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मुजफ्फरपुर में AES को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट, इसलिए हुई थी 160 से अधिक बच्चों की मौत

केंद्रीय जांच टीम ने केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट। किसी खाद्य पदार्थ को नहीं माना जिम्मेदार। टीम ने बीमारी से बचाव के कई सुझाव भी दिए।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 09:25 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 10:27 PM (IST)
मुजफ्फरपुर में AES को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट, इसलिए हुई थी 160 से अधिक बच्चों की मौत
मुजफ्फरपुर में AES को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट, इसलिए हुई थी 160 से अधिक बच्चों की मौत

मुजफ्फरपुर [अमरेंद्र तिवारी]। मुजफ्फरपुर व इसके आसपास बच्चों पर कहर बरपाने वाली एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) का नाता किसी फल या खाद्य पदार्थ से नहीं, बल्कि तेज गर्मी से है। जब तापमान लगातार 40 डिग्री या उससे ज्यादा रहता है तो बच्चों के बीमार होने की संख्या बढ़ जाती है। केंद्रीय टीम की जांच और शोध में यह बात सामने आई है। टीम के प्रमुख वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ व राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के राष्ट्रीय सलाहकार डॉ. अरुण कुमार सिंह ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए बीमारी से बचाव के कई सुझाव भी दिए हैं। 

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 इससे पहले भी एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर सहनी ने अपने शोध में पाया था कि इस बीमारी का रिश्ता गर्मी से है। इसका प्रकाशन 2012 व 2013 में मेडिकल जर्नल में हुआ था। ज्ञात हो कि एईएस से उत्तर बिहार में इस वर्ष छह सौ से अधिक बच्चे पीडि़त हुए। इनमें से 160 ने दम तोड़ दिया।

अरब-राजस्थान भी रहा शोध का केंद्र बिंदु

डॉ. अरुण ने सर्वाधिक गर्मी प्रभावित इलाके को केंद्र्र बिंदु मानकर शोध किया। वह बताते हैं कि राजस्थान या सऊदी अरब में काफी गर्मी पड़ती है। लेकिन, अंतर यह है कि वहां हर साल गर्मी में एक तरह का तापमान रहता है। जबकि, मुजफ्फरपुर में हर साल गर्मी में तापमान एक समान नहीं रहता है। यहां जिस साल 40 डिग्री या उससे ज्यादा तापमान होता है, उस समय बच्चे बीमार होते हैं। शोध में पता चला कि वर्ष 2012 व 2014 में तापमान ज्यादा रहा। तब भी बच्चे प्रभावित हुए थे। इस साल भी 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान रहा, इसलिए ज्यादा बच्चे बीमार हुए। उनका मानना है कि किसी इंफेक्शन या वायरस से यह बीमारी नहीं हो रही।

कार्निटाइन की कमी पाई गई

जब वर्ष 2014 में एईएस का प्रकोप ज्यादा था, तब अमेरिका में बच्चों के खून व पेशाब की जांच कराई गई थी। इस साल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज, बेंगलुरु में जांच कराई गई। 2014 की तरह इस बार की भी रिपोर्ट सामान्य है। लेकिन, इस बार एक नई बात सामने आई कि बच्चों में कार्निटाइन की कमी मिली। यह शरीर में एनर्जी प्रोडक्शन में मदद करता है। इलाज के क्रम में कार्निटाइन की मात्रा दी गई तो बच्चे जल्द स्वस्थ हुए।

तेज धूप में निकलने और खेलने से हुए पीडि़त

बीमार बच्चों की पैथोलॉजी व मांसपेशियों की जांच हुई तो पाया गया कि उनका सिर्फ मस्तिष्क ही नहीं, बल्कि हार्ट व लीवर सहित दूसरे अंग भी प्रभावित हो रहे हैं। सबसे ज्यादा तीन से चार साल के बच्चे बीमार पाए गए। वे ऐसे बच्चे थे, जो पहली बार तेज धूप में निकले और दो-तीन दिन खेलते रहे। उसके बाद माइट्रोकांड्रिया ने एनर्जी बनाना कम कर दिया। बीमार हुए तो उनको बचाना मुश्किल हो गया।

टीम ने सरकार को ये दिए सुझाव

-सर्वाधिक गर्मी यानी मई-जून में गांव में बच्चों के खेलने की जगह बने, जहां अस्थायी या स्थायी टेंट या शेड बनाया जाए। वहां सुबह 11 से दो बजे के बीच छोटे बच्चे खेलें।

-मई-जून में आंगनबाड़ी सेंटर की ओर से बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जाए।

-परिजन बच्चों को दोपहर में नहीं जाने दें। ज्यादा से ज्यादा पानी दें।

-बच्चों को ज्यादा देर तक भूखे पेट नहीं रहने दिया जाए।

-गर्मी के दिन में शिविर लगाकर कार्निटाइन की जांच हो तथा उसकी आपूर्ति की जाए।

-यदि बच्चा बीमार हो तो तुरंत सरकारी अस्पताल पहुंचाया जाए।

-सरकारी अस्पताल में आइसीयू व्यवस्था को मजबूत किया जाए। 


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