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मंत्रियों का हेलीपैड बनकर रह गया वाल्मीकिनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, नहीं शुरू हुई उड़ान

हवाई अड्डे की स्थापना के वक्त भू-अधिग्रहण की कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं होने से उत्पन्न हुई परेशानी। 2017 में सीएम ने उड्डयन मंत्रालय को एयरपोर्ट हस्तांतरित करने का दिया था आदेश।

By Murari KumarEdited By: Published: Sat, 08 Aug 2020 03:27 PM (IST)Updated: Sat, 08 Aug 2020 03:27 PM (IST)
मंत्रियों का हेलीपैड बनकर रह गया वाल्मीकिनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, नहीं शुरू हुई उड़ान
मंत्रियों का हेलीपैड बनकर रह गया वाल्मीकिनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, नहीं शुरू हुई उड़ान

बगहा (प.चं.) [विनोद राव]। भारत-नेपाल की सीमा पर बसे वाल्मीकिनगर को न सिर्फ टाइगर रिजर्व, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के एयरपोर्ट के लिए भी पहचाना जाता है। करीब 20 हेक्टेयर में फैले इस एयरपोर्ट को सरकारी उदासीनता का ऐसा डंक लगा कि यह सिर्फ मंत्रियों के लिए हेलीपैड बनकर रह गया।

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आम लोगों के लिए हवाई यात्रा सपना

यहां से अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू करने की घोषणा हुई थी। गंडक बराज के निर्माण के साथ ही वाल्मीकिनगर में हवाई अड्डे का निर्माण वर्ष 1964 में हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गंडक बराज के साथ ही इसका उद्घाटन किया था। लेकिन, तब से लेकर आज तक यहां से हवाई यात्र शुरू नहीं हो सकी है।

लाउंज का उपयोग नहीं

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वाल्मीकिनगर यात्र से लोगों को उम्मीद जगी थी कि उनका सपना जल्द ही पूरा हो जाएगा। सीएम ने विभागीय अधिकारियों को उक्त हवाई अड्डे को संबंधित विभाग को हस्तांरित करने का निर्देश दिया था। उनकी पहल पर एयरपोर्ट की साफ-सफाई, रंग रोगन व लाउंज का निर्माण 43 करोड़ 57 लाख 64 हजार 200 रुपये की लागत से कराया गया है। लेकिन, इसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है।

मंत्रालय को हस्तांतरित करने का था निर्णय

 10 मार्च 2017 को मुख्य सचिव बिहार सरकार पटना की अध्यक्षता में हुई बैठक में जल संसाधन विभाग वाल्मीकिनगर एवं वीरपुर के हवाईअड्डे को नागरिक उड्डयन मंत्रलय को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया गया। इसका उद्देश्य सभी जिलों को राज्य मुख्यालय से जोड़ने की थी। जमीन हस्तांतरण को लेकर संयुक्त सचिव ने पश्चिमी चंपारण बेतिया के समाहर्ता को पत्रचार भी किया। पत्र में उपलब्ध कराए गए भू-अभिलेख की वास्तविकता पर रिपोर्ट तलब की गई।

जमीन का दाखिल-खारिज नहीं

 जानकारों की मानें तो 1960 के दशक में ठाढ़ी गांव के किसानों क्रमश: नत्थू मुखिया, जीता मुखिया, देवनंदन साह, सुखबीर खवास, तुलसी मुखिया आदि किसानों से हवाई अड्डा के लिए जमीन अधिगृहित की गई थी। तत्कालीन अधिकारियों की लापरवाही के कारण उस जमीन का दाखिल खारिज नहीं किया जा सका। जिससे उक्त जमीन की राजस्व रसीद आज भी भूस्वामी के नाम से कट रही है। ऐसे में जल संसाधन विभाग को हवाई अड्डे पर भू-स्वामित्व साबित करना टेढ़ी खीर साबित हुआ। जिसके कारण इस हवाईअड्डे को हस्तांतरित करने में परेशानी उत्पन्न हुई।

वन विभाग की जमीन बताने से फंसा पेच

 इस बारे में वाल्मीकिनगर के विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह ने कहा कि इस संबंध में प्रधान सचिव को पत्र लिखा गया था। वहां से हरी झंडी भी मिल गई थी। लेकिन वन विभाग ने अपनी जमीन बताकर पेच फंसा दिया। इस संबंध में मुख्यमंत्री से बात करेंगे।


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