Independence Day: छोटी पहचान के बावजूद स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों की रही बड़ी भूमिका
Independence Day 2022 आजादी का अमृत महोत्सव। 10 अप्रैल 1917 की देर रात मुजफ्फरपुर पहुंचे गांधीजी ने वकीलों के साथ की थी मंत्रणा। गांधीजी को मिला था राजेंद्र प्रसाद ब्रजकिशोर बाबू गया प्रसाद सिंह जैसे वकीलों का साथ। सत्याग्रह में बापू की दृष्टि व आवाज बने।
मुजफ्फरपुर, [अजय पांडेय]। Independence Day 2022 चंपारण और नील की खेती को लेकर गांधीजी के मन में कई बातें थीं। न चंपारण का नाम सुना था, न नील की खेती देखी थी। वे राजकुमार शुक्ल की बातों से बंध गए गए थे। नील विरोधी मुहिम के लिए गांधीजी के आने से पहले ब्रजकिशोर प्रसाद, राजेंद्र प्रसाद, गया प्रसाद सिंह, रामनवमी प्रसाद, रामदयालु सिन्हा, अरिक्षण सिन्हा, परमेश्वर लाल जैसे वकीलों से मिलकर आंदोलन से जोड़ चुके थे। ये सत्याग्रह की धुरी साबित हुए और गांधीजी की दृष्टि और आवाज बने।
गांधीजी यहां जिस परिवेश में आए थे, वहां की न तो उन्हें बोली समझ आती थी, न ही नील उत्पादक किसानों और निलहों के बीच लिखा गया करार। दोनों स्थिति में उन्हें स्थानीय वकीलों की जरूरत थी। राजकुमार शुक्ल इन बातों को भांप कर पहले ही तैयारी कर चुके थे। अब गांधीजी के सामने इनको परखने का वक्त था। इसकी शुरुआत 10 अप्रैल, 1917 की देर रात उनके मुजफ्फरपुर पहुंचने के साथ हो गई।
वकालत छोड़ दुभाषिया का किया काम
ब्रजकिशोर प्रसाद, गया प्रसाद सिंह, रामनवमी प्रसाद और सूरजबल प्रसाद से मुलाकात से काफी कुछ साफ हो चुका था। इनमें ब्रजकिशोर बाबू की सामाजिक और राजनीतिक प्रखरता गांधीजी को प्रभावी लगी। वे हरसंभव उनकी मदद को तैयार थे। गांधीजी ने कह दिया था कि उन्हें वकालत या साधनों की जरूरत नहीं, बल्कि किरानी या दुभाषिया चाहिए।
गांधी जी वकीलों के घर ही ठहरे
15 अप्रैल, 1917 को चंपारण की धरती पर ब्रजकिशोर बाबू के परिचित वकील गोरख प्रसाद के घर गांधीजी ठहरे। अगले चार दिनों में राजेंद्र प्रसाद, मजहरूल हक, अनुग्रह नारायण सिन्हा भी पहुंच चुके थे। 21 अप्रैल को मुजफ्फरपुर से रामदयालु सिन्हा और सारण के कुछ वकीलों के आने के साथ ही चंपारण के नील उत्पादक किसानों की गवाहियां दर्ज होने लगी थीं। ब्रजकिशोर बाबू के बहनोई और गोरखपुर के नामी वकील विंध्यवासिनी प्रसाद, अवधेश प्रसाद और भगवती प्रसाद के आने के बाद गांधीजी को बड़ा बल मिला था। इनकी बदौलत 40 दिनों में चार हजार किसानों की गवाहियां दर्ज हो सकी थीं, जो अंग्रेजों की बर्बरता का पुख्ता सबूत बनीं।
गांधीजी की प्रेरणा से जेल जाने को तैयार हुए वकील
गांधीजी के मन में सत्याग्रह को लेकर दो बातें थीं। पहला, लोगों के मन से शासन और अंग्रेजों का डर निकालना था। दूसरा, उन्हें जेल जाने के लिए तैयार करना। खुद उनके साथी रामनवमी प्रसाद और धरणीधर प्रसाद जेल जाने के नाम पर डरते रहे। बाद में वकालत छोडऩे के साथ जेल यात्रा को भी तैयार हुए। वकीलों ने भोजन बनाने से लेकर बर्तन मांजने तक का काम किया। गांधीजी के आग्रह पर ट्रेन में तीसरे दर्जे में चलने लगे थे।
गया बाबू के पोते डा. विधु शेखर सिंह कहते हैं कि चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधीजी ने वकीलों से मंत्रणा कर ही तमाम रणनीतियां तैयार की थी। उनके माध्यम से ही नील की खेती, इससे जुड़े करार और उस वक्त लिए जाने वाले टैक्सों के कानूनी पक्ष से अवगत हुए थे।