Move to Jagran APP

कर्पूरी ठाकुर ड्राइवर को तेल बेचने का मौका नहीं मिला तो गाड़ी नहीं चलाएगा वाले वाकया से हो गए थे आहत

पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह ने यादें साझा करते हुए कहा कर्पूरी के पुश्तैनी घर में रखीं चीजें देतीं ईमानदारी की गवाही। विरोधी दल के नेता रहने के दौरान दुखी हो कहा था सरकारी कर्मचारी को घूस लेने में नहीं बनेगा तो काम नहीं करेगा।

By Ajit kumarEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 08:17 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 08:17 AM (IST)
कर्पूरी ठाकुर ड्राइवर को तेल बेचने का मौका नहीं मिला तो गाड़ी नहीं चलाएगा वाले वाकया से हो गए थे आहत
कर्पूरीजी को अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक नहीं था। फाइल फोटो

समस्तीपुर, जासं। बात 1984 की है जब कर्पूरी ठाकुर विरोधी दल के नेता थे। उस समय उन्होंने कहा था कि हद हो गई, ड्राइवर को तेल बेचने का मौका नहीं मिलेगा तो वह गाड़ी नहीं चलाएगा। सरकारी कर्मचारी को घूस लेने में नहीं बनेगा तो काम नहीं करेगा। ऐसे में हे ईश्वर! आप मेरा चोला क्यों नहीं बदल देते। समाजवादी पृष्ठभूमि से आने वाले उजियारपुर के पूर्व विधायक 60 वर्षीय दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं कि इस वाकये के दौरान मैं मौजूद था। तब में और आज में कितना अंतर आ गया है। हालांकि कर्पूरीग्राम में आज भी कर्पूरी ठाकुर के पुश्तैनी आवास पर वही आभा व्याप्त है। उनके आवास को स्मृति स्थल घोषित कर दिया गया है, लेकिन आज भी उसके अंदर रखीं पुरानी चीजें उनकी ईमानदारी को चीख-चीखकर कहती हैं। उन पुरानी चीजों में अल्युनियम की थाली, कटोरा, लोटा व कठौता सहित अन्य हैं।

loksabha election banner

दुर्गा प्रसाद बताते हैं कि राजनीति में लंबा सफर गुजारने के बाद भी कर्पूरीजी को अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक नहीं था। न तो पटना में और न ही अपने पैतृक घर पितौझिया (कर्पूरीग्राम) में। जब करोड़ों रुपये के घोटाले में आए दिन सुॢखयों में आते रहे हों तो कर्पूरी जैसे नेता भी इसी राजनीतिक जमीन पर पैदा हुए। वर्षों बाद लोगों को सहसा इस पर विश्वास नहीं होगा।

कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर भी पिता की मृत्यु के बाद ही राजनीति में सक्रिय हुए। विधान पार्षद, विधायक, राज्य सरकार के मंत्री और राज्यसभा सदस्य भी बने। लेकिन यह भी सच है कि कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हेंं राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया। हाल में ही 'महान कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर' नाम से दो खंडों में प्रकाशित पुस्तक में रामनाथ ने अपने पिता की सादगी के किस्से बताए हैं।

वंचितों की बन रहे आवाज

पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद कहते हैं कि कर्पूरी बिहार की परंपरागत व्यवस्था में वंचितों की आवाज बने रहे। सत्ता में आने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया। उनकी कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया। उस दौरान उन्होंने सभी अधिकारियों को भी फाइलों में हिंदी में ही टिप्पणी देने का निर्देश दिया था। 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में आरक्षण लागू करने के चलते वे हमेशा के लिए सवर्णों के दुश्मन बन गए, लेकिन समाज के दबे-पिछड़ों के हित के लिए काम करते रहे।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.