' मुझे नहीं रहना सीएम ' वाले नीतीश कुमार के बयान के बाद चढ़ा मुजफ्फरपुर का राजनीतिक पारा
विगत तीन दिनों से जारी घटनाक्रम की वजह से मुजफ्फरपुर का राजनीतिक माहौल गरमा गया है। न केवल एनडीए वरन महागठबंधन के नेताओं के बीच तरह-तरह की चर्चाएं आरंभ हो गई हैं। अभी उन नेताओं की परेशानी बढ़ी मालूम हो रही जिन्होंने हाल में ही पाला बदला है।
मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ' मुझे नहीं रहना सीएम ' वाले बयान ने जिले के राजनीतिक तापमान को इस ठंड में भी काफी बढ़ा दिया है। इससे न केवल एनडीए खेमे में हलचल महसूस की जा रही वरन महागठबंधन का कुनबा भी नए समीकरण पर बात करता हुआ दिख रहा है। इन स्थितियों के बीच उन नेताओं की हालत खराब हो रही है जिन्होंने हाल में ही संपन्न चुनाव के दौरान अपना पाला बदला था। यहां के लोग भी अब यह कहने लगे हैं कि यदि कोई भी नई संभावना बनती है तो फिर इन राजनेताओं का भविष्य क्या होगा ?
सीएम के बयान के बाद सियासत में उबाल
किसी ने सही ही कहा है कि राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं। वर्ष 2015 में संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत के बाद शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यहां राजग का शासन होगा। लेकिन, बीच में ही जदयू और भाजपा ने हाथ मिलाया और ऐसा संभव हुआ। उसी तरह से बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के परिणाम आने और नई सरकार के शपथ लेने के बाद राजनीतिक रूप से स्थिरता का माहौल बनता जा रहा था। हालांकि शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं की ओर से सीएम को महागठबंधन में आने का न्योता दिया जा रहा था लेकिन, बदलाव दूर की कौड़ी लग रही थी। अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद राजनीतिक घटनाक्रम में अचानक तेजी आ गई। इसके बाद जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान जब सीएम नीतीश कुमार ने कहा, मुझे अब सीएम नहीं रहना, इसके बाद तो जैसे भूचाल ही आ गया है।
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शुरू हुआ राजनीति का गुणा-गणित
ऐसे में राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील मुजफ्फरपुर में भी गुणा गणित का दौर आरंभ हो गया है। खासकर अब लोग इन संभावनाओं के बारे में सोचने लगे हैं कि यदि इतिहास दोहराता और महागठबंधन की सरकार बन जाती है तो क्या होगा? गायघाट से जदयू प्रत्याशी रहे महेश्वर यादव चुनाव से पहले राजद में थे। कांटी और कुढ़नी के वर्तमान विधायक चुनाव से पहले जदयू का हिस्सा हुआ करते थे। बोचहां विधायक अभी वीआइपी में हैं। चुनाव से पहले लालटेन थामे हुए थे। ऐसे में इनलोगों का क्या होगा? हालांकि कुछ लोग भाजपा की रणनीति और डैमेज कंट्रोल की क्षमता के बारे में भी बात कर रहे हैं। उनका मानना है कि केंद्र में जबतक एनडीए की सरकार है तबतक यहां बदलाव उतना सरल नहीं होगा, जितना पिछले कार्यकाल के बीच में संभव हो सका। खैर, जो भी हो, जिले के लोगों को नववर्ष से ठीक पहले चुनावी समीकरण पर विचार करने का एक मौका हाथ लग गया है।
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