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बूढ़ी गंडक के आंचल में सिमटीं खुदीराम बोस की यादें, सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे

Khudiram Bose Death Anniversary मुजफ्फरपुर से जुड़ी है अमर शहीद खुदीराम बोस की यादें। अंग्रेज अधिकारी पर प्रहार से पहले धर्मशाला चौक पर डाला था पड़ाव।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 09:22 AM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 10:14 AM (IST)
बूढ़ी गंडक के आंचल में सिमटीं खुदीराम बोस की यादें, सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे
बूढ़ी गंडक के आंचल में सिमटीं खुदीराम बोस की यादें, सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे

मुजफ्फरपुर, [अमरेन्द्र तिवारी]। Khudiram Bose Death Anniversary बूढ़ी गंडक के आंचल में अमर शहीद खुदीराम बोस की यादें सिमटी हैं। महज 19 साल की उम्र में अमर इंकलाबी खुदीराम बोस ने हिंदुस्तान की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगा लिया था। गुजरे 112 वर्षों में 11 अगस्त 1908 का दिन अब भी मुजफ्फरपुर के लोग बड़ी शिद्दत से याद करते हैं। 

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स्वतंत्रता सेनानी की डायरी में चर्चा 

अमर शहीद की वार्षिक बरसी पर स्वतंत्रता सेनानी और खादी जगत के निष्काम कर्मयोगी स्व.ध्वजा प्रसाद साहू ने शनिवार 11 अगस्त 1962 के दिन को डायरी में लिखा था। खुदीराम बोस निर्भीकता के प्रतीक थे। उन्हें पता था कि एक अंग्रेज की हत्या से अंग्रेज देश छोड़कर नहीं भागेंगे पर अंग्रेजों के जुल्म और ज्यादती पर इस धमाके का असर जरूर होगा और लोगों के बीच आजादी का जज्बा जागेगा। दिल्ली स्थित नेहरू स्मारक पुस्तकालय के तत्कालीन निदेशक स्व. हरिदेव शर्मा को दिए साक्षात्कार में खुदीराम बोस की फांसी से उपजे हालात के बारे में ध्वजा बाबू कहते हैं 'छोटी उम्र के बाद भी खुदीराम बोस द्वारा बम फेंके जाने का असर हम सब पर खूब पड़ा। जिला स्कूल के रास्ते जब खुदीराम बोस को कचहरी ले जाया जाता, उत्सुकता से हम सब उन्हें निहारते रहते।'

 वे आगे कहते हैंं 'जब खुदीराम बोस मुजफ्फरपुर की जेल में बंद थे उस समय असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट सुपरिटेंडेंट एक सिविल सर्जन थे, जो बंगाली थे। वे खुदीराम बोस को खाने के लिए आम ले गए। तब तक उनको फांसी की सजा सुनाई जा चुकी थी।

 खुदीराम बोस ने आम तो खा लिया पर उसका छिलका ऐसे उतारा मानो आम साबुत ही पड़ा हो। अगले दिन असिस्टेंट सिविल सर्जन जब आए तो खुदीराम बोस से आम न खाने का कारण पूछते हुए उसे उठाया तो देखा कि वह खाया हुआ है। हाथ में जाते ही आम का छिलका बिखर गया, खुदीराम की हंसी छूट गई। तब उन्होंने कहा कि 'कल तुमको फांसी होने वाली है पर मजाक की आदत तुम्हारी नहीं गई।' इस पर खुदीराम बोस ने उनसे कहा कि फांसी और मजाक का कोई संबंध नहीं है। फांसी होनी है तो होगी, लेकिन खुशी के पल यूं ही नहीं जाने देतेÓ इतने निर्भीक और बेपरवाह इंसान थे खुदीराम बोस। 

किंग्सफोर्ड को मारने आए थे 

6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस शामिल थे। इसके बाद एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई और इसमें उन्हें साथ मिला प्रफुल्लचंद्र चाकी का। जीवन के सौ साल पूरे करने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामसंजीवन ठाकुर कहते हैं कि दोनों नौजवान मुजफ्फरपुर पहुंचे। पुरानी धर्मशाला में पड़ाव डाला। वहीं पर रणनीति बनाई। कचहरी परिसर में एक पेड़ पर छिप गए। मौका देखकर किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंक दिया। लेकिन, उस बग्घी में ङ्क्षकग्सफोर्ड मौजूद नहीं था। एक दूसरे अंग्रेज अधिकारी की पत्नी व बेटी थी। जिनकी इसमें मौत हो गई। 

बहन ने किया था लालन-पालन 

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया। बड़ी बहन ने लालन-पालन किया था। 1905 में वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। 

 

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