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मुजफ्फरपुर की इस लेडी सिंघम के कान से तो मोबाइल हटता ही नहीं

Muzaffarpur Police News Update आदर्श थाने में तैनात लेडी सिंघम का भी गत दिनों ड्यूटी के दौरान मोबाइल से चिपके रहने का मामला छाया रहा। आरोपित महिला भागने की कोशिश करते हुए ड्रामा शुरू कर दीं मगर लेडी सिंघम कान से मोबाइल हटाना उचित नहीं समझीं।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 01:46 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 01:46 PM (IST)
मुजफ्फरपुर की इस लेडी सिंघम के कान से तो मोबाइल हटता ही नहीं
वर्दीधारी का एक हाथ मोबाइल व कान से चिपका रहता है। प्रतीकात्मक फोटो

मुजफ्फरपुर, [संजीव कुमार]। Muzaffarpur Police News Update: कुछ दिनों तक मैडम बेरोजगार थीं। उनकी तरह और कई पुरुष व महिला बेरोजगार सड़क पर घूम रहे थे, मगर उनकी किस्मत खुल गई, वर्दी वाली नौकरी मिल गई। वर्दी की गर्मी सबको बर्दाश्त नहीं होती। नतीजा ड्यूटी के समय ईमानदारी से कर्तव्य नहीं निभाते, जबकि वर्दी पहनने से पहले शपथ लेते कि कर्तव्य के प्रति ईमानदारी बरतेंगे। हालत यह कि ड्यूटी के दौरान अधिकतर वर्दीधारी का एक हाथ मोबाइल व कान से चिपका रहता है। मुख्यालय से इस पर पाबंदी है। आदर्श थाने में तैनात लेडी सिंघम का भी गत दिनों ड्यूटी के दौरान मोबाइल से चिपके रहने का मामला छाया रहा। आरोपित को पुलिस जीप में बैठाकर अस्पताल में जांच को लाया गया था। आरोपित महिला भागने की कोशिश करते हुए ड्रामा शुरू कर दीं, मगर ड्यूटी में तैनात लेडी सिंघम कान से मोबाइल हटाना उचित नहीं समझीं।

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कोतवाल को फोन उठाने का समय नहीं

मंदिर वाले थाने के कोतवाल काफी व्यस्त रहते हैं। नतीजा उन्हें फोन रिसीव करने का भी समय नहीं मिलता। कहते हैं कि ठंड के कारण फोन रिसीव नहीं कर पाते। क्योंकि उनका हाथ कांपने लगता है। अपराध नियंत्रण को बड़े-बड़े दावे करते, मगर नतीजा दिखता नहीं। थाने के सामने वाले मंदिर में सिर झुका कर वे मनाते हैं कि उनके इलाके में कोई अप्रिय घटना न हो। उनके इलाके में बाइकर्स बदमाशों द्वारा एक कारोबारी से लूट को अंजाम दिया गया था। सरकारी मोबाइल पर फोन आता रहा, मगर वे रिसीव नहीं कर पाए। अंत में पीडि़त को थाने पहुंचकर पूरी घटना की जानकारी देनी पड़ी। इस बीच बदमाश को भागने का मौका मिल गया। इलाके के लोग कहते हैं कि उनके लिए कोई नई बात नहीं है। इसके पहले भी कई बड़ी घटना उनके क्षेत्र में सुर्खियों में रही, मगर फोन रिसीव करने में उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई।

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बदलिए कुर्सी, पर रखिए ध्यान

थाने पर कमान के लिए जिले में बैठे साहबों से लेकर मुख्यालय तक का सिस्टम काम कर रहा। बावजूद थाना स्तर का खेल बंद नहीं हो रहा है। इसी में विधि व्यवस्था व अपराध नियंत्रण को लेकर कुर्सी बदलने का भी सिलसिला जारी है। इसके लिए साहबों को एकाधिकार मिला है, जब चाहे किसी की कुर्सी बदल सकते। मुख्यालय से भी कुर्सी बदली जाती। सूची में एक या कई के नाम हो। इसकी जानकारी नियमित ग्रुप व साइट के जरिए लोगों तक पहुंच जाती, मगर यहां जितनी भी कुर्सी बदली जा रही। इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती, जबकि पहले भी बदली के बाद सूची सार्वजनिक कर दी जाती थी, मगर इन दिनों इसका ख्याल नहीं रखा जा रहा। कई थानों में बीपी लिखे एक स्टार वाले हाकिमों की जगह डबल स्टार वालों की तैनाती हो गई, जबकि एक स्टार वाले की कमी नहीं, मगर साहब को तैनाती का विशेषाधिकार मिला है।

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ठंड में गश्ती के नाम पर खानापूर्ति

कड़ाके की ठंड में गश्ती के नाम पर खानापूर्ति की जा रही। नतीजा हर रात लूटपाट हो रही, मगर इसे कोई देखने वाला नहीं। साहब का फरमान व रणनीति कागज में सिमटकर रह जाता। नतीजा बेखौफ अपराधी वारदात को अंजाम देकर भाग निकलते। आम आदमी अगर किसी जरूरी काम से रात में निकलता है तो उसे कई तरह की जांच से गुजरना पड़ता। वर्दीधारियों की जांच से छूटने के बाद वे अपराधी की नजर से बच नहीं पाते। हाल के दिनों में जिले में कई वारदात हुईं। मगर साहब व हाकिमों की तरफ से कभी भी रात में गश्ती का औचक निरीक्षण करना उचित नहीं समझा गया। कोतवाल भी ड्यूटी बांटकर अपना काम तमाम कर लेते। वारदात होने के बाद रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई की बात कही जाती, मगर कागज में ही सिमटकर रह जाता। ऐसे में लोगों की सुरक्षा किसके भरोसे।

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