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नमो देव्यै महा देव्यै : बालिका शिक्षा व कन्या सुरक्षा की दिशा में समर्पित है रश्मि मोहन का कार्य

बेटियों को ही मानतीं बेटा। चला रहीं परिवार की गाड़ी समाज सेवा के कार्यो में विशेष रुचि। बेटियों को ही बेटा मानकर बढ़ा-लिखा रही हैं। अपनी इस चाहत को वह अन्य परिवारों में भी देखना चाहती हैं। इसलिए लोगों को इसके लिए प्रेरित करती हैं।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 09:22 AM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 01:41 PM (IST)
नमो देव्यै महा देव्यै : बालिका शिक्षा व कन्या सुरक्षा की दिशा में समर्पित है रश्मि मोहन का कार्य
पति संजय कुमार गुप्ता का उनको भरपूर सहयोग मिल रहा है।

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। शहर की व्यवसायी बहू रश्मि मोहन बालिका शिक्षा व कन्या सुरक्षा को समर्पित हैं। उन्हें सिर्फ दो बेटियां हैं। बेटों की वह चाहत नहीं रखतीं। बेटियों को ही बेटा मानकर बढ़ा-लिखा रही हैं। अपनी इस चाहत को वह अन्य परिवारों में भी देखना चाहती हैं। इसलिए लोगों को इसके लिए प्रेरित करती हैं। 

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बेटा नहीं होने का मलाल नहीं

रश्मि मोहन एक दशक से परिवार की गाड़ी चला रही हैं। वह दो बेटियों की मां हैं। बड़ी बेटी बार्बी बीटेक कर रही है और छोटी अस्मी अभी छठी कक्षा में है। बेटा नहीं होने का उनको कोई मलाल नहीं, क्योंकि बेटा एवं बेटी के बीच वह किसी प्रकार अंतर नहीं मानतीं। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रश्मि मोहन की शादी सरैयागंज निवासी संजय गुप्ता से बिना तिलक-दहेज के आदर्श तरीके से हुई। शादी के बाद उन्होंने घर का चौका-चूल्हा करने की जगह पति का व्यवसाय (रेडीमेड कपड़ा) संभालने में रुचि दिखाई। उसी का नतीजा है कि शहर के जाने-माने व्यवसायियों में उनकी गिनती है।

व्यवसाय के साथ वह सामाजिक कार्यो में भी रुचि

राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर करने वाली रश्मि ने ह््यूमन राइट्स विषय में भी डिग्री हासिल की है। व्यवसाय के साथ वह सामाजिक कार्यों में भी रुचि लेती हैं। सामाजिक संस्था युग सृजन से जुड़कर बालिका शिक्षा एवं कन्या सुरक्षा के कई कार्यक्रमों का आयोजन कर चुकी हैं। वह कहती हैं कि जब तक महिलाएं आगे बढ़कर मिसाल कायम नहीं करेंगी, तब तक दबी-कुचली रहेंगी। महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा ताकि उनको किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़े। अपने पैरों पर खड़ा होकर देश एवं विदेश में कई महिलाएं प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। रश्मि को कुछ करने की चाहत बचपन से ही थी। स्काउट में शामिल होकर देश के कई हिस्सों का भ्रमण किया। इससे उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ। इसी के बल पर वह अपना फार्म चला रही है। वह चाहती हैं कि उनकी दोनों बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाएं ताकि वे भी देश एवं समाज के लिए मिसाल पेश करें। पति संजय कुमार गुप्ता का उनको भरपूर सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कभी उनके काम में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया।


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