Muzaffarpur POlitics: फूल वाले दल के नेता मंच तो साझा कर रहे पर नहीं मिल रहा दिल
हार के कारण टूटी कडिय़ों को जोडऩे की कोशिश ऊपर के स्तर हो रही है। पिछले दिनों इसे लेकर पार्टी के बड़े नेता व कार्यकर्ता जमा हुए। कंपकंपाती ठंड में भी दिल में जमे बर्फ को पिघलाने का प्रयास हुआ। मंच भी साझा कराया गया। मगर बर्फ नहीं पिघला।
मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। कहते हैं रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय, टूटे पे फिर ना जुड़े गांठ परि जाय। कुछ यही स्थिति फूल वाले दल के नेताओं में है। चुनाव में हार के कारण टूटी कडिय़ों को जोडऩे की कोशिश ऊपर के स्तर हो रही है। पिछले दिनों इसे लेकर पार्टी के बड़े नेता व कार्यकर्ता जमा हुए। कंपकंपाती ठंड में भी दिल में जमे बर्फ को पिघलाने का प्रयास हुआ। मंच भी साझा कराया गया। मगर, बर्फ नहीं पिघली। माइक मिली नहीं कि पूर्व माननीय का दर्द फिर सामने आने लगा। मामला प्रदेश स्तर के नेता को संभालना पड़ा। उन्हें नसीहत देनी पड़ी, हार को स्वीकार कर नए लक्ष्य के साथ आगे बढ़ें, मगर इसका असर नहीं पड़ा। दही-चूड़ा के भोज में एक धड़ा कटा सा रहा। एक कार्यकर्ता ने स्थिति स्पष्ट की, मंच साझा हो गया पर मन अभी नहीं मिला है।
नल-जल में ना 'डूब' जाएं मुखियाजी
पांच साल बाद मुखियाजी फिर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं, मगर जनता के सवाल से अधिक उनके लिए परेशानी नल-जल योजना की जांच ने बढ़ा दी है। कुछ पंचायत को छोड़ दें तो कहीं भी काम मानक के अनुरूप नहीं दिख रहा। प्रखंडस्तर के पदाधिकारियों की मेहरबानी से उनका मामला दबा रहा, मगर अब सरकार की सख्ती के बाद नई जांच तो हो रही। जो रिपोर्ट दबा दी गई थी उसपर कार्रवाई शुरू हो गई। कुछ मुखिया ने तो अपने खाते में ही पैसा मंगवा लिए थे। कुछ ने पुत्र व रिश्तेदारों के नाम से ही चेक काट दिया। दो-तीन साल इस पैसे से खूब मौज किया, मगर अब संकट देख उन्हें लग रहा कहीं नल के जल में उनकी चुनावी नैया ना डूब जाए। वहीं फाइल दबाए एक पदाधिकारी बैक डेट का सहारा लेकर अपनी गर्दन बचाने की फिराक में हैं।
बहाली से बहार की आस वालों पर पहरा
सेना की बहाली सैकड़ों युवाओं के लिए हर वर्ष नई आशा लेकर आती है। वहीं एक विभाग से जुड़ी कई एजेंसी के लिए भी यह बहार की ही तरह होती है। पिछले कुछ साल से बहाली के दौरान बैरिकेडिंग से लेकर टेंट व अन्य काम इस विभाग को मिला, मगर जिस खर्च करने के मकसद से काम मिला वह नहीं हुआ। यह लाख से करोड़ में पहुंच गया। इस बार तो खर्च की राशि का प्राक्कलन एक करोड़ 90 लाख पहुंच गई। फाइल बड़े साहब के पास पहुंची तो सवाल उठा इतने बड़े काम का टेंडर हुआ या नहीं। जवाब आया, कम समय के कारण यह संभव नहीं। साहब ने उपाय निकाला। कमेटी बिठाकर चुनाव दर के साथ खर्च को जोड़ दिया। अब बहार की उम्मीद पाली एजेंसियां दुखी हो गई हैं। डर भी कहीं पहले वाली की जांच ना हो जाए।
चोरी पकडऩे वाला ही 'चोर'
जिले में चोरी के वाहन का धंधा जोरों पर है। चेचिस नंबर मिटाकर नई गाड़ी, नया ऑनर बुक...सबकुछ नया। चोरी का यह खेल पकड़ में ही नहीं आ रहा था। आता भी तो कैसे। इस चोरी को पकडऩे वाले विभाग में भी चोर निकल गए। इसे पकडऩे के लिए पश्चिमी क्षेत्र के एक वरीय पुलिस पदाधिकारी की धमक विभाग में पड़ी कि मोबाइलों का शोर बढऩे लगा। तीन कर्मचारी हिरासत में क्या लिए गए ठंड में भी बड़े-बड़ों के माथे पर पसीना आ गया। मतलब साफ था ' बड़ों ' को भी खेल की जानकारी थी। वे तबतक विचलित रहे जबतक यह सूचना नहीं आई कि तीनों को फिलहाल छोड़ दिया गया है, मगर अब तो यही चर्चा हो रही कि खेल में कई वैसे कर्मचारियों की भूमिका भी जांची जाए जो किसी ना किसी बहाने अंगद के पैर की तरह विभाग में वर्षों से जमे हैं।