौधा लगभग 50 दिन में फूल के रूप में नजर आने लगता है।
इस बारे में वीटीआर के क्षेत्र निदेशक एचके राय ने कहा कि जैव विविधता को ध्यान में रखते हुए चीड़ एवं साइकस को विकसित करने के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। स्वीकृत होते ही काम शुरू कर दिया जाएगा।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कृषि वानिकी विभाग प्रोफेसर डाॅ. आरके झा ने कहा कि चीड़ व साइकस इस क्षेत्र के लिए दुर्लभ प्रजाति हैं। इसे विकसित किया जाना जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण काम होगा।
चीड़ के औषधीय गुण
-चीड़ के गोद (गंधविरोजा) का गरारा करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।
-गंधविरोजा को कटे-जले पर लगाने से जल्दी घाव भरता है।
-शरीर में छोटी-छोटी फुंसियों के निकलने पर चीड़ के तेल से लाभ होता है।
-सरसों के तेल में चीड़ का तेल मिलकार नवजात को लगाया जाता है।\
वीटीआर में कहां-कहां लगाए जाएंगे पौधे
प्रक्षेत्र का नाम संबंधित कंपार्टमेंट
रघिया आर 22 और 28
मंगुराहां आर 40,41 व 44
गोबर्द्धना एस 32,33, 36 व 38