कोजागरा पर लक्ष्मी पूजन से होता जीवन सुखमय...जानें इसके विधान और महत्व के बारे में
नवदंपती के लिए इसका है विशेष महत्व। इस बार शरद पूर्णिमा यानी 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। मिथिलांचल सहित कोशी व नेपाल के तराई इलाकों में यह मनाया जाता है।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरा के नाम से जाना जाता है। इस बार यह 13 अक्टूबर को है। यह मिथिलांचल सहित कोशी क्षेत्र व नेपाल के तराई इलाकों में पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इसमें मिष्ठान्न व मखाना का विशेष महत्व होता है।
नवविवाहितों के घर तो पहली बार यह त्योहार विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। ताकि नवदंपती का जीवन सुखमय हो और मां लक्ष्मी की कृपा उनपर बनी रहे। उनका घर धन-धान्य व सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहे, इसी कामना के साथ लोग कोजागरा का त्योहार मनाते हैं। कई जगहों पर इस रात देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है।
पंडित ब्रजेश तिवारी उर्फ 'त्यागी जी' व ज्योतिषविद् विमल कुमार लाभ बताते हैं कि यह त्योहार नवदंपती के सुखमय जीवन के शुभारंभ का त्योहार है। मिथिलांचल में विवाह के प्रथम साल इस तिथि का लोग खुशी से इंतजार करते हैं। परंपरा के अनुसार, इस त्योहार में नवविवाहिता के घर से वर के घर डाला, पिटारी और पकवान भेजते हैं। महालक्ष्मी की पूजा होती है। उपस्थित लोगों के बीच प्रसाद के साथ मिठाई और मखान का वितरण किया जाता है। वर बड़ों के पैर छूकर आशीष प्राप्त करता है।
इस अवसर पर कौड़ी खेलने की भी परंपरा है। इस त्योहार में रात में जागकर मां महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। दिनभर व्रत रखने के बाद संध्या समय गणपति और माता लक्ष्मी की पूजा कर वे अन्न ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि इससे जीवन सुखमय और घर धन-धान्य से परिपूर्ण होता है।