Ayodhya Ram Mandir : अयोध्या में भीड़ अनियंत्रित होते देख मंच से उतर गए थे मुरली मनोहर जोशी व लालकृष्ण आडवाणी
Ayodhya Ram Mandir जीवन का सपना पूरा हो गया अब रहें या न रहें राम मंदिर तो बन कर रहेगा।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। Ayodhya Ram Mandir : कारसेवा का उल्लास ऐसा की घर वाले राेकते रहे लेकिन 3 दिसम्बर 1992 को अयोध्या के लिए निकल लिए। चार अगस्त को पहुंचे । पुरानी याद को ताजा करते हुए कारसेवक पवन कुमार दूबे कहते है कि उस समय बजरंग दल के महानगर अध्यक्ष का दायित्व था। मेरे साथ बजरंग दल के वरीय नेता चौधरी श्यामसुंदर थे। जानकी सेवा ट्रस्ट के धर्मशाला में ठहरने की व्यवस्था हो गई। वहां पर दो दिन तक रहकर पूरे मंदिर का भ्रमण किया।
पांच को रातभर चारों ओर से आता रहा जत्था
कारसेवक पवन कुमार दूबे बतातेे है कि पांच दिसम्बर की रात में तो नींद ही नहीं आया। रात भर देश के अलग-अलग हिस्से से लोग आते रहे। रात भर जय श्री राम के जयघोष सुनायी देता रहा। मन में कारसेवा को लेकर उमंग था। छह दिसम्बर की सुबह चार बजे जगकर तैयार होने के बाद विवादित ढांचा की ओर निकले। वहां पर मंच पर भाषण चल रहा था। देखते ही देखते विवादित स्थल पर जनसैलाब उमड़ गया। जिधर देखा जाए उधर केवल सिर ही सिर दिखायी दे। पूरे अयोध्या में लाउडस्पीकर लगा था। जय श्री राम गंुज सुनायी देने लगी। करीब 11 बजे के बाद लोग विवादित ढांचा के बाहर बने बैरिकेटिंग को तोड़ने की कोशिश करने लगे। मंच से लालकृष्ण अडवाणी व मुरली मनोहर जोशी मना करते रहे कि शांति से कारसेवा करे। लेकिन जय श्री राम के जयधोष के साथ अचानक भीड़ ने विवादित ढांचे पर हमला बोल दिया। जनसैलाब बेकाबू होता देख जोशी व अडवाणी मंच से नीचे उतर गए। साध्वी श्रुतंभरा ने मंच संभाला। उसके बाद देखते ही देखते कहां गया विवादित ढांचा पता भी नहीं चला। माहौल इस तरह का हुआ कि हम भी तोड़ेगे ढांचा की होड़ लगी। कितने घायल हुए। हमारी टीम वहां रूकी। अगले दिन रामलला विराजमान के निर्माण में पंडित विनय कुमार मिश्रा, चौधरी श्यामसुदंर, तुर्की वाले युवा नेता प्रवीण सिंह के साथ कारसेवा की। वहां से तीन दिन बाद निकले।
रास्ते में कई जगह झड़प
अयोध्या से ट्रेन से निकले तो कई जगह पर ट्रेन पर पथराव की धटना होती रही। लेकिन ट्रेन को रोककर कारसेवक आक्रमण करने वाले को खदेडते रहे। बहुत संकट के सामान के साथ मुजफ्फरपुर आए। यहां पर भी पुलिस कारसेवक को खोजने लगी। उनके घर पर एससपी ने दस्तक दी। वह यहां से निकल लिए। तीन माह से रांच इलाके में रहे। वहां पर राम मंदिर आंदोलन की अलख जगाते रहे। जब माहौल शांत हुआ तो वापस आए। अब जीवन धन्य हो गया। सपना पूरा हुआ। पांच अगस्त मेरे जीवन का अनमोल पल है। पहले लगता था कि जावनी को बेकार बर्बाद किया।लेकिन अब मंदिर बनने जा रहा तो लगता है कि भगवान ने यह जीवन इसी काम के लिए दिया था।