मुजफ्फरपुर : याद तो होगा, ठीक एक साल पहले जनता कर्फ्यू हुआ और देखते देखते सबकुछ बदल गया
सफाई व स्वास्थ्य को लेकर सभी हो गए सजग आत्मनिर्भर बनने की बढ़ी क्षमता। हालांकि पूरी व्यवस्था ने लाेगों की आर्थिक हालत में गहरा प्रभाव छोड़ा है। हर कोई इससे प्रभावित हुआ और अभी तक उससे उबर नहीं सका है।
मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। कोरोना संक्रमण के चलते पिछले साल 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया था। प्रधानमंत्री की इस अपील का व्यापक असर हुआ। इसका हर किसी ने पालन किया। ट्रेन, बस आदि का परिचालन बंद रहा। लोग घरों में रहे और सड़कों पर सन्नाटा रहा। लोगों ने कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में शंख, थाली और ताली आदि बजाई थी।
अचानक चारों ओर बंदी हो जाएगा यह सोचा भी नहीं था
सांसद अजय निषाद ने कहा कि कोरोना को लेकर अचानक सबकुछ हुआ। जनता कर्फ्यू के पहले दिल्ली गए। अचानक जनता कफ्र्यू, उसके बाद लगा कि कुछ मौका मिलेगा। लेकिन चारों तरफ बंद। जाएं तो जाएं कहां। पिछले साल की याद करने पर मन घबरा जाता है। करीब दो माह बाद प्रशासन से आर्डर लेकर यहां आया। उसके बाद जनता के बीच लगातार राहत व बचाव में लगे। यहां पीएम कोविड केयर अस्पताल बना। इससे आम लोगों को काफी राहत मिली। समाज में बदलाव की बात करें तो सबसे अच्छा रहा कि हर आदमी परिवार के साथ साथ रहने का आदी हुआ। बचत की प्रवृति बढ़ी। जंक फूड व रेस्तरां का भोजन किए बिना आराम से स्वस्थ रह सकते हैं, यह प्रवृत्ति बढ़ी। एक यह भी शिक्षा मिली कि इस कठिन हालत में परिवार ही आपका सबसे बड़ा मददगार है। बीमारी में वह पहले साथ है। मास्क लगाने व सफाई के प्रति सजगता बढ़ी है।
मास्क हो गया जरूरी
भाजपा के जिलाध्यक्ष रंजन कुमार ने बताया कि जनता कर्फ्यू ने जीवनशैली को बदल दिया। अब लोग मास्क का प्रयोग कर रहे हैं। एक दूसरे से मिलने के समय शारीरिक दूरी नियम का ध्यान भी रखते है। यूं कहे तो पूरी जीवन शैली, काम करने की शैली बदल गई है। स्वच्छता भी जीवन का एक अंग हो गया है।
काम के घंटे का टूटा मिथक
सहजानंद कॉलानी निवासी सी मैक्स मेरिन सर्विसेज के संचालक कैप्टन घनश्याम कुमार ने बताया कि पहले एक ट्रेंड था कि सुबह कार्यालय जाना है। नौ बजे से काम करना है और शाम को घर लौट आना है। इसमें बदलाव आया है। अब सुबह-सुबह घर से ही काम पर लग जाते हैं। काम के घंटे की बाध्यता समाप्त हो गई है। परिवार के साथ कार्यालय का काम घर से चल रहा है। इस तरह के बदलाव यानी वर्क फॉर होम का ट्रेंड बढ़ा है। घनश्याम 23 देशों में मालवाहक जहाज के समन्वय का काम देखते हैं। कोरोना का संकट आया तो वे मुजफ्फरपुर में फंस गए। अब ऑनलाइन काम कर रहे हैं।
मार्च में अनुबंध खत्म, जुलाई में हुए वापस
मालवाहक जहाज पर काम करने वाले कैप्टन राजेश कुमार ने बताया कि पिछले साल मार्च में सेवा खत्म हो रही थी। घर लौटने का कार्यक्रम तय था। अचानक लॉकडाउन हो गया। इसके कारण विपरीत हालत में फंसे। उसके बाद जहाज पर ही फंसे रहे। मालवाहक जहाज पर थे। मन में भय था कि समु्द्री यात्रा के दौरान संक्रमण हुआ तो कैसे नियंत्रित किया जाएगा। इधर घर की ङ्क्षचता थी। अगर घर वाले बीमार हुए तो वह कुछ नहीं कर सकते हैं। इस बीच एक अवसर मिला तो पांच जुलाई 2020 को बांग्लादेश में उतरे। फिर 23 जुलाई को पटना आए। उसके बाद से परिवार के लोगों के बीच समय बीत रहा है।
कोरोना नियंत्रण में मील का पत्थर साबित हुआ जनता कर्फ्यू
मेडिसीन विशेषज्ञ डॉ. एके दास बताते हैं कि जनता कफ्र्यू का कोरोना की रोकथाम मेें बेहतर असर रहा। जिले मेें अप्रैल में कोरोना के कहर की आशंका थी। लेेकिन यहां जुलाई में इसका असर दिखा। बहुत लोग संक्रमित नहीं हुए और गंभीर रूप से संक्रमितों को बचाया भी जा सका। बीमारों में सुधार की दर बेहतर रही। डॉ. दास ने कहा कि लोगों में जागरूकता के बेहतर परिणाम आए। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग बीमारी से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने में सफल रहा। लोगों को जागरूक भी किया गया।
छुआछूत का बदल गया मतलब
गन्नीपुर निवासी समाज शास्त्री प्रो. डॉ. रामजन्म ठाकुर ने बताया कि महामारी की वजह से हर क्षेत्र में बदलाव आया। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक बदलाव आया। लोगों के बीच की दूरियां बढ़ गई है। पहले छुआछूत को सामाजिक परिवेश में गलत रूप से लेते थे। लेकिन इस छुूआछूत का मतलब स्वास्थ्य से जुड़ गया। लोगों में घर में रहने की प्रवृति बढ़ी है। आम आदमी के अंदर एक आत्मविश्वास पैदा हुआ। सांस्कृतिक गतिविधियों में बदलाव आया। पहले शादी-विवाह में हुजूम लेकर लोग चलते थे। उस परंपरा पर विराम लगा है। नशा करने वाले लोगों पर भी असर दिखा। उनको अपनी आदत में बदलाव लाना पड़ा। लोग सीमित संसाधन में जीने को अभ्यस्त हुए।