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मधुश्रावणी 2020: सुखद दाम्पत्य जीवन की सीख के साथ संपन्न हुआ मधुश्रावणी पर्व

Madhusravni 2020 मिथिलांचल में एक पखवाड़ा से चल रहा था नवविवाहिताओं के आस्था का महापर्व। नवविवाहिताओं का महापर्व मधुश्रावणी गुरुवार को परंपरागत विधि विधान के साथ संपन्न हो गया।

By Murari KumarEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 05:52 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2020 05:52 PM (IST)
मधुश्रावणी 2020: सुखद दाम्पत्य जीवन की सीख के साथ संपन्न हुआ मधुश्रावणी पर्व
मधुश्रावणी 2020: सुखद दाम्पत्य जीवन की सीख के साथ संपन्न हुआ मधुश्रावणी पर्व

मधुबनी, जेएनएन। चलु चलु बहिना हकार पुरै लै, पूजा दाइ के वर एलखिन्ह टेमी दागै लै। मिथिला क्षेत्र में नवविवाहिताओं का महापर्व मधुश्रावणी गुरुवार को परंपरागत विधि विधान के साथ संपन्न हो गया। करीब एक पखवाड़ा तक चले इस महापर्व में नवविवाहिताओं को सुखद व सफल दाम्पत्य जीवन की शिक्षा दी गई। सावन माह के कृष्ण पक्ष पंचमी से शुरू होकर 15वें दिन टेमी दागने की प्रथा के साथ पर्व संपन्न हो गया। पूरे पर्व के दौरान विभिन्न कथाओं के माध्यम से नवविवाहिताओं को दाम्पत्य जीवन के हर एक पहलुओं की बारीक जानकारी महिला पुरोहितों के माध्यम से दी जाती है।

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 वहीं, विधि-विधान के साथ पूजन कर नवविवाहिताएं अपने सुहाग की सलामती का आशीर्वाद ईश्वर से लेती है। प्रतिदिन फूल लोढ़ कर लाने वाली व्रती बासी फूलों से अगले दिन गौरी, महादेव, विषहरि सहित अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना करती है। अंतिम दिन मधुश्रावणी का विधान है। गुरुवार को इसको लेकर सुबह से ही व्रतियों के आंगन में खास चहल पहल नजर आई। व्रती के ससुराल से परंपरानुसार भार आया। व्रती की मां सहित पूरे परिवार के लिए नए वस्त्र आए। नए परिधान में लिपटी व्रती ने नख-सिख तक श्रृंगार किया। इसके बाद पूजन की विधि शुरू हुई। मिथिला के विशेष विधान के अनुरूप व्रती को टेमी भी दी गई। मान्यता है कि फफोले जितने बड़े होंगे वर-वधु का वैवाहिक जीवन उतना ही सुखी होगा और वे उतने ही दीर्घायु होंगे। पूजन के पश्चात भार का प्रसाद आगंतुक महिलाओं के बीच बांटा गया।

प्रचलित है कई दंत कथाएं

वैसे तो इस पर्व के संबंध में विभिन्न तरह की दंत कथा प्रचलित है, लेकिन मुख्य रूप से कहा जाता है कि एक दिन भगवान शंकर सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे कि उन्हें अचानक स्वप्नदोष हुआ जिसे उठाकर उन्होंने जलकुंभी पर फेंक दिया, जिससे नाग देवता के पांचों बहन की उत्पत्ति हुई। उसके बाद भगवान शंकर प्रतिदिन उक्त सरोवर में जलक्रीड़ा के बहाने पहुंचने लगे और पांचों नाग बहनों की देखरेख व लालन-पालन करने लगे।

 इसकी भनक जब माता पार्वती को लगी तो एक दिन वे वहां पहुंचकर पांचों नाग बहन को पांव से कुचलने लगी। अचानक भगवान शंकर वहां प्रकट हुए और पार्वती को ऐसा करने से रोकते हुए कहा कि ये पांचों आपकी ही पुत्री है। इन पांचों बहन का मृत लोक में पृथ्वी पर सावन मास में जो नवविवाहिता पूजा-अर्चना करेगी उसे जीवन भर सर्पदंश से रक्षा होगी और उनके और उनके पति की अकाल मौत नहीं होगी।

 इन्हीं दंत कथा के आधार पर मिथिला की नवविवाहिताएं 15 दिन तक नाग के विभिन्न स्वरूप जया, देव, दोतरी, नाग, नागेश्वरी साथ में अन्य देवी-देवताओं का 14 दिनों तक बिना नमक का सेवन किए मात्र एक शाम खाकर दिन में चुनकर सजाए हुए बासी फूलों से पूजा-अर्चना करती है। इस पूजा में उनकी मदद गांव की ही कोई बुजुर्ग महिला करती हैं, जिन्हें मधुश्रावणी के दिन दक्षिणा व अन्न-वस्त्र देकर प्रसन्न किया जाता है।


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