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समस्याओं की वैतरणी में समा गए 'सपनों के घर', विकास से कोसो दूर बोर्ड कॉलोनी

सड़क और नाले के अभाव में बरसात में झील बन जाती है आवास बोर्ड कॉलोनी। 1993 में पानी टंकी का निर्माण हुआ। मोटर पंप लगे लेकिन लोगों को नहीं मिला पेयजल।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 04:11 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 07:10 AM (IST)
समस्याओं की वैतरणी में समा गए 'सपनों के घर', विकास से कोसो दूर बोर्ड कॉलोनी
समस्याओं की वैतरणी में समा गए 'सपनों के घर', विकास से कोसो दूर बोर्ड कॉलोनी

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। शहरी क्षेत्र के लोगों के 'एक घर हो सपनों ' का पूरा करने के लिए जिले के कांटी प्रखंड के दामोदरपुर में आवास बोर्ड कॉलोनी की स्थापना की गई थी। कॉलोनी विकास से कोसो दूर है। यहां विकास से जुड़ा कोई काम नहीं हुआ। जनप्रतिनिधियों ने न तो इस कॉलोनी की सुध ली और न ही यहां रहने वाले लोगों की। समस्याओं के बीच लोग यहां जिंदगी गुजार रहे हैं। आज भी पेयजल, जलजमाव समेत अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। कॉलोनी में सड़क का निर्माण नही हुआ। नाला निर्माण नहीं होने से जल निकासी की समस्या है। बरसात आते ही यहां के लोगों की रूह कांप जाती है।

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   इन दिनों यह कालोनी झील में तब्दील हो जाती है। लोगों को यहां से कहीं और ठिकाना तलाशना पड़ता है। यहां नाव चलने की स्थिति होती है। जलनिकासी की व्यवस्था नहीं होने के कारण यह स्थिति बरसात गुजरने के कई महीने बाद तक बनी रहती है। पेयजल के लिए यहां 1993 में ही पानी टंकी का निर्माण हो गया था। इसके लिए मोटर पम्प भी लगे। उस समय लगे विद्युत ट्रांसफार्मर भी पोल की शोभा बन कर रह गए। कॉलोनी में कुछ चापाकल से ही लोगों को पीने का पानी मिल पा रहा है।

बोले लोग-समस्याएं एक हो तो बताएं

यहां रहने वाले जनप्रतिनिधि की उपेक्षा से काफी आहत है। कहते हैं कि किसी को यहां रहने वालों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं। समस्याओं को सहना अब नियति बन चुकी है। शंभूशरण ठाकुर कहते हैं कि नाला नहीं होने से बरसात में कॉलोनी पानी के बीच होती है। यहां चलने के लिए सड़क नहीं है। अशोक ओझा, केशव कुमार, मो. ताजिम आदि कहते हैं कि समस्या एक हो तब न बताएं।

आवंटन नहीं होने से खंडहर हो चुके मकान

पिछले कई वर्षो से यहां के मकानों का आवंटन नहीं हुआ है। आवंटन नहीं होने से खाली मकानों पर अवैध कब्जा है। अधिकतर मकान ऐसी स्थिति में पहुंच चुके हैं जिन्हें मकान के बदले खंडहर कहना ज्यादा मुनासिब होगा। जर्जर मकान कभी भी ढह सकते हैं। निर्माण के लगभग दो दशक के बाद भी रख- रखाव का अभाव एवं अतिक्रमणकारियों की दोहरी मार झेल रहे अधिकतर मकान ध्वस्त होने की स्थिति में हैं।

तीन ग्रुप के हैं यहां मकान

यहां तीन ग्रुप के मकान हैं। एमआइजी वर्ग में मकानों की संख्या 102 है। इसमें मात्र 8 का ही आवंटन है, शेष 94 मकानों पर अवैध कब्जा है। उसी तरह एलआइजी वर्ग में मकानों की संख्या 93 है। जिसमें 55 का आवंटन हुआ, 38 मकानों में लोग कब्जा कर के रह रहे हैं। वहीं, जनता वर्ग में 87 मकान हैं, जिनमें 55 आवंटित हैं, इस वर्ग के 32 मकानों पर अवैध कब्जा है। विभागीय सूत्रों की मानें तो आवंटित मकानों में भी कई किश्त जमा नहीं करने के कारण रद किए जा चुके हैं। कार्यपालक अभियंता विजय कुमार ने कहा कि जन निजी भागीदारी योजना के तहत यहां आवासीय व व्यवसायिक मकानों का निर्माण होना है। इसको लेकर प्रयास किया जा रहा हैं।


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