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मुजफ्फरपुर: गाड़ी का कभी इस्तेमाल ही नहीं, भाड़े के नामपर लाखों रुपये खर्च

जिला पंचायती राज पदाधिकारी करते निजी नंबर की गाड़ी का इस्तेमाल राशि दूसरी टैक्सी नंबर की गाड़ी में भेजी जाती। प्रशाखा के नाजिर ने कहा-गलत तो हो रहा मगर इसमें वह कुछ नहीं करते आडिट में भी इसपर उठाई गई थी आपत्ति।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 06:43 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 06:43 AM (IST)
मुजफ्फरपुर: गाड़ी का कभी इस्तेमाल ही नहीं, भाड़े के नामपर लाखों रुपये खर्च
निजी नंबर की गाड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा सरकार के नियम के विरुद्ध है। फोटो- जागरण

मुजफ्फरपुर, जासं। गड़बडिय़ों को रोकने के लिए सरकार विभागों में प्रखंड से जिला स्तर पर पदाधिकारियों की नियुक्ति करती है। मगर जिले में पदाधिकारी के स्तर से ही बड़ी-बड़ी गड़बडिय़ां की जा रही हैं। जिला पंचायती राज पदाधिकारी मो. फैयाज अख्तर के लिए जिस गाड़ी का लाखों रुपये भाड़ा दिया गया उसका कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया। उसकी जगह निजी नंबर की गाड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा किया जाना सरकार के नियम के विरुद्ध है। नियम के अनुसार सरकारी कार्यालयों में भाड़े पर उसी वाहनों का इस्तेमाल किया जाएगा जिसमें टैक्सी नंबर (पीले रंग का) हो। अब यह जांच का विषय है कि जिस वाहन के नामपर सरकार के लाखों रुपये खर्च किए गए वह किसका है। जिला पंचायती राज कार्यालय में दर्ज रिकार्ड के अनुसार पहले निजी नंबर के वाहन का इस्तेमाल डीपीआरओ करते थे। साथ ही उसी गाड़ी के नामपर भाड़ा भी दिया जाता था। ऑडिट में आपत्ति के बाद भाड़ा किसी टैक्सी नंबर के गाड़ी के नामपर जाने लगा, मगर वाहन नहीं बदला। यह पूर्व से इस्तेमाल की जाने वाली निजी नंबर की ही गाड़ी रही। पूछे जाने पर प्रशाखा के नाजिर ने भी बताया कि जो गाड़ी इस्तेमाल हो रही उसकी जगह दूसरी के नामपर भाड़ा दिया जा रहा है। यह भी माना कि सही नहीं हो रहा है। मालूम हो कि किसी गाड़ी को करीब 25 हजार रुपये प्रतिमाह भाड़ा दिया जाता है। इस तरह एक वर्ष में करीब तीन लाख रुपये इस मद में खर्च किए जाते हैं।

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नियम के विरुद्ध तो गलत इस्तेमाल का भी अंदेशा

पंचायती राज प्रशाखा में इस तरह की गड़बड़ी सरकार के नियम के विरुद्ध तो है ही। यहां सवाल भी उठ रहा कि जिस वाहन के नामपर भाड़ा दिया जा रहा उसका इस्तेमाल कहां हो रहा। अगर वह वाहन किसी आपराधिक घटना में प्रयुक्त हो जाए तो उसे इस आधार पर शक का लाभ भी मिल सकता है कि सरकारी रिकॉर्ड में उसका किसी कार्यालय के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।  


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