पेट काटकर 'मिठास' पैदा कर रहे मधुमक्खी पालक, आर्थिक स्थिति में सुधार की जगह आ रही गिरावट
50 हजार से अधिक परिवार शहद उत्पादन में लगे घाटे के कारण छोडऩा चाह रहे यह काम। 250 से चार सौ रुपये प्रतिकिलो बिकने वाला शहद 60 से 80 रुपये में बेचने की विवशता।
मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। शहद उत्पादन में बिहार तेजी से आगे बढ़ रहा। पंजाब को कड़ी चुनौती भी दे रहा। इसमें मुजफ्फरपुर के मधुमक्खी पालकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। मगर, इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार की जगह गिरावट ही आ रही। हमने कारण जानने की कोशिश की। इसमें मुख्य रूप से यह बात सामने आई कि शहद का उचित मूल्य नहीं मिलता। प्रोसेसिंग यूनिट की कमी होने से वे उत्पादन के तुरंत बाद इसे बेचने को विवश होते हैं। जिले के कई प्रखंडों में हमने जायजा लिया।
नहीं मिल रही कीमत...मजदूरी निकलने की भी चिंता
लीची के पेड़ में इस बार खूब मंजर लगे हैं। पुरवा हवा के कारण मौसम में नमी भी है। लीची से शहद बनने का सबसे अनुकूल मौसम। जिले के लीची बगानों में मधुमक्खी से भरे सैकड़ों बॉक्स को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार शहद का उत्पादन बेहतर होगा।
हम पहुंचते हैं कांटी के सदातपुर में फोरलेन किनारे एक बगान में। यहां दर्जनभर मधुमक्खी पालक शहद निकाल रहे। धूप तेज होने से पहले यह काम कर लेना है। शहद निकालने के बाद हम उनसे मुखातिब होते हैं। चेहरे पर खुशी है कि इस वर्ष लीची से दो बार शहद निकाल चुके हैं। एक या दो बार और निकाला जा सकता है। मगर, एक चिंता भी है। वह है शहद की कीमत।
करीब 15 वर्षों से इस काम में लगे अवधेश प्रसाद सिंह व मुन्ना कुमार कहते हैं, 'साल भर मधुमक्खी को जिंदा रखने की जद्दोजहद। इसके लिए हजारों रुपये खर्च। मगर, मजदूरी भी नहीं निकल रही। क्योंकि इसकी कीमत नहीं मिल पाती। हम 60 से 80 रुपये प्रतिकिलो शहद बेचने को विवश हैं। पेट काटकर इसमें लगे हैं।Ó
इस काम में जुड़े जिले के करीब 50 हजार मधुमक्खी पालकों की यह मूल समस्या है। मगर, इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। इसके अलावा मधुमक्खियों को जिंदा रखना भी उनके लिए बड़ी समस्या है। उन्हें राज्य और शहर से बाहर भी जाना होता है। चेक पोस्ट पर 'वसूलीÓ नहीं रुक रही।
10 हजार टन से अधिक का उत्पादन
हम मीनापुर व बोचहां का रुख करते हैं। दोनों प्रखंडों के कई गांवों में काफी शहद उत्पादन होता है। मीनापुर के विश्वकर्मा चौक, नेउरा, खेमाईपट्टी में कई बगान बॉक्स से भरे हैं। शहद कंपनियों के प्रतिनिधि भी डेरा जमा चुके हैं। बस 15 दिनों में यह क्षेत्र खाली हो जाएगा। मगर, क्या इस बार भी ये किसान ठगे जाएंगे। इस सवाल पर पालक अरविंद कुशवाहा कहते हैं, 'पिछले दिनों सुधा के साथ बैठक हुई थी। वे अच्छी कीमत पर शहद लेने को तैयार हैं। मगर, इसके लिए सुपर शहद का उत्पादन करना होगा। सभी पालक इस वर्ष ऐसा नहीं कर पाएंगे। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि बड़े स्तर पर शहद के उत्पादन को देखते हुए प्रोसेसिंग यूनिट होनी ही चाहिए।Ó वे कहते हैं, 10 हजार टन से अधिक का उत्पादन हो रहा।
बीमा से भी जोड़ा जाए
पालक सावन कुमार, ललित सिंह, रामप्रवेश सिंह, राजू कुमार आदि का मानना है कि मधुमक्खी पालन भी खेती से ही जुड़ा है। मगर, इसमें बीमा नहीं है। कई बार ट्रक से लाने में मधुमक्खियों की मौत हो जाती। यह नुकसान बड़ा होता। क्योंकि उन्हें चीनी का घोल पिलाकर पालना होता। परिवार बढ़ता है तो मधुमक्खी बेचकर भी कुछ राशि मिल जाती। नहीं बिकी तो शहद का अधिक उत्पादन होता है।
तकनीक बढ़े तो मिले अधिक लाभ
यहां के किसान मधुमक्खी से सिर्फ शहद ही निकाल पाते। थोड़ा बहुत मोम भी। जबकि, इससे रॉयज जेली, डंक विष, पराग आदि भी निकाला जा सकता। मगर, क्षेत्र में प्रशिक्षण का बड़ा केंद्र नहीं। पूसा केंद्रीय कृषि विद्यालय में ही कभी-कभी प्रशिक्षण मिल पाता है। अगर तकनीक विकसित हो तो इससे अधिक लाभ मिलेगा।
चर्चित है 'हनी गर्लÓ की कहानी
शहद उत्पादन से परिवार को चलाने व पढ़ाई जारी रखने के कारण जिले की अनिता को 'हनी गर्लÓ का नाम दिया गया था। एनसीईआरटी की चौथी क्लास की पर्यावरण अध्ययन की पुस्तक में उसकी कहानी छात्र-छात्रों को पढ़ाई गई। ताकि, वे प्रेरित हो सकें। मगर, जिले के जनप्रतिनिधियों की ओर से ठोस प्रयास नहीं हुए।
नीति आयोग ने दिया था प्रस्ताव
नीति आयोग ने यहां शहद उत्पादन की बड़ी संभावना को देखते हुए प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने का प्रस्ताव दिया। बियाडा क्षेत्र व मीनापुर में सुविधा-सह-प्रशिक्षण केंद्र खोलने को लेकर पिछले दिनों निर्णय लिया गया था। उद्योग विभाग के साथ पूर्व डीएम मो. सोहैल की बैठक में दोनों जगहों पर प्रोसेसिंग यूनिट खोलने पर भी फैसला लिया गया है। इसके अलावा शहद की गुणवत्ता जांच व पैकेजिंग के लिए भी यूनिट लगाने की बात हुई है। जिले के हजारों मधुमक्खी पालकों को इन निर्णयों पर अमल का इंतजार है।