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Muzaffarpur News: गोबर के दीयों से जगमग होंगे घर-आंगन, पौधों को भी 'जीवन'

इस बार दीपावली में जलेंगे देसी गाय के गोबर से बने दीये। गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति। पर्यावरण को मिलेगा संरक्षण। गोबर से बनी धूपबत्ती स्वास्तिक और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की भी बाजार में बिक्री हो रही है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 11:30 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 11:30 AM (IST)
Muzaffarpur News: गोबर के दीयों से जगमग होंगे घर-आंगन, पौधों को भी 'जीवन'
शहर में छाता चौक पर इन उत्पादों का स्टाल लगाया जाएगा। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। इस बार दीपावली में मोमबत्ती और मिट्टी की जगह गोबर से बने दीयों से घर आंगन रोशन कर सकते हैं। इससे बनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, स्वास्तिक, शुभ-लाभ और धूपबत्ती का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह पर्यावरण के अनुकूल तो है ही, इस्तेमाल के बाद हम इन्हें पेड़-पौधे में डाल देंगे तो यह खाद के रूप में भी काम करेगा। देसी गाय के संवर्द्धन एवं संरक्षण पर खबड़ा स्थित गुलाब सेवा आश्रम बीते तीन वर्षों से काम कर रहा है। यहां प्रयोग के तौर पर दीये भी बनाए गए हैं। इस बार दीपावली में यह बाजार में भी उपलब्ध होगा। शहर में छाता चौक पर इन उत्पादों का स्टाल लगाया जाएगा। यहां से इसे कोई भी खरीद सकता है।

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गोबर में मिट्टी और चूना मिलाकर तैयार होते उत्पाद : दीया, स्वास्तिक, शुभ-लाभ और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों के निर्माण के लिए देसी गाय का गोबर ही मूल तत्व होता है। 80 फीसद गोबर में मिट्टी, चूना एवं लकड़ी का बुरादा मिलाया जाता है। इसी मिश्रण को सांचे में ढालकर विभिन्न आकार के उक्त उत्पाद तैयार होते हैं। मूर्तियों को प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है, ताकि वह पर्यावरण के अनुकूल रहे। दीये साधारण और डिजाइनर बनाए जा रहे।

संस्था के सचिव एवं होम्योपैथी चिकित्सक डा. शंकर रमण बताते हैं कि गोबर में चूना मिलाने से ही यह नहीं जलता है। इसमें घी, तिल या सरसों का तेल डालकर आराम से जला सकते हैंं। इस्तेमाल के बाद गमले में लगे पौधों में डालने से यह खाद का काम करता है। उन्होंने कहा कि अभी शुरुआत है। करीब 50 हजार दीपक बनाने का लक्ष्य है। सात से आठ लोग इसमें लगे हैं। साधारण दीये की कीमत दो तो डिजाइनर की पांच रुपये तक है। वहीं, लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति 75 से 100 रुपये, शुभ-लाभ व स्वास्तिक की कीमत 75-75 रुपये प्रति पीस है। इसे संस्था से संपर्क कर कोई भी खरीद सकता है।

डा. रमण को इस कार्य में सहयोग कर रहीं उनकी पत्नी व गणित की प्राध्यापक डा. साधना कुमारी कहती हैं कि अभी आमदनी पर अधिक फोकस नहीं है। लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना महत्वपूर्ण है। अगले वर्ष से बड़े पैमाने पर इन वस्तुओं का उत्पादन होने से 20-25 हजार रुपये की आमदनी इससे जुड़े कामगारों को हो सकती है।

जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक परिमल कुमार सिन्हा ने कहा कि देसी गाय के इन उत्पादों का नया प्रयोग है। प्लास्टर आफ पेरिस से बनीं मूर्तियों की जगह यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। उत्पादन के साथ इसकी बेहतर मार्केटिंग की जरूरत है। उद्योग विभाग की ओर से सभी तरह की मदद की जा रही है। 


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