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मधुबनी : द‍िल मांगे देसी, कहां गए इचना, पोठी, मारा, कबई, गरई...

कभी देसी मछलियों के उत्पादन में अव्वल था मधुबनी अब उसके अस्तित्व पर संकट। दो दशक से हेचरी बंद होने से ठप होता चला गया देसी मछलियों का उत्पादन। मत्स्य विभाग के तहत संचालित जिले का एकमात्र रामपट्टी स्थित हेचरी दो दशक से बंद है।

By Murari KumarEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 03:49 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 03:49 PM (IST)
मधुबनी : द‍िल मांगे देसी, कहां गए इचना, पोठी, मारा, कबई, गरई...
मधुबनी में लगा मछली बाजार (फोटो- जागरण)

मधुबनी [राजीव रंजन झा]। देसी मछली उत्पादन में सूबे में अव्वल मधुबनी में एक दशक से देसी मछलियां विलुप्त होने लगी है। एक दशक पूर्व तक यहां इचना, पोठी, मारा, कबई, गरई, सौरा, गैैंचा, सुहा, कांटी, गोलही, मांगुर, छही, चेचरा, भुल्ला व ढलई सहित अन्य देसी मछलियां काफी मात्रा में होती थीं। मगर, अब अनेक किस्म के देसी मछलियों का उत्पादन नहीं हो रहा है। जिसका मुख्य वजह यहां के हेचरी को बंद होना माना जा रहा है। मत्स्य विभाग के तहत संचालित जिले का एकमात्र रामपट्टी स्थित हेचरी दो दशक से बंद है।

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भू-माफियाओं के कब्जे में हेचरी की जमीन 

मधुबनी सहित उत्तर बिहार के जिलों के मछली पालकों को मछली बीज उपलब्ध कराने वाला जिले के राजनगर प्रखंड के रामपट्टी स्थित हेचरी दो दशक से बंद पड़ा है। जिला मत्स्य विभाग के करीब 50 बीघा में 40 तालाबों में मछली बीज का उत्पादन होता था। इस हेचरी से उत्पादित बेहतर क्वालिटी के मछली बीज उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों के मछली पालकों को आपूर्ति की जाती थी। यहां सालभर मछली पालकों को प्रशिक्षण की सुविधा भी मुहैया कराई जाती थी।

 प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों को यहां आवासीय सुविधा भी उपलब्ध होता था। मगर, विभागीय उदासीनता के कारण दम तोड़ चुके इस हेचरी की मछली पालन को बनाए गए तालाबों में धान की खेती हो रही है। बड़े पैमाने पर हेचरी की जमीन स्थानीय लोगों द्वारा कब्जा कर लिया है। हेचरी की अतिक्रमित जमीन विभागीय स्तर पर मुक्त कराने के दिशा में अबतक को कार्रवाई की सूचना नहीं है। जिससे हेचरी की जमीन भू माफियाओं के कब्जे में चला गया।

''मांगुर'' मछली को संरक्षित करने की नहीं हो रही पहल 

दस हजार से अधिक तालाबों वाले जिले में देसी मछलियों का उत्पादन नहीं हो रहा है। वर्ष 2011 में राजकीय मछली के रूप में घोषित ''मांगुर'' मछली को संरक्षित करने की दिशा में पहल नहीं हो रही है। देसी मछलियों में कतला अब सिर्फ चर्चाओं में रह गई है। मछली उत्पादन में अव्वल माने जाने वाले जिले के मछली बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का कब्जा बढ़ता जा रहा है।

खपत के अनुरूप नहीं हो रहा मछली का उत्पादन 

जिले में तालाबों की संख्या साढ़े दस हजार से अधिक होने के बाद भी मछली उत्पादन कम होती चली गई। जिले में प्रति वर्ष 29 से 31 हजार मीट्रिक टन मछली की खपत है। जबकि उत्पादन सिर्फ करीब 20 मीट्रिक टन हो रहा है। इसका खामियाजा आर्थिक रूप से कमजोर मत्स्य पालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसका एक कारण सरकारी तालाबों का अतिक्रमण भी माना जा रहा है। तालाबों को बचा पाना मुश्किल लग रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों के सूखने और भरने से मछली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। मछली उत्पादक रहिका प्रखंड के मत्स्यजीवी सहयोग समिति के मंत्री सह कोषाध्यक्ष झड़ीलाल सहनी ने बताया कि देसी मछलियों को बचाने के लिए यहां के बंद पड़े सरकारी हेचरी को चालू करने के लिए विभागीय स्तर पर ठोस प्रयास की जरूरत है। देसी मछलियों को बचाकर उत्पादन बढ़ाया जाए तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

इस बारे में चिकित्सक डाॅ. एसएन झा ने कहा क‍ि 'देसी मछली का स्वाद लाजवाब होता है। देसी मछली स्वादिष्ट और सुपाच्य माना जाता रहा हैं। इसके सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता। प्रोटीन मिलता है।

जिला मत्स्य पदाधिकारी सह कार्यपालक पदाधिकारी डाॅ. राजीव रंजन कुमार सिंह ने कहा क‍ि 'रामपट्टी स्थित हेचरी की जमीन संबंधी कुछ मामलें विभागीय स्तर पर चल रही है। हेचरी को चालू करने का प्रस्ताव विभाग को भेजा जाएगा।'


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