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International Day for Older Persons: उम्र के 103वें पड़ाव में स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर में दिखता युवा उत्साह

International Day for Older Persons 2020 मुजफ्फरपुर के 103 वर्ष के स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर में दिखता युवा उत्साह। बोले- युवा पीढ़ी सहेजे परिवार की साझी विरासत। गांव से अभी भी राय - विचार करने आते हैं लोग।

By Murari KumarEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 01:16 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 01:16 PM (IST)
International Day for Older Persons: उम्र के 103वें पड़ाव में स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर में दिखता युवा उत्साह
मुजफ्फरपुर के 103 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर।

मुजफ्फरपुर [अजय पांडेय]। लंबा-ऊंचा कद, चेहरे पर ओज, आंखों में चमक और उम्र को थकाती काया...।  ऊर्जा ऐसी कि युवा पिछड़ जाएं। जीवन मानो वर्षों की कहानी। उम्र के 103वें पड़ाव में ये हैं स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर। बचपन ने अंग्रेजों की बर्बरता और बेईमानी देखी तो जवानी फड़क उठी और कूद पड़े स्वाधीनता संग्राम में। महज 25 साल की उम्र में 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जिले में कमान संभाल ली। देश आजाद हुआ तो समाज को कुटुंब बना लिया।

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 उनके सामने सदी गुजर गई। अंकुरित-पल्लवित पीढिय़ां सांझ की बदरी हो गईं। रामसंजीवन बाबू कहते हैं-अब तो शांति, सद्भाव और सम्मान को सहेज लेने का वक्त है। पर, बुढ़ापा या उम्र का ढलना क्या है? इसका कोई दर्शन है क्या? यह जीवन की प्रक्रिया मात्र है...बस। मध्य काल में जीवन का स्वरूप बदला है। घर की दीवार सजाने में नींव की उपेक्षा होती रही। लेकिन, भूल गए जिस दिन नींव दरकेगी, दीवारों को कहीं आसरा न मिलेगा।

कोरोना काल ने समझाया महत्व

वृद्धावस्था, जीवन का एक पड़ाव है। यहां युवाओं को परिवार की साझी विरासत संभालने की दरकार है। उन संस्कारों को जीना है, जिसके सूत्र से उनके जीवन की संरचना हुई है। कोरोना काल में हम निश्चित वैश्विक संकट से गुजर रहे। पर, लॉकडाउन की अवधि ने एकांगी होते परिवार को सहेज लिया। 

 वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं कि घर में चार सदस्य, चारों की राय अलग, छोटी-छोटी बात पर मतभेद। मतभेद, मनभेद में बदल जाता। लेकिन, परिवार में एक बुजुर्ग होने से एकराय...एकमत... आप अनुभव करिए। बुजुर्गों का सम्मान करिए, समाज आपका सम्मान करेगा। 

गांव से अभी भी राय-विचार करने आते हैं लोग

मुजफ्फरपुर के बोचहां-उधौली में वर्ष 1917 में रामखेलावन ठाकुर के घर जन्मे रामसंजीवन बाबू का जीवन समाज कार्य में अॢपत रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। ट्रेड यूनियन की जिम्मेदारी संभाली। मजदूरों के हित में आवाज उठाते रहे। लोगों में इनके विचारों की स्वीकार्यता बनी रही। आज भी गांवों या वार्ड के जन मुद्दों पर लोग उनसे राय-विचार करने आते हैं। 

स्वदेशी, स्वावलंबन और स्वच्छता जीवन का मूलमंत्र

रामसंजीवन ठाकुर का जीवन गांधीजी के मूलमंत्रों पर आधारित है। स्वदेशी, स्वावलंबन और स्वच्छता को अंगीकृत किया। जीवन भर खादी पहनते रहे। तुलसी, नीम, गिलोय और काढ़ा का सेवन कोरोना काल से पहले की आदत है। योग जीवन का अभिन्न हिस्सा है।  


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