जानिए, हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम से लड़कियों को क्या-क्या अधिकार दिए गए हैं ? उसे वे कैसे हासिल कर सकती हैं?
हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के बाद पुत्री को सहदायिकी हिंदू परिवार का सदस्य घोषित किया गया। साथ ही पुत्री को भी पुत्र की तरह जन्मा अधिकार दिया गया। वहीं पैतृक आवास में भी निवास करने व विभाजन की मांग करने का अधिकार दिया गया।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। एसकेजे लॉ कॉलेज में मंगलवार को हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 द्वारा हिंदू महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता सह पटना विश्वविद्यालय के पीजी विधि विभागाध्यक्ष डॉ.योगेंद्र कुमार वर्मा ने कहा कि 1956 के पहले हिंदू परिवार में संपत्ति संबंधी अधिकारों में पुरुषों व महिलाओं में काफी भेदभाव था। 1956 में जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पारित हुआ तो स्थिति बदली, लेकिन इसके बाद भी पुत्र व पुत्री को संपत्ति में समान अधिकार नहीं मिल सका।
इस असमानता को 2005 में समाप्त किया गया। इस अधिनियम में संशोधन के बाद 2005 से हिंदू महिलाओं की पारिवारिक और सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव हुआ। इस अधिनियम द्वारा पुत्री को सहदायिकी हिंदू परिवार का सदस्य घोषित किया गया। साथ ही पुत्री को भी पुत्र की तरह जन्मा अधिकार दिया गया। वहीं पैतृक आवास में भी निवास करने व विभाजन की मांग करने का अधिकार दिया गया। इससे पूर्व वेबिनार की शुरुआत उप प्राचार्य प्रो.ब्रजमोहन आजाद ने की। स्वागत भाषण प्राचार्य प्रो.केकेएन तिवारी ने स्वागत भाषण दिया। वहीं, विश्वनाथ सिंह इंस्टीट््यूट ऑफ लीगल स्टडी मुंगेर के प्राचार्य प्रो.विश्वनाथ सिंह ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। धन्यवाद ज्ञापन अधिवक्ता पीके सदन ने किया। मौके पर प्रो.प्रभात किशोर, डॉ.एसपी चौधरी, उज्ज्वल कुमार, विवेक कुमार आदि थे। निदेशक जयंत कुमार ने अहम भूमिका निभाई।