एक सौ से अधिक विद्यालय खुले आसमान के नीचे, नहीं बदली दशा और दिशा
स्कूल खुलने और बंद होने का समय मौसम के मिजाज पर निर्भर। सरकारी स्कूलों में बैठने का मुकम्मल इंतजाम नहीं है। बेंच-डेस्क की कमी से बच्चे जमीन पर बैठने को मजबूर हैं।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के सरकारी वादे एवं जमीनी हकीकत में अब भी काफी अंतर है। सरकारी स्कूलों में अब भी बच्चों के बैठने का मुकम्मल इंतजाम नहीं है। बेंच-डेस्क की कमी से बच्चे जमीन पर बैठने को मजबूर हैं। यानी फर्श पर बैठकर अर्श तक पहुुंचने की जद्दोजहद कर रहे हैं। ढ़ाई दशक बाद भी प्राथमिक विद्यालय कल्याणी बाड़ा की दशा-दिशा में कोई बदलाव नहीं हो सका।
मौसम के मिजाज से स्कूल खुलते और बंद होते है। तत्कालीन जिलाधिकारी ने 1993 में शहरी क्षेत्र में कई प्राथमिक विद्यालय खोलने की स्वीकृति दी। जितने भी स्कूल खोले गए, उन सबों के पास न तो जमीन और न भवन थे। मंदिर, मस्जिद व खुले आसमान के नीचे स्कूल चल रहे हैं। इसी कड़ी में प्राथमिक विद्यालय कल्याणी बाड़ा खोला गया। यह स्कूल सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे चल रहा है।
ढ़ाई दशक से अधिक की अवधि में किसी सांसद, विधायक व अन्य जनप्रतिनिधि ने किसी भी तरह की पहल नहीं की। उधर, स्कूल की प्रभारी प्रधानाध्यापक रंजू कुमारी ने बताया कि कई बार पहल करने के बावजूद जमीन नहीं मिल सकी। ऐसे में सड़क पर दरी बिछाकर बच्चों को पढ़ाया जाता है।
नगर क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से अधिक स्कूल भूमिहीन
नगर क्षेत्र में करीब डेढ़ दर्जन से अधिक स्कूल भूमि और भवनहीन हैं। ये स्कूल मंदिर, मस्जिद या सार्वजनिक स्थानों पर चलते हैं। कन्या मवि- सादपुरा बालक को प्रावि सादपुरा में शिफ्ट किया गया है। मवि आमगोला, प्रावि आंबेडकरनगर, प्रावि सिकंदरपुर मुसहर, प्रावि बहलखाना मुसहर व प्रावि बर्निंगघाट, उर्दू मवि मिठनपुरा, बीएमपी उर्दू मकतब इस्लामपुर, उर्दू प्रावि इस्लामपुर कॉलेज गेट, उर्दू प्रावि कच्ची सराय, उर्दू प्रावि कन्हौली डीह भूमिहीन व भवनहीन हैं। जिले के विभिन्न प्रखंडों में 100 से अधिक स्कूल भूमि व भवनहीन हैं। इसमें सबसे अधिक मुशहरी में 34 स्कूल हैं।
स्कूल के स्थल चयन में राजनीतिक लाभ अधिक
स्कूल की नींव रखने के पीछे वहां के बच्चों को बेहतर शिक्षा के बजाय राजनीतिक लाभ ज्यादा रहा है। ग्रामीण इलाकों में प्रशासन में अच्छी पकड़ रखने वाले राजनीतिज्ञ घर के नजदीक स्कूल खोलवा लेते हैं। क्योंकि अधिकांश स्कूल को ही मतदान केंद्र बनाया जाता है। स्कूल खोलने के समय जमीन व भवन की चिंता नहीं की गई। अब न जमीन और न भवन ही मिल रहा है। जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. विमल ठाकुर ने कहा कि शहरी क्षेत्र के स्कूल के लिए जमीन नहीं मिल सकी है। कई बार पहल की जा चुकी है। जमीन उपलब्ध होने के साथ ही भवन निर्माण कराया जाएगा।