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LS College Foundation Day: आपके प्रिय कालेज ने पूरे किए 123 वर्ष, 72 छात्र व पांच प्राध्यापकों से मुजफ्फरपुर में शुरू हुआ था सफर

LS College Foundation Day 123 वर्ष पूर्व आज ही के दिन बिहार के पांचवें और उत्तर बिहार के पहले कालेज के रूप में हुई थी स्थापना। वर्तमान में 10 हजार विद्यार्थी और एक सौ प्राध्यापकों के साथ अग्रणी संस्थान।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 03 Jul 2022 08:20 AM (IST)Updated: Sun, 03 Jul 2022 08:20 AM (IST)
LS College Foundation Day: आपके प्रिय कालेज ने पूरे किए 123 वर्ष, 72 छात्र व पांच प्राध्यापकों से मुजफ्फरपुर में शुरू हुआ था सफर
LS College Foundation Day: कालेज की स्थापना तीन जुलाई 1899 को हुई थी। फोटो: जागरण

मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। LS College Foundation Day: अब न लंगट सिंह हैं और न उनकी मिट्टी की नश्वर काया...पर यह लंगट सिंह महाविद्यालय (एलएस कालेज) मजबूत स्तंभ-सा खड़ा है। यहां जबतक शिक्षक-शिक्षार्थी सत्य धर्म का, पवित्र चिंतन, मनन करते रहेंगे, अपने आचरण में उन सपनों को ढालेंगे, वातावरण में बाबू लंगट सिंह का जीवन संगीत गूंजता ही रहेगा। ये पंक्तियां बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अवकाश प्राप्त रीडर डा. सुरेंद्रनाथ दीक्षित ने अपनी पुस्तक बिहार रत्न बाबू लंगट सिंह और कालेज की विकास यात्रा में लिखी हैं। उन्होंने पुस्तक में बताया है कि कालेज की स्थापना तीन जुलाई 1899 में होने के प्रथम दो वर्षों में 72 विद्यार्थी और पांच प्राध्यापक ही थे। स्थापना काल के चार-पांच वर्ष बाद यहां विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर 150 हो चली थी। वर्तमान में यह वटवृक्ष हो चुका है। अभी करीब 10 हजार विद्यार्थी और एक सौ प्राध्यापक इस कालेज में हैं। 

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शुरू में सिर्फ इंटर कला स्तर की पढ़ाई वाले इस कालेज में अब कला, वाणिज्य और विज्ञान संकाय के साथ ही दर्जनभर वोकेशनल कोर्स भी संचालित हो रहे हैं। नैक से ग्रेड ए प्राप्त करने वाला यह बीआरए बिहार विश्वविद्यालय का इकलौता कालेज भी है। प्राचार्य डा.ओमप्रकाश राय बताते हैं कि कालेज अपनी पुरानी विरासत को प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहा है। यहां के छात्र-शिक्षक देशभर में परचम लहरा रहे हैं।

आजादी के आंदोलन में राजनीति का मुख्य गढ़ रहा

आजादी के आंदोलन में एलएस कालेज राजनीति का मुख्य गढ़ हुआ करता था। 1942 में अगस्त क्रांति से ठीक एक महीने पूर्व यहां आइईएस डा.हरिचांद प्राचार्य बनकर आए थे। उस समय कालेज में अनेक छात्र-छात्राआं ने देशभक्ति के उदात्त भवों से प्रेरित होकर अगस्त क्रांति की उफनती ज्वालाओं में खुद को झोंक दिया था। इसी आंदोलन से निकलने के बाद वे प्रदेश और देश के नेता भी बने। तिरहुत प्रक्षेत्र के श्याम नंदन मिश्र, रामसागर शाही, रामदेव वर्मा, ललितेश्वर प्रसाद शाही, त्रिवेणी प्रसाद ङ्क्षसह व भुवनेश्वर चौधरी के नाम उल्लेखनीय हैं। देश की आजादी से लेकर पुनर्निर्माण तक में इनकी भूमिका रही। 1942 में ही देशभर में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के विद्यार्थियों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। कालेज से आंदोलनकारियों के जुड़ाव की जानकारी मिलने के बाद ब्रिटिश सरकार ने कालेज के ड्यूक और लंगट छात्रावास को खाली करवाकर यहां गोरी फौज का अस्थायी आवास बना दिया था।  


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