Saraswati Pooja : इस विधि से पूजन करने पर प्रसन्न होती हैं मां सरस्वती, देती हैं विद्या का वरदान
Saraswati Pooja आज मनेगा मां शारदे का जन्मोत्सव। सृष्टि निर्माण के समय इसी दिन हुआ था मां का प्राकट्य। कलश स्थापित कर गणपति व नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की प्रथा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि सृष्टि निर्माण के समय देवी सरस्वती इसी दिन प्रकट हुई थीं। इसलिए इस तिथि को सरस्वती माता के जन्मोत्सव के लिए जाना जाता है।
मालपुए एवं खीर का भोग
प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित कमलापति त्रिपाठी 'प्रमोद' बताते हैं कि पूजा करते समय सबसे पहले मां की प्रतिमा या तस्वीर को सामने रखना चाहिए। इसके बाद कलश स्थापित कर गणपति व नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए। फिर मां सरस्वती की पूजा करें। सबसे पहले आचमन व स्नान कराएं। फूल एवं माला चढ़ाएं। मां को सिंदूर, गुलाल व अन्य शृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करें। श्वेत वस्त्र पहनाएं। पीले रंग का फल चढ़ाएं। प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदिया अर्पित करना चाहिए। मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है।
हवन
पूजा के बाद हवन करना चाहिए। इसके लिए हवन कुण्ड अथवा भूमि पर सवा हाथ चारों तरफ नापकर एक निशान बना लेना चाहिए। आम की छोटी-छोटी लकडिय़ों को अच्छी तरह बिछा लें और इस पर अग्नि प्रज्ज्वलित करें। इस समय गणेश व नवग्रह के नाम से हवन करें। इसके बाद सरस्वती माता के नाम से 'ऊं श्री सरस्वतयै नम: स्वाहाÓ मंत्र से 108 बार हवन करना चाहिए। फिर सरस्वती माता की आरती करें और हवन की भभूत लगाएं।
विसर्जन
पूजा के अगले दिन षष्ठी तिथि को सुबह माता की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए। संध्या समय मूर्ति को प्रणाम करके जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।