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DMCH में लाखों खर्च के बाद भी वायरस पर शोध नहीं, लैब का ठीक से नहीं हो रहा उपयोग Darbhanga News

DMCH के पीजी में हर साल रिसर्च के लिए होता छह छात्रों का नामांकन। शोध के लिए छात्रों को हर माह दिया जाता अच्छा-खासा मानदेय। यहां बनीं दो आधुनिक लैब का ठीक से नहीं हो पा रहा उपयोग।

By Murari KumarEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2020 08:09 PM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2020 08:09 PM (IST)
DMCH में लाखों खर्च के बाद भी वायरस पर शोध नहीं, लैब का ठीक से नहीं हो रहा उपयोग Darbhanga News
DMCH में लाखों खर्च के बाद भी वायरस पर शोध नहीं, लैब का ठीक से नहीं हो रहा उपयोग Darbhanga News

दरभंगा, दिनेश राय। कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में देश-विदेश के वैज्ञानिक जुटे हैं। वहीं, डीएमसीएच (दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल) में विभिन्न तरह के वायरस पर शोध के लिए दो-दो लैब होने के बाद भी इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है। जबकि, इसके लिए छात्रों को हर माह मानदेय के रूप में बड़ी रकम भी दी जा रही है।

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डीएमसीएच के माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग के पीजी में हर साल छह छात्रों का नामांकन रिसर्च के लिए होता है। अभी कुल 18 छात्र हैं। इन छात्रों को हर साल 54 से लेकर 56 हजार रुपये तक मासिक मानदेय दिया जाता। इनके रिसर्च के लिए बीएसएल-2 (बॉयो सेफ्टी लेवल) वीआरडीएल (वायरोलॉजी रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लैब) और बीएसएल-3 वायरोलॉजी लैब हैं। रिसर्च कराने के लिए प्राध्यापक, सह प्राध्यापक तथा सहायक प्राध्यापक भी हैं। लेकिन, आज तक ऐसा कोई शोध नहीं हुआ जो चर्चा में हो।

यहां बना बीएसएल-3 लैब बिहार की पहली और पूवरेत्तर क्षेत्र की दूसरी वायरोलॉजी लैब है। इसकी स्थापना 2014 में हुई थी। इस पर पांच करोड़ 24 लाख खर्च हुए थे। इसकी गुणवत्ता की जांच के लिए भारत सरकार की चार सदस्यीय टीम आई थी। लैब में आरएनए, डीएनए व एक्सट्रैक्शन चैंबर समेत अन्य महत्वपूर्ण उपकरण लगाए गए हैं। यहां छह जून 2018 तक डेंगू, इंसेफेलाइटिस, स्वाइन फ्लू आदि बीमारियों की जांच की जाती थी, लेकिन किट नहीं होने से जांच बंद है।

वीआरडीएल का निर्माण जून 2018 में हुआ था। इसकी स्थापना इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, दिल्ली की अनुमति से हुई थी। यह पूरी तरह से आधुनिक है। इसमें रिसर्च एवं डायग्नोस्टिक दोनों की व्यवस्था है। रिसर्च होता है या नहीं इसकी जांच के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की टीम समय-समय पर आती है। लेकिन, स्थापना से अब तक रिसर्च की पहल नहीं हुई। हालांकि, बैक्टीरिया, फंगस इम्युनोलॉजी, पैरासाइट आदि पर रिसर्च कराए गए, लेकिन वायरस के क्षेत्र में कुछ भी नहीं हुआ।

कुछ वायरस पर शोध के लिए छात्रों को दिया गया वर्क

माइक्रोबॉयोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. आरएस प्रसाद बताते हैं कि छात्रों से रिसर्च कराने की योजना बना ही रहे थे कि कोरोना वायरस जैसी महामारी की समस्या आ गई। इस कारण तत्काल वायरस पर रिसर्च शुरू नहीं हो पाया। हालांकि, कुछ वायरस पर शोध के लिए पीजी छात्रों को वर्क दिया गया है। इस समय दोनों लैब में कोरोना की जांच हो रही है। प्राचार्य डॉक्टर एचएन झा का कहना है कि रिसर्च का मामला कई विभागों से जुड़ा है। इसमें कई तकनीकी कारण भी हैं।


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