जानिए, हर साल बाबा विश्वंभरनाथ के आकार बढ़ने के पीछे क्या है कहानी West champaran News
Baba Vishwambharanath बगहा नगर में करीब चार सौ साल पहले बना था बाबा विश्वंभरनाथ मंदिर। नेपाल नरेश ने छोटे डिब्बे में दिया था शालीग्राम पत्थर आज वजन 35 किलो।
पश्चिम चंपारण,[विनोद राव]। यह भक्तों के लिए अद्भुत व चमत्कार से कम नहीं है। ईश्वर की सत्ता पर विश्वास करने वालों के मन कोई संशय नहीं कि शालीग्राम के रूप में विराजमान बाबा विश्वंभरनाथ का आकार लगातार बढ़ रहा। तभी तो मन में अपार श्रद्धा लिए भक्त यहां आते हैं। यह अविश्वसनीय मंदिर है बगहा नगर के पक्की बावली में।
मंदिर की स्थापना करीब चार सौ साल पूर्व हुई थी। कहा जाता है कि उस समय नेपाल नरेश शिकार के लिए यहां पहुंचे तो मंदिर देख रुक गए। उन्हें रामजियावन भगत मिले, जिन्होंने राजा को बताया कि पश्चिमी मंदिर में शिवलिंग स्थापित कर दिया गया है। जबकि, पूर्वी हिस्से में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की जानी है। तब नेपाल नरेश ने उन्हें छोटे से डिब्बे में रखा शालीग्राम पत्थर दिया। मंदिर में उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई। इन्हें ही बाबा विश्वंभरनाथ कहा जाता। इसका आकार हर साल बढ़ता है। आज शालीग्राम पत्थर तकरीबन 35 किलो का हो गया है। माना जाता है कि शालीग्राम भगवान विष्णु के स्वरूप हैं। पत्थर में आंख व नाक स्पष्ट रूप से दिखता है।
प्रतिदिन सजाया जाता बिछावन, सुबह मिलता अस्त-व्यस्त
पुजारी हरिहर दुबे का कहना है कि यहां भगवान शालीग्राम कच्छप रूप मेंं हैं। निचला हिस्सा कछुए की भांति है। रंग भी बदलते रहते हैं। कभी उनका रंग काला, कभी नीला तो कभी लाल या भूरा हो जाता है। रात्रि में उनका शरीर गर्म हो जाता है। प्रतिदिन रात में उनका बिछावन सजाया जाता है, जो सुबह अस्त-व्यस्त रहता है। सुबह, दोपहर व सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें सीधी उन पर पड़ती हैं। गर्मी में कई बार पत्थर से पानी निकलता है, जैसे मनुष्य के शरीर से पसीना निकल रहा हो। हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान शालीग्राम नया अवतार लेते हैं। यानी शालीग्राम से एक छोटे पत्थर का जन्म होता है। अब तक ऐसे 200 से अधिक पत्थर जमा हो गए हैं। यह मंदिर शैव व वैष्णव संप्रदाय का मिलन स्थल भी कहा जाता है।
कथाओं के अनुसार पहले आरती के समय मंदिर परिसर में स्थित बावली में मछलियां किनारे आ जाती थीं। बावली सुरंग के माध्यम से गंडक नदी से जुड़ी थी। बाद में सुरंग जाम होने से मछलियों का आना बंद हो गया। हालांकि, आजतक बावली का न सूखना कौतूहल का विषय है।
बीते चार दशक से नियमित रूप से मंदिर आने वाले डॉ. अशोक मिश्रा बताते हैं कि शालीग्राम के आकार में काफी परिवर्तन आ गया है। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सेवानिवृत्त शिक्षक मदनमोहन गुप्ता कहते हैं कि पत्थर का आकार बढऩा शोध का विषय है। बाबा भूतनाथ महाविद्यालय बगहा के भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. हरिशंकर तिवारी ने कहा कि शालीग्राम जीवाश्म पत्थर है। यदि कोई भी जीवाश्म पत्थर नदी में रहे तो आकार में बढ़ोतरी बड़ी बात नहीं है। क्योंकि, उस पर लगातार पदार्थ जमा होते रहते हैं। लेकिन, मंदिर में शालीग्राम पत्थर का आकार बढऩा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव नहीं है।