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Navratri 2022: कलश स्थापना कल, सही टाइमिंग, पूजन विधि व सामग्री के बारे में यहां सबकुछ पढ़ें

Navratri 2022 Date Bihar कलश स्थापना के लिए श्रद्धालु आज ही पूजन सामग्री खरीद रहे हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सत्यदेव मिश्र का सुझाव है कि वास्तुशास्त्र का पालन करते हुए उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में इसे स्थापित किया जाना चाहिए।

By JagranEdited By: Ajit kumarPublished: Sun, 25 Sep 2022 01:12 PM (IST)Updated: Sun, 25 Sep 2022 01:12 PM (IST)
Navratri 2022: कलश स्थापना कल, सही टाइमिंग, पूजन विधि व सामग्री के बारे में यहां सबकुछ पढ़ें
सुबह में नहीं कर पाए तो दोपहर में कलश स्थापना का मुहूर्त। फाइल फोटो

मोतिहारी, जागरण संवाददाता। Navratri 2022 Date Bihar: शारदीय नवरात्र सोमवार से प्रारंभ हो रहा है। श्रद्धालु नवरात्र की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जुटा रहे हैं। बाजारों में भी चहल-पहल है। लोग पूजन सामग्री से लेकर अन्य आवश्यक सामानों की खरीदारी में जुटे हैं। खासकर मां देवी दुर्गा व उनके विभिन्न स्वरूपों की तस्वीरों के साथ कलश व अन्य पूजन सामग्री की खरीदारी जोरों पर है। वहीं फल आदि की खरीदारी भी खूब चल रही है। वहीं चौक-चौराहों पर होनेवाली दुर्गापूजा की तैयारी भी अब युद्धस्तर पर की जा रही है। पंडाल से लेकर मूर्ति निर्माण तक में तेजी से काम किया जा रहा है।

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ईशान कोण में करें कलश स्थापन

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सत्यदेव मिश्र ने बताया कि वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्थान माना जाता है। इस दिशा को देवस्थान माना जाता है और यहां सर्वाधिक उर्जा रहती है। नवरात्र में इसी कोण में कलश की स्थापना करना बेहतर होगा। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:11 मिनट से 07:51 मिनट तक है। वहीं सुबह 06:11 मिनट से 07: 42 मिनट तक चौघड़िया का अमृत्त सर्वोत्तम मुहूर्त है। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त को भी कलश स्थापना के लिए शुभ माना जाता जाता है।

भगवती को लाल रंग सबसे प्रिय

दोपहर 11:48 मिनट से 12:36 मिनट के बीच अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते है। कलश स्थापना के लिए मिट्टी का कटोरा, जौ, साफ मिट्टी, कलश, रक्षा सूत्र, लौंग, इलाइची, रोली, कपूर, आम के पत्ते, साबुत, सुपारी, अक्षत, नारियल, फूल, फल आदि रखना चाहिए। मां भगवती को लाल रंग सबसे प्रिय है। चौकी पर लाल रंग का नया वस्त्र बिछाने के अलावा माता के लिए लाल चुनरी व कुमकुम जरूरी है। मां को चुनरी के साथ-साथ सुहाग का सारा सामान चढ़ाना जाता है। फिर घर की सुहागिन महिलाएं इसे प्रसाद के स्वरूप धारण करती है। सुहाग के सामान के साथ माता को मिठाई, फल, मेवा अर्पित करना लाभकारी होता है।

माता दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय शारदीय नवरात्रि

महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय व आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी के अनुसार दुर्गापूजा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक के महापर्व को हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 26 सितंबर सोमवार से 5 अक्टूबर बुधवार तक दुर्गापूजा मनाई जाएगी।

नवरात्रि के नौ दिनों का विशेष महत्व होता है। देवी के अलग-अलग नौ स्वरूपों की अराधना की जाती है। सोमवार के दिन नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण इस दिन मां दुर्गा हाथी की सवारी करते हुए पृथ्वी पर आएंगी। देवी भागवत पुराण के अनुसार जब माता दुर्गा नवरात्रि पर हाथी की सवारी करते हुए आती हैं। तब उस वर्ष में वर्षा होती है एवं विश्व भर में मंगल कार्य होते रहते हैं। धर्मग्रंथ एवं देवी भागवत पुराण के अनुसार शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। 


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