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Jalan Datavya Ayurvedic Hospital : जानिए अंग्रेजों के जमाने के इस अस्पताल में अब भी निशुल्क इलाज कर पाना कैसे संभव हो पा रहा

Jalan Datavya Ayurvedic Hospital सरैयागंज में 1942 से चल रहा जालान दातव्य आयुर्वेदिक अस्पताल। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समेत कर्इ जनप्रतिनिधि आ चुके हैं यहां।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 09:24 AM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 09:24 AM (IST)
Jalan Datavya Ayurvedic Hospital : जानिए अंग्रेजों के जमाने के इस अस्पताल में अब भी निशुल्क इलाज कर पाना कैसे संभव हो पा रहा
Jalan Datavya Ayurvedic Hospital : जानिए अंग्रेजों के जमाने के इस अस्पताल में अब भी निशुल्क इलाज कर पाना कैसे संभव हो पा रहा

मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। अंग्रेजों के जमाने के इस अस्पताल में आज भी निशुल्क इलाज होता है। गरीबों के लिए यह बड़ा सहारा है। यह है 1942 में स्थापित जालान दातव्य आयुर्वेदिक अस्पताल। यहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी आ चुके हैं। फिलहाल दो वैद्यों की देखरेख में इसका संचालन हो रहा। प्रतिदिन दर्जनों मरीज आते हैं।

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बंद हो गया नेत्र चिकित्सालय

समाजसेवी रामकुमार जालान ने आजादी की लड़ाई के समय स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर सेवा संघ ट्रस्ट की स्थापना की थी। ट्रस्ट की ओर से जालान दातव्य अस्पताल व जालान निशुल्क नेत्र चिकित्सालय खोला गया था। नेत्र चिकित्सालय तो बंद हो गया है। उस समय मुख्य वैद्य रहे पंडित गोपालजी जोशी के भतीजे अनिल शर्मा व सुनील शर्मा बताते हैं कि रामकुमार ने पांच लोगों की मदद से ट्रस्ट की स्थापना की थी।

चंदे के रुपये से शुरुआत

चंदा कर 40 हजार रुपये जुटाए थे। उससे सरैयागंज में करीब साढ़े 12 कट्ठा जमीन खरीदी गई थी। बाद में समाजसेवी बद्रीनारायण साह ने पांच कट्ठा जमीन दान दी थी। खपरैलनुमा मकान से अस्पताल की शुरुआत हुई थी। देखते-देखते विशाल भवन खड़ा हो गया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में आए थे। यहां के च्यवनप्राश का स्वाद चखा था। कई मंत्री, सांसद, आइएएस अधिकारी यहां की व्यवस्था की सराहना कर चुके हैं।

देखरेख के लिए बनी सोसायटी

वर्ष 1956 में रामकुमार जालान के निधन के बाद इसकी देखरेख के लिए सोसायटी बनाई गई। जब इसके सभी सदस्य दिवंगत हो गए तो बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद ने 2012-16 के बीच सारा प्रबंधन अपनेहाथ में ले लिया। अभी अध्यक्ष सेवानिवृत्त अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुरेशचंद्र पांडेय, उपाध्यक्ष सच्चिदानंद सिंह सहित अन्य की देखरेख में इसका संचालन हो रहा है। इसमें सदस्य अनिल महतो कहते हैं कि इसका पुराना गौरव लौटाने तथा आधुनिक सुविधा से इलाज के लिए संसाधन बढ़ाने का प्रयास हो रहा।

किराए से चलता है खर्च

यहां दो वैद्य डॉ.गोपाल कुमार ठाकुर व डॉ.नवीन प्रसाद सिंह व सहयोगी चंद्रभूषण झा, गोविंद शर्मा और बलम सिंह हैं। जड़ी-बूटी पटना व हाथरस से मंगाई जाती है। पटना, दिल्ली के साथ पूर्वी व पश्चिम चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, दरभंगा और समस्तीपुर से भी मरीज आते हैं। हर माह करीब होते 70 हजार रुपये खर्च होते हैं। प्रबंधक का काम देख रहे रवि पोद्दार बताते हैं कि अस्पताल के पास करीब एक सौ कमरे हैं। उससे आने वाले किराए से खर्चा चलता है। वैद्य डॉ. गोपाल ठाकुर कहते हैं कि दवा की पुडिय़ा खुद तैयार की जाती है। पेट तथा चर्म रोग के मरीज ज्यादा आते हैं।

सीतामढ़ी से आए सुमन भारती ने बताया कि उनका बेटा एक साल से गैस की बीमारी से परेशान था। यहां इलाज से बहुत लाभ हुआ है। शिवहर की कांति देवी, चकिया के भकेलू महतो भी यहां से इलाज करा रहे हैं।  


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