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बचपन में भूतों का जिक्र छिड़ते ही नेताजी हो जाते थे रोमांचित

सुभाष की कहानी नामक पुस्तक में नेताजी के अनछुए पहलू आए सामने समस्तीपुर की प्रो. ईशा सिन्हा ने बांग्ला में लिखी इस पुस्तक का किया अनुवादओडिशा के कटक में बीता था नेताजी सुभाषचंद्र बोस का बचपन ।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 08:24 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 10:46 PM (IST)
बचपन में भूतों का जिक्र छिड़ते ही नेताजी हो जाते थे रोमांचित
'सुभाष की कहानी' नामक पुस्तक में है भूतों का जिक्र।

 समस्तीपुर { मुकेश कुमार } । अपने नेताजी को भी बचपन में भूतों से डर लगता था। अदम्य साहस और बहादुरी के पर्याय नेताजी सुभाषचंद्र बोस रात में अकेले कहीं जाने और सोने में डरते थे। इसका जिक्र 'सुभाष की कहानी' नामक पुस्तक में है। बांग्ला भाषा में मनिता डे द्वारा लिखित और नेताजी भावना मंच ट्रस्ट की ओर प्रकाशित इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद समस्तीपुर निवासी व ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के गृह विज्ञान विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ईशा सिन्हा ने किया है। पुस्तक में नेताजी के बचपन तथा आजाद हिंद फौज से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं।

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घर के सेवक रखते थे उनका ख्याल :

बात वर्ष 1901 के आसपास की है। उन दिनों नेताजी का बचपन तत्कालीन उड़ीसा (अब ओडिशा) के कटक शहर में गुजर रहा था। उनके पिता जानकीनाथ बोस बड़े वकील व जनसेवी थे। मां प्रभावती देवी घर संभालने में व्यस्त रहती थीं। वे बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। ऐसे में नन्हे सुभाष बाबू का अधिकतर समय सेवकों और बावर्ची के साथ गुजरता था। परिवार के सदस्यों की तरह रह रहे सेवक उन्हेंं खिलाते-पिलाते और बच्चों की कहानी सुनाकर सुलाते थे। उनके घर के आसपास बहुत से पेड़-पौधे थे। सेवक अक्सर पेड़ों की ओर इशारा कर उन्हेंं भूतों के कारनामे की बनावटी कहानियां सुनाते थे। उनका बावर्ची खुद को भूतों का ओझा बताकर तरह-तरह के करतब दिखाता था। हाथ में रोज नकली जख्म बनाकर बालक सुभाष को दिखाता था। 

उम्र के साथ खत्म हुआ डर :

किताब में जिक्र है कि इन कहानियों का उनके बालमन पर गहरा असर हुआ था। हालांकि, डरने के बावजूद कहानी सुनाने की जिद करते थे। भूतों पर पेड़ों के रहने और बावर्ची के जख्म के निशान के रहस्य जानने को उत्सुक रहते थे। उम्र के साथ उनका डर खत्म हो गया। 

मुखर्जी कमीशन की सदस्य ने सौंपी थी अनुवाद की जिम्मेदारी :

प्रो. ईशा सिन्हा का कहना है कि पुस्तक को हिंदी में अनुवाद करने का दायित्व तब मिला, जब वे पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय एवं ब्रिटिश काउंसिल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करने 2005 में गई थीं। वहीं, नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु के रहस्य की जांच के लिए सरकार द्वारा गठित मुखर्जी कमीशन से जुड़ीं पूरबी राय ने उन्हेंं जिम्मेदारी सौंपी। प्रो. सिन्हा का कहना है कि अनुवाद पूरा हो गया है। पुस्तक प्रकाशनाधीन है। जल्द ही लोगों के सामने होगी।


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