Bihar News : मजदूर से बने मालिक, पश्चिम चंपारण में बैट बना दे रहे रोजगार
Bihar news कश्मीर से लौटे पश्चिम चंपारण के अबुलैस अंसारी अब पॉपुलर की लकड़ी से बना रहे बैट कीमत 800 से लेकर 3000 रुपये तक 10 लोगों को दिया रोजगार बीते दस माह में वे मजदूर से उद्यमी बन चुके हैं।
By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 07:40 PM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 07:40 PM (IST)
पश्चिम चंपारण, [ दीपेंद्र वाजपेयी ] : कोरोना काल में रोजगार छिना तो बैट बनाने का हुनर सहारा बना। कश्मीर से लौटे पश्चिम चंपारण निवासी अबुलैस अंसारी ने यहीं बैट बनाने का काम शुरू किया। मेहनत की बदौलत काम चल निकला। बीते 10 महीने में वे मजदूर से उद्यमी बन चुके हैं। आधा दर्जन से अधिक को रोजगार दिया है। महीने में दो लाख का कारोबार हो रहा। सहोदरा क्षेत्र के परसौनी निवासी अबुलैस 10 साल पहले काम की तलाश में कश्मीर गए थे। अनंतनाग में बैट बनाने की कंपनी में काम शुरू किया।
महीने में 35 हजार रुपये मिलते थे। लॉकडाउन में काम छूटा तो अप्रैल में घर लौट आए। कुछ दिनों बाद छह लाख खर्च कर छोटी-मोटी मशीनों के सहारे गांव में ही काम शुरू किया। बैट बनाकर स्थानीय बाजार में बेचने लगे। काम चल निकला तो कश्मीर में साथ में काम करने वाले गांव व क्षेत्र के 10 लोगों को जोड़ लिया। साथ ही दो महीने पहले बैट बनाने के लिए पांच लाख खर्च कर मेरठ से वुड प्लेनर गेज मशीन, कटर व प्रेसिंग मशीन खरीदकर लाए। पॉलिश व स्टीकर लगाने का काम मैनुअल होता है। हैंडल व स्टीकर वहीं से मंगाते हैं। इसकी कीमत डेढ़ सौ रुपये प्रति बैट होती है।
अबुलैस कश्मीर में विलो की लकड़ी से बैट बनाते थे। यहां पापुलर से बना रहे। इसके एक पेड़ से 15 से 20 बैट बन जाते हैं। कीमत 800 से लेकर 3000 तक है। 800 का बैट बनाने में 500 से 600 और 3000 के बैट पर 1700 से 2000 तक खर्च होता है। अबुलैस कहते हैं कि अभी 100 बैट की प्रतिदिन मांग है, लेकिन 10 से 15 का ही निर्माण हो रहा। एक हजार से अधिक बैट बेच चुके हैं।
चार लाख रुपये का हुआ मुनाफा
चार लाख का मुनाफा हुआ है। शुरुआत में खुद जिले के दुकानदारों से संपर्क किया। सिकटा, चनपटिया, जमुनिया व नरकटियागंज के दुकानदारों से आर्डर मिला है। वह कहते हैं कि पूंजी के लिए मुख्यमंत्री कामगार उद्यमी योजना के तहत आवेदन दिया है। ऋण मिलते ही काम बढ़ेगा। 50 लोगों को रोजगार मिल सकेगा। कारीगर लौरिया के कमरुद्दीन अंसारी कहते हैं कि घर पर ही काम मिल गया। रोजाना तीन सौ रुपये मिल जाते हैं। गौनाहा के प्रखंड विकास पदाधिकारी अजय प्रकाश राय का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत अबुलैस को सुविधा मुहैया कराई जाएगी। कृषि विज्ञान केंद्र पिपराकोठी के वानिकी विज्ञानी डॉ. मनीष कुमार का कहना है कि विलो में फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है। इससे स्ट्रोक अच्छा लगता। पॉपुलर की लकड़ी में ऐसा नहीं है। इससे बने बैट से अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला जा सकता।
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