साल का अंतिम ग्रहण टला, नए साल में 21 जून को लगेगा अगला सूर्यग्रहण Muzaffarpur News
ग्रहण को लेकर बुधवार की रात साढ़े आठ बजे ही बंद हो गए थे पट दोपहर बाद खोले गए पट। ग्रहण के बाद लोगों ने स्नान कर किया भोजन। अब अगला सूर्यग्रहण लगेगा नए साल में 21 जून को।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। इस साल का अंतिम सूर्यग्रहण गुरुवार को दिखा। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं था, इसलिए चंद्रमा की छाया सूर्य का पूरा भाग नहीं ढक पाई। ग्रहण की अवधि सुबह करीब तीन घंटे तक रही। ग्रहण के दौरान कई मंदिरों में सामूहिक जाप भी किया गया। ग्रहण की शुरुआत सुबह करीब साढ़े आठ बजे हुई, जो साढ़े ग्यारह बजे तक रहा। सूर्यग्रहण के दौरान लोगों ने खानपान से परहेज किया।
बाबा गरीबनाथ मंदिर सहित विभिन्न शिवालय, क्लब रोड स्थित देवी मंदिर, मां बगलामुखी मंदिर, पुरानी धर्मशाला चौक स्थित मां महामाया संतोषी माता मंदिर, हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर व ब्रह्मपुरा स्थित बाबा सर्वेश्वरनाथ मंदिर सह महामाया स्थान सहित विभिन्न मंदिरों के पट बंद रहे। ग्रहण समाप्त होने के बाद लोगों ने स्नान-दान किए। स्नान करने के बाद भोजन ग्रहण किया। मालूम हो कि सूर्यग्रहण को लेकर बुधवार की रात साढ़े आठ बजे ही मंदिरों के पट बंद हो गए थे, जो गुरुवार को दोपहर बाद खोले गए।
रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पंडित रमेश मिश्र और हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पंडित रवि झा ने बताया कि ग्रहण के समय सूर्य के साथ बुध, गुरु, शनि, चंद्र और केतु, धनु राशि में एक साथ रहे। अब अगला सूर्यग्रहण नए साल में 21 जून को लगेगा। जो भारत सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में भी देखा जा सकेगा।
ग्रहण का विशेष महत्व
खगोल शास्त्री ग्रहण को भले ही सिर्फ एक खगोलीय घटना मानते हों, लेकिन हिन्दू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। जानकारों के मुताबिक, ग्रहण केदौरान पृथ्वी पर सूक्ष्म तत्वों की हलचल भी बंद हो जाती है। शारीरिक और मानसिक क्रियाओं में बाधा आती है। इसका प्रभाव जड़, चेतन एवं जनजीवन पर सामूहिक रूप से पड़ता है। ज्योतिषविद् विमल कुमार लाभ बताते हैं कि ग्रहण का प्रभाव दूर करने के लिए हमें आध्यात्म का सहारा लेते हुए पूजा-पाठ करना चाहिए।
सूर्य व चंद्र को अपना शत्रु मानते राहु और केतु
सदर अस्पताल स्थित मां सिद्धेश्वरी दुर्गा मंदिर के पुजारी पंडित देवचंद्र झा बताते हैं कि ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय देव व दानवों के बीच अमृत पान के लिए हुए विवाद को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। उन्होंने देव और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। दैत्यों की पक्ति में स्वर्भानु नाम का दैत्य भी बैठा हुआ था। उसे आभास हुआ कि मोहिनी रूप को दिखाकर दैत्यों को छला जा रहा है। ऐसे में वह देवताओं का रूप धारण कर चुपके से सूर्य और चंद्रदेव के पास आकर बैठ गया। जैसे ही उसे अमृत पान को मिला, सूर्य और चंद्रदेव ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूप धारण किए भगवान विष्णु को अवगत कराया।
इससे पहले कि स्वर्भानु अमृत को अपने कंठ से नीचे उतारता भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। चूॅकि उसके मुख ने अमृत चख लिया था, इसलिए उसका सिर अमर हो गया। उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसके बाद से राहु और केतु सूर्य देव और चंद्र को अपना शत्रु मानते हैं। ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। यदि किसी की कुंडली में राहु और केतु गलत स्थान पर हों तो उसके जीवन में भूचाल ला देते हैं। ये इतने प्रभावशाली हैं कि सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण भी इनके कारण ही लगता है।