मुजफ्फरपुर के बेबस कोतवाल अपराध रोकने के लिए कर रहे तंत्र-मंत्र
कई कोतवाल तो थाना पहुंचने से पहले अपने आराध्य को याद कर पूजा-पाठ करने के बाद ही घर से निकलते हैं। उनके माथे पर चंदन-टीका लगा रहता है। थाना पर आने से पहले वे भगवान से गुहार लगाते हैं कि उनके क्षेत्र में कोई वारदात नहीं हो।
मुजफ्फरपुर, [ संजीव कुमार]। ताबड़तोड़ आपराधिक घटनाओं पर कैसे नियंत्रण पाया जा सके, इसकी रणनीति बनाने व अपराधियों पर लगाम कसने के बदले विभिन्न थानों के कोतवाल ईश्वर की शरण में जा रहे हैं। कई कोतवाल तो थाना पहुंचने से पहले अपने आराध्य को याद कर पूजा-पाठ करने के बाद ही घर से निकलते हैं। उनके माथे पर चंदन-टीका लगा रहता है। थाना पर आने से पहले वे भगवान से गुहार लगाते हैं कि उनके क्षेत्र में कोई वारदात नहीं हो। कोतवालों में मन में पल-पल खौफ समाया रहता है। रात अच्छी तरीके से कट जाए तो दिन की चिंता सताती रहती है। दो कोतवाल तो ऐसे मिले हंै जो तंत्र-मंत्र का सहारा लेने के लिए दूसरे जिले के एक बाबा के पास गए थे। बाबा ने थाना क्षेत्र में शांति बनी रहे इसके लिए थाना व घर पर पूजा-पाठ कराने की सलाह दी, ताकि उनकी कुर्सी बची रहे।
वर्दीधारियों की रणनीति विफल
बेखौफ लुटेरों ने छुड़ाया पसीना बेखौफ लुटेरे वर्दीधारियों को कड़ाके की इस ठंड में भी पसीना छुड़ाए हुए हैं। शहर मेें हर दिन कहीं न कहीं लूट की वारदात को अंजाम दिया जा रहा है और इनपर नकेल कसने में वर्दीधारियों की रणनीति विफल साबित हो रही है। इसका नतीजा यह है कि विभिन्न थाना क्षेत्रों में ताबड़तोड़ लूट की वारदात हो रही है। अपराधियों द्वारा बात-बात पर गोलीबारी की जा रही है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाके में वे बेलगाम हो चले हैं। उनपर नकेल कैसे कसी जाए इसकी रणनीति तैयार नहीं कर जेब गर्म करने की योजना में दिन-रात कोतवाल व अन्य वर्दीधारी लगे रहते हैं। कई कोतवाल तो थाने पर दिखते तक नहीं हैं। वे घर से ही थाना चलाते हैं। अगर कोई थाने पर मिलने आया तो उसे बताया जाता है कि साहब विशेष काम में लगे हैं।
थाने में हो रहे खेल पर साहब की नजर नहीं
थाने में हो रहे खेल पर साहब की नजर नहीं है। तभी तो प्राथमिकी दर्ज कराने से लेकर उसकी कॉपी देने के बदले मुंशी द्वारा जेब गर्म करने को कहा जाता है। जबकि साहब के पास इसकी शिकायत भी अक्सर पहुंचती ही रहती है, लेकिन साहब की तरफ से उन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होने से मुंशी बेलगाम हो चुके हैं। किसी भी काम के लिए पीडि़त को थाने पर जेब गर्म करने को खुलेआम बोला जाता है। अभी गत दिनों की ही बात है जब मंदिर वाले थाने के मुंशी के कारनामे की शिकायत ऊपर के हाकिम के पास पहुंची थी तो उन्होंने इसका संज्ञान लिया। इसकी जांच कराई और त्वरित कार्रवाई करते हुए मुंशी को निलंबित कर दिया था। हैरत की बात है कि इसके बाद भी विभिन्न थानों में तैनात मुंशी ने इससे कोई सीख नहीं ली। उनकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं हो रहा है।
निहत्थे जवानों को खुद की सुरक्षा का भय
निहत्थे जवानों के भरोसे शहर की सुरक्षा छोड़ दी गई है। ये जवान मानदेय वाले हैं। आजकल शहर के विभिन्न चौराहों पर दो-चार जवानों को कड़ाके की ठंड भरी रात में ठिठुरते हुए देखा जा रहा है। पूछने पर बताते हैं कि साहब का फरमान है। इसलिए डयूटी में तैनात हैं। इनके पास कोई हथियार नहीं होता है। भला ठंड की रात में ये डयूटी क्या करें। आग जलाकर ठंड से बचने की कोशिश करते रहते हैं। ऐसे में अब सवाल उठता है कि हथियार नहीं रहने के कारण ये जवान दूसरे की खाक सुरक्षा करेंगे। इन्हें तो खुद की सुरक्षा का भय सताता रहता है। इन जवानों की तैनाती के कारण थाने से निकलने वाल गश्ती दल भी निश्चिंत होकर शिथिल पड़ जाता है। वह एक जगह पर पेट्रोलिंग गाड़ी को लगाकर आराम फरमाता रहता है।