KBC में 5 करोड़ जीतने वाले सुशील गरीबों के बीच जी रहे हैं जिंदगी
'कौन बनेगा करोड़पति' में पांच करोड़ जीतने वाले मोतिहारी के सुशील गरीब बच्चों के बीच साक्षरता का अलख जगा रहे हैं। कहते हैं कि शिक्षा से ही अच्छे समाज का निर्माण हो सकता है।
पूर्वी चंपारण [संजय कुमार उपाध्याय]। 'कौन बनेगा करोड़पति' की हाट सीट से पांच करोड़ रुपये जीतकर अचानक 2011 में हीरो के तौर पर उभरे पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी हनुमानगढ़ी निवासी सुशील कुमार शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। उन्होंने कोटवा प्रखंड की मच्छरगावां महादलित बस्ती के 100 बच्चों को गोद लिया है। उनकी शिक्षा का खर्च उठा रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि ये बच्चे शिक्षा का महत्व समझ सकें। साथ ही स्कूली शिक्षा संग उन्हें अतिरिक्त ज्ञान दिया जा सके।
सुशील दिसंबर 2015 से शिक्षा के इस अभियान में लगे हैं। यहां जिन बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है, बकायदा उनका नामांकन पास के सरकारी विद्यालय में कराया गया है। स्कूल समय से पहले और बाद में बस्ती के चबूतरे पर बच्चों की क्लास सजती है। यहां दो शिक्षक बच्चों को अपना वक्त देते हैं।
सुशील पाठ्य सामग्री व अन्य जरूरतें पूरी करते हैं। साथ ही समय-समय पर जाकर बच्चों को शिक्षा भी देते हैं। गांव के लोगों से बात कर उनकी समस्याएं जानते हैं। सुशील के इस प्रयास को हर स्तर पर सराहा जा रहा है।
ट्यूशन का इंतजाम
बच्चों की पढ़ाई के लिए सुशील ने अपने स्तर पर दो शिक्षकों को इस अभियान से जोड़ा है। एक हैं शिव राय तो दूसरे रवि कुमार। दोनों समाज के प्रति बेहद जागरूक हैं। यहां पहली से आठवीं तक के छात्र-छात्राओं के ट्यूशन का इंतजाम है। सुशील का कहना है कि दोनों शिक्षकों का योगदान काफी अहम है। मैं खुद बच्चों की पढ़ाई के लिए जरूरी हर चीज मुहैया कराता हूं। कोशिश है कि यहां के बच्चे रोल मॉडल बनें। सफलता की कहानी गढ़ें।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भी कर चुके काम
इससे पहले सुशील ने जिले के नक्सल प्रभावित पकड़ीदयाल प्रखंड के सिरहा में ख्वाब फाउंडेशन के मुन्ना कुमार के साथ मिलकर 40 बच्चों के बीच शिक्षा के बीज बोए थे। यहां का अभियान एक साल का ही रहा।
सितार के तार पर देशभक्ति की धुन
वक्त के साथ सुशील ने जीवन में हर तरह के रंग भरने की कोशिश की है। छात्र जीवन में बापू की कर्मस्थली मोतिहारी से शिक्षा प्राप्त कर सुशील ने केबीसी के मंच से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। पांच करोड़ जीतने के बाद भी इनके अंदर घमंड और संकोच ने घर नहीं किया। वर्तमान में ये पूर्व की तरह ही साइकिल व स्कूटी से चलते हैं।
मनोविज्ञान से पीएचडी कर रहे हैं। ऊर्दू सीख रहे हैं। सबसे अहम यह है कि अपनी अंगुलियों के दर्द से बेपरवाह सितार के तार पर देशभक्ति गीतों की ध्वनि तरंग छेड़ते हैं तो लगता है कि संगीत की दुनिया में भी एक दिन ये अपना लोहा मनवाकर रहेंगे।
शिक्षक बनने की चाह
सुशील का परिवार सामान्य रहा है। इनके पिता अमरनाथ व मां रेणु देवी शहर में रहकर बच्चों को शिक्षित करने में लगे रहे। वर्ष 2007 में इन्होंने पढ़ते हुए मनरेगा के तहत कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर नौकरी पाई और पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड में काम किया।
इंटर में पढ़ते समय ही मन बनाया था कि केबीसी जीतेंगे, सो 11 साल बाद जब 2011 में अवसर मिला तो लक्ष्य भेद दिया। कहते हैं वर्तमान में एक मित्र के साथ मिलकर दिल्ली में व्यवसाय करते हैं। आगे की पढ़ाई कर रहा हूं। पीछे मुड़कर देखना नहीं है। कोशिश है कि शिक्षक बनकर समाज की सेवा करूं।
सुशील का कहना है कि मैंने साधन की कमी को करीब से देखा है। जीवन में हर कमी को शिक्षा से दूर किया जा सकता है। शिक्षा एक ऐसी शक्ति है, जो आदमी को आत्मबल प्रदान करती है। आज मैं जब अपने जीवन में सफल हुआ हूं तो चाहत है कि समाज की अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों में भी समृद्धि आए। यह तभी आएगी, जब आदमी शिक्षित होगा। दिखावे से दूर एक शिक्षक के तौर पर देश की सेवा करने की ओर बढ़ चला हूं।
वहीं कल्याणुपर के विधायक सचींद्र प्रसाद ने सुशील कुमार के इस प्रयास की सराहना की। कहा कि महादलित बस्ती के बच्चों की पढ़ाई के लिए चबूतरे का निर्माण किया जा चुका है। आगे इस पर शेड बनाने की दिशा में भी काम होगा। मेरे स्तर पर जो समाज हित में होगा, करूंगा।